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मुर्मू के बाद धनखड़ के समर्थन में मायावती, जातीय समीकरण है या सियासी मजबूरी?

बसपा प्रमुख मायावती ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के बाद उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार जगदीप धनखड़ को समर्थन करने का ऐलान किया है. यह फैसला ऐसा समय लिया गया जब विपक्ष मोदी के खिलाफ एकजुट होने की कवायद कर रहा है, लेकिन मायावती विपक्षी के बजाय सत्तापक्ष के साथ खड़ी नजर आ रही हैं. ऐसे में बसपा का जातीय समीकरण है या फिर मायावती की कोई सियासी मजबूरी?

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बसपा प्रमुख मायावती
बसपा प्रमुख मायावती

उत्तर प्रदेश की सियासत में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही बसपा को मायावती दोबारा से खड़ा करने की कवायद में जुटी हुई हैं, लेकिन विपक्षी दलों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के बजाय वह बीजेपी के साथ कदमताल कर रही हैं. उपराष्ट्रपति के चुनाव में मायावती ने एनडीए उम्मीदवार जगदीप धनखड़ को समर्थन करने का ऐलान किया है. इससे पहले राष्ट्रपति के चुनाव में द्रौपदी मुर्मू को सहयोग किया था. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर मायावती विपक्ष के बजाय बीजेपी के साथ क्यों खड़ी नजर आ रही हैं? 

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विपक्ष से अलग मायावती की राह

मायावती एनडीए उम्मीदवार को दोनों बड़े चुनावों में समर्थन देने की वजह के पीछे जातीय समीकरण या फिर कोई सियासी मजबूरी. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समुदाय से आती हैं तो उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ जाट समाज से आते हैं. मायावती हमेशा दलितों कमजोरों का खुद को नेता करार देती रही हैं. ऐसे में द्रौपदी मुर्मू के समर्थन करने के पीछे आदिवासी समुदाय के सियासी एजेंडे को समझा जा सकता है, लेकिन धनखड़ के समर्थन करने के ऐलान की क्या वजह है? 

धनखड़ का बसपा ने क्यों किया समर्थन

उपराष्ट्रपति के चुनाव में एनडीए की तरफ से जगदीप धनखड़ उम्मीदवार हैं तो विपक्षी की तरफ से कांग्रेस नेता मार्गरेट अल्वा प्रत्याशी हैं. अल्वा कर्नाटक से आती हैं और उन्हें विरासत में सियासत मिली है. वहीं, जगदीप धनखड़ राजस्थान से आते हैं और जाट समुदाय से है. ऐसे में बसपा की यूपी सियासत के लिए जातीय समीकरण के लिहाज से मार्गरेट से ज्यादा धनखड़ सियासी तौर पर मायावती के लिए फायदेमंद नजर आ रहे हैं. इसीलिए मायावती ने एनडीए उम्मीदवार जगदीप धनखड़ को समर्थन करने का फैसला किया. 

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मायावती ने उपराष्‍ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्‍मीदवार के समर्थन का ऐलान कर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है. इस फैसले के जरिये वह पश्चिमी यूपी में जाट समुदाय को सियासी संदेश दिया है. मायावती दलित-मुस्लिम समीकरण पर काम कर रही है. ऐसे में धनखड़ समर्थन के पीछे दलित-मुस्लिम-जाट का समीकरण बनाकर सपा-आरएलडी गठबंधन के सामने चुनौती पेश करने की है. 

बता दें कि पश्चिमी यूपी एक जमाने में बसपा का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता था. जाट, जाटव और मुस्लिम के सहारे बसपा सियासी बाजी मरती रही है, लेकिन पिछले कुछ चुनावों में बीजेपी और सपा इसमें सेंधमारी करने में कामयाब रही. जाट, गुर्जर और दूसरे अन्य ओबीसी जातियों को बीजेपी ने अपने पक्ष में किया तो मुसलमानों ने 2022 के चुनाव में एकमुश्त सपा को वोट दिया. 

मायावती पश्चिमी यूपी में अपने खोए हुए सियासी जनाधार वापस पाने की कवायद में है, जिसके लिए उन्होंने मुनकाद अली और नौशाद अली जैसे मुस्लिम नेताओं को लगा रखा है. वहीं, उपराष्ट्रपति चुनाव में जगदीप धनखड़ को समर्थन कर जाटों को सियासी संदेश दिया है. इस तरह जाट प्रत्याशी को समर्थन कर मायवाती ने रालोद चीफ जयंत चौधरी को भी पसोपेश में डाल दिया है कि वो जाट प्रत्याशी के चलते क्या फैसला करते हैं. 

