अगले साल यूपी में विधानसभा चुनाव होने हैं और उससे पहले ही योगी और केंद्रीय नेतृत्व के बीच टकराव की खबरें आने लगी थी लेकिन शुक्रवार को इन अटकलों पर एक तरह से विराम लगा है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की. इस मुलाकात के राजनीतिक मायने हैं. दिल्ली से सीएम योगी अपने साथ में यूपी की जीत के प्लान का ब्लू प्रिंट लिए लखनऊ पहुंचे. दो दिनों तक दिल्ली में देश के दिग्गज नेताओं के साथ मुलाक़ात के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ लखनऊ अपने आवास पहुंचे. सीएम आवास पर अधिकारियों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया. रीता बहुगुणा जोशी भी मुख्यमंत्री आवास पहुंची.
दरअसल, इस बैठक को उत्तर प्रदेश कैबिनेट विस्तार की चर्चाओं के बीच जातीय समीकरणों को साधने वाला माना जा रहा है. 2014 लोकसभा हो या 2017 का यूपी विधानसभा, गैर यादव ओबीसी का जातीय आधार रखने वाले दलों ने बीजेपी की राह आसान की थी. बीजेपी अपने उसी फॉर्मूले को दोहराना चाहती है. इस समय यूपी में पार्टी की जातीय इंजीनियरिंग चल रही है.
जब दिल्ली और लखनऊ के बीच बीजेपी की अंदरूनी सियासी खटपट शोर बनकर सुनाई देने लगे तो फिर मुलाकात महज़ औपचारिक नहीं कही जा सकती. गुरुवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिले. फिर गृह मंत्री अमित शाह से भी मुलाकात हुई और आज (शुक्रवार) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की तस्वीर सामने आ गई.
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2022 के यूपी विजय प्लान का ब्लूप्रिंट साथ !
बंद कमरे में क्या बात हुई ये तो सामने नहीं आया लेकिन कयास तेज है कि प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी ने अगामी यूपी चुनाव को लेकर गंभीर मंथन किया. सूत्रों के मुताबिक सामाजिक और जातीय समीकरणों को साधने के लिए यूपी कैबिनेट में कुछ नए चेहरों को जगह देने पर बात हुई, योगी को विधायकों की नाराजगी दूर करने को कहा गया, सुपरफास्ट वैक्सीनेशन पर जोर देने और उसे ज़मीन पर उतारने को कहा गया है. गरीब कल्याण और विकास योजनाओं को राज्य में जल्द से जल्द पूरा करने की बात हुई. समझ लीजिए कि इन मुलाकातों के बाद जब य़ोगी वापस लखनऊ पहुंचे तो उनके पास 2022 के यूपी विजय प्लान का ब्लूप्रिंट साथ था.
बीजेपी के सामने कई चुनौतियां
बीजेपी यूपी में 2022 की चुनावी लड़ाई जीतना चाहती है और वो भी कहीं बड़े बहुमत से लेकिन उसके सामने कई चुनौतियां हैं. हाल में हुए पंचायत चुनाव के नतीजे जिनमें अयोध्या तक में बीजेपी को हार मिली थी. कोरोना की दूसरी लहर की भीषण त्रासदी और लोगों में नाराजगी, पश्चिम यूपी में किसानों का विरोध और पश्चिम बंगाल में प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे के दम पर विजय की कोशिश नाकाम होने से पार्टी को झटका लगा है. यही वजह है कि बीजेपी डैमेज कंट्रोल मोड में है.
सोशल इंजीनियरिंग पर जोर
पार्टी का ज़ोर सोशल इंजीनियरिंग पर है . बीजेपी से नाराज चल रहे समुदायों और उनके नेताओं को मनाने की कोशिश तेज हो गई है.बीजेपी की रणनीति को समझने के लिए 2017 के चुनावी नतीजों को देखना जरूरी है. बीजेपी की अगुवाई वाले गठबंधन को 325 सीटों के साथ प्रचंड जीत मिली थी. इस जीत में ओबीसी वोटर जिनकी तादाद 41.5 फीसदी है. उनकी सबसे अहम भूमिका थी. उत्तर प्रदेश विधानसभा में ओबीसी वोटर 145 सीटों पर अपना असर रखते हैं.
इसके अलावा बीजेपी 21 फीसदी दलित वोटरों को भी साधने में लगी है. दलित वोटर यूपी में 100 सीटों पर असर रखते हैं . बीजेपी ने कुर्मी समुदाय से ही स्वतंत्र देव सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बना रखा है तो मौर्य समाज के लिए डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य से लेकर स्वामी प्रसाद मौर्य तक सरकार में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं. इसके साथ ही सरकार में ओबीसी मंत्रियों का बड़ा प्रतिनिधित्व भी है यानि बीजेपी ने ओबीसी वोटरों पर सीधा निशाना साधा है.
रूठे दलों को मनाने की कोशिश
अपना दल (एस) और निषाद पार्टी यूपी में बीजेपी के सहयोगी दल है. सूत्रों के मुताबिक अब बीजेपी बहराइच से बलिया तक असर रखने वाले राजभर समुदाय को साधने और योगी से रूठे ओपी राजभर को वापस अपने पाले में लाने की तैयारी कर रही है. लेकिन इस कोशिश को झटका तब लगा जब राजभर ने साफ कह दिया कि डूबती नैया की सवारी वो नहीं करने वाले.
यूपी में सवर्ण जातियों का एक बड़ा तबका बीजेपी को वोट देता रहा है. 20 फीसदी जनसंख्या वाला ब्राह्मण वोट 60 सीटों पर असर
रखता है. 15 फीसदी ठाकुर वोट 85 सीटों पर नतीजों को प्रभावित करने की स्थिति में हैं.यही वजह है कि बीजेपी सवर्ण वोटरों को
भी साधने में लगी हुई है. इन सभी कोशिशों के साथ बीजेपी जीत के लिए नरेंद्र मोदी के चेहरे को फिर प्रोजेक्ट कर सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि मोदी के नाम पर पिछली बार तमाम जातीय समीकरण ध्वस्त हो गए थे और महागठबंधन चारों खाने चित हो गया था.
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योगी और मोदी की जोड़ी
यहां ये याद रखना होगा कि बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत हिंदुत्व है और योगी उसके बड़े झंडाबरदार हैं. पार्टी पूरे देश में उन्हें इसी तरह प्रोजेक्ट करती रही है.हालांकि दूसरी लहर की तबाही के बाद बीजेपी कोई चांस लेने के मूड में नहीं है क्योंकि यूपी को देश की सत्ता की मास्टर चाबी माना जाता है.
(आजतक ब्यूरो)