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हाथों में बाबा साहब अंबेडकर की तस्वीर, गले में नीला गमछा और जुबान पर जय भीम का नारा. यह न तो मायावती की रैली का नजारा था और न ही बसपा के नेता और कार्यकर्ता थे बल्कि ये तो कांग्रेसी कार्यकर्ता थे, जो हाथरस की निर्भया के परिवार से मिलने जा रहे कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ चल रहे थे. यूपी में इन दिनों दलित के मुद्दे पर जब भी कांग्रेसी कार्यकर्ता सड़क पर उतरते हैं तो नीले गमछे के साथ जय भीम का उदघोष लगाते नजर आते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस कहीं मायावती के सियासी एजेंडे को हाईजैक करने में तो नहीं लगी हुई है?
उत्तर प्रदेश की राजनीति काफी हद तक जातीय समीकरणों पर ही टिकी है. सूबे में अपनी मुट्ठी से हर समुदाय के वोट बैंक को गंवा चुकी कांग्रेस पिछले तीन दशक से सत्ता का वनवास झेल रही है. ऐसे में यूपी की राजनीति में पांव जमाने की कोशिश में जुटी कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी अपनी सियासी बिसात जाति के आधार पर बिछाने में जुटी है. प्रियंका की नजर अपने पुराने वोट बैंक दलित और मुस्लिम को दोबारा से वापस लाने पर है.
यही वजह है कि यूपी के हर दलित मुद्दे पर प्रियंका गांधी मुखर रहती हैं तो कांग्रेसी सड़क पर उतरकर संघर्ष करते दिखते हैं. कांग्रेसी कार्यकर्ता दलित मुद्दों पर संघर्ष के लिए सड़क पर उतरते समय बसपा के प्रतीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं. बसपा डॉ. आंबेडकर को अपना राजनीतिक आदर्श मानती है और बसपा का झंडा नीला ही है. हालांकि, आंबेडकर दलित समुदाय के बीच राजनीतिक चेतना लाने के लिए आरपीआई का गठन कर रहे थे तो उसका भी झंडा नीला रखा था.
दलित चिंतक हरीव एस वानखेड़े बतातें है कि नीला को उम्मीद का रंग माना जाता है. इसीलिए आंबेडकर से लेकर कांशीराम तक ने अपनी-अपनी पार्टी का झंडा नीला रखा. यही वजह है कि दलित समुदाय के बीच नीला झंडा की अपनी एक अहमियत है. देश भर में दलित इसी नीले झंडे को प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है. दलित समुदाय आंबेडकर को अपना आदर्श मानता है. देश में जिस तरह से प्रतीकों की राजनीति हो रही है, उसी के तहत कांग्रेस भी दलितों के बीच उन्हीं के प्रतीकों को अपना रही है.
बता दें कि बीजेपी 14 साल के सियासी वनवास के बाद 2017 में सूबे की सत्ता में लौटी थी तो दलित समुदाय की अहम भूमिका रही थी. दलितों में खासकर वाल्मिकी समुदाय बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है. बसपा प्रमुख मायावती के जाटव प्रेम के चलते वाल्मिकी समुदाय सहित दलित समदुय की तमाम जातियां बसपा से छिटककर बीजेपी के साथ आई थीं. हाथरस की निर्भया इसी वाल्मिकी समुदाय से थी, जो सूबे में 3 फीसदी के करीब है जबकि दलित समुदाय 20 फीसदी से ज्यादा है. इस घटना को लेकर दलित समुदायों में जबरदस्त गुस्सा है और कांग्रेस इसे साधने की कवायद में जुटी है.
दलित राजनीतिक की ताकत
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम 20 फीसदी और दलित मतदाता करीब 22 फीसदी हैं. अस्सी के दशक तक कांग्रेस के साथ दलित और मुस्लिम मतदाता मजबूती के साथ जुड़ा रहा. लेकिन बसपा के उदय के साथ ही दलित वोट कांग्रेस से छिटकता ही गया. ऐसे ही मुस्लिम मतदाता भी 1992 के बाद से कांग्रेस से दूर हो गया और सपा और बसपा जैसे दलों के साथ जुड़ गया. इसका नतीजा रहा कि कांग्रेस सूबे में चौथे नंबर की पार्टी बनकर रह गई और पिछले तीन दशक से सत्ता का वनवास झेल रही है.
प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में कदम रखने के बाद से कांग्रेस इन्हीं दोनों अपने पुराने वोट बैंक को फिर से जोड़ने की रणनीति पर काम कर रही हैं. हालांकि, सपा और बसपा दोनों का राजनीतिक आधार इन्हीं दोनों वोटबैंक पर फिलहाल टिका हुआ है. इसीलिए प्रियंका गांधी किसी भी सूरत में दलित और मुस्लिम वोटबैंक को साधने में जुटी हुई हैं, जिसके लिए दलित से जुड़े छोटे-बड़े सभी मुद्दों को उठा रही हैं. इसी कड़ी में हाथरस जिले में दलित बेटी के साथ जब की इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली घटना हुई तो कांग