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सत्तापक्ष के साथ खड़ी मायावती

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में मायावती ने विपक्षी एकता और उनकी आलोचना की चिंता किए बगैर एनडीए के समर्थन में खड़ी नजर आईं. बीजेपी को घेरने के लिए विपक्षी दलों को एकजुट करने का प्रयास किया जा रहा है. वहीं, बसपा प्रमुख मायावती हमेशा सपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सहित विपक्षी दलों निशाने पर इस बात को लेकर रहती हैं कि वह बीजेपी की 'बी' टीम हैं. इसके बावजूद मायावती ने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए को समर्थन करने का फैसला किया. 

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो मायावती राजनीतिक रूप से तो बीजेपी के समर्थन नहीं कर रही है. ऐसे में उनकी कुछ सियासी मजबूरियां है, जिसके चलते वो बीजेपी के सुर में सुर मिलाती नजर आती है या फिर समर्थन में खड़ी दिखती है. ये पहली बार नहीं है जब मायावती बीजेपी या मोदी सरकार के समर्थन में उतरी हैं बल्कि सीएए से लेकर कश्मीर में धारा 370 को हटाने जैसे कई मुद्दों पर साथ रही है. कांग्रेस और राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मायावती केंद्रीय जांच एजेंसी के डर के चलते बीजेपी के समर्थन करती हैं. 

मायावती को किसी जांच का डर है

राहुल गांधी ने इसी साल अप्रैल महीने में आरोप लगाया था कि मायावती ने सीबीआई और ईडी के डर से गठबंधन पर मेरे मैसेज का जवाब तक नहीं दिया. यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर ही राहुल गांधी ने कहा था, 'मायावती को वो मुख्यमंत्री बनाने को तैयार थे, उन्हें संदेश भी भिजवाया, लेकिन बीएसपी चीफ सीबीआई, ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों से इतनी डरी थीं कि उन्होंने मैसेज का जवाब तक नहीं दिया.' 

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बता दें कि एक समय बसपा अध्यक्ष मायावती के पीछे भी सीबीआई लगी थी और उनके ख़िलाफ़ आय से अधिक संपत्ति का मामला चला था एक समय तो सीबीआई ने उनके ख़िलाफ़ यह मामला बंद करने की तैयारी कर ली थी.  सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि जांच एजेंसी ने ताज कॉरिडोर मामले में आदेश को समझे बिना मायावती के विरुद्ध  एफआईआर दर्ज की थी, इस वजह से इसे निरस्त किया जाता है. इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा था कि लेकिन यदि सीबीआई चाहे तो वह मायावती के ख़िलाफ़ बेहिसाब संपत्ति का अलग केस दर्ज कर जांच कर सकती है. 

हालांकि, मौजूदा समय जांच एंजेसी ईडी के निशाने पर जिस तरह से विपक्षी नेता आए हैं, उससे मायावती के लिए भी चिंता बढ़ी है. इसकी वजह यह है कि मायावती के भाई आनंद के खिलाफ आय से आधिक संपत्ति का मामला रहा है. इसे के चलते राजनीतिक विश्लेषक मायावती को केंद्रीय जांच एजेंडी की डर की संभावना जता रहे हैं. ऐसा ही सवाल उपराष्ट्रपति चुनाव में मायावती के रुख को लेकर भी उन पर उठाया जा रहा है. ट

बसपा प्रमुख मायावती ने ट्वीट कर कहा है, 'बीएसपी ने ऐसे में उपराष्ट्रपति पद के लिए हो रहे चुनाव में भी व्यापक जनहित व अपनी मूवमेन्ट को भी ध्यान में रखकर जगदीप धनखड़ को अपना समर्थन देने का फैसला किया है तथा जिसकी औपचारिक रूप से घोषणा भी कर रही हूं. ऐसे में सवाल है कि जगदीप धनखड़ ने दलितों, आदिवासियों या वंचितों के लिए ऐसा कौन सा आंदोलन किया, जिसके चलते मायावती उन्हें समर्थन देने का ऐलान किया है? 

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