बसपा सुप्रीमो मायावती ने प्रेस नोट जारी करते हुए आजादी की 70वीं वर्षगांठ के शुभ अवसर पर सभी देशवासियों को बधाई दी. इस दौरान मायावती ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भारत की पहचान तिरंगा का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया और कहा कि बीजेपी की 15 से 22 अगस्त तक चलने वाली 'तिरंगा यात्रा' जनता का ध्यान बंटाने के लिए है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार अपनी विफलताओं पर से जनता का ध्यान भटकाना चाहती है.
मायावती ने मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी ने अपने दो साल के कार्यकाल में काम कम, बातें अधिक की हैं, जिससे उन्होंने लोगों की उम्मीदों पर पानी फेरने का काम किया है. केंद्र सरकार अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए तमाम तरह की नाटकबाजी कर रही है.
पीएम मोदी तिरंगे पर कर रहे हैं राजनीति
माया ने आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी ने अपने तीसरे साल के कार्यकाल में राष्ट्रीय चिन्हों और राष्ट्रीय अस्मिता आदि से जुड़े मुद्दों को लेकर राजनीति करनी शुरू कर दी है. इसी क्रम में ही बीजेपी 'तिरंगा यात्रा' और आजादी के 70 वर्ष पूरे होने पर 'जरा याद करो कुर्बानी' जैसे कार्यक्रम आयोजित कर रही है. लेकिन मोदी के बार-बार के आह्वान के बावजूद उनके सांसद और मंत्रीगण जनता का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं और विभिन्न स्थानों पर जाकर सरकारी खर्चे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस आदि करके केवल खानापूर्ति कर रहे हैं.
मोदी आरएसएस को उभारने की कर रहे हैं कोशिश
मायावती ने कहा कि पीएम मोदी अपने पैतृक संगठन आरएसएस को उस गिरी हुई मनोभावना से उभारना चाहते हैं, जिससे वे लोग स्वाधीनता संग्राम में भाग नहीं लेने के कारण आत्म ग्लानि से ग्रस्त रहते हैं. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहाकि RSS व उसके सहयोगी संगठनों को सबसे ज्यादा यह बात चुभती है कि स्वतंत्रता आंदोलन यानी देश की आजादी में उनकी भूमिका नगण्य रही है. यही कारण है कि RSS के इशारे पर चलकर केंद्र की बीजेपी सरकार स्वतंत्रता व संविधान आदि और देश की अस्मिता से जुड़े देश के हर मुद्दे को राजनीतिक तौर पर भुनाने का प्रयास करती रहती है. इस प्रकार के इनके राजनीतिक व सरकारी कार्यक्रमों को सीधे तौर पर देशभक्ति से जोड़ दिया जाता है.
बीजेपी की गौरक्षा के मामले पर देश में हुई किरकिरी
मायावती ने बीजेपी पर आगे निशाना साधते हुए कहा कि बीजेपी एंड कंपनी द्वारा गोरक्षा के मामले में काफी ज्यादा किरकिरी व भारी फजीहत होने पर इस मामले को संविधान से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है, जबकि संविधान और उसकी प्रस्तावना के मूल उद्देश्य मानव सुरक्षा, मानव हित और मानव कल्याण को पूरी तरह से भुलाने का प्रयास जारी है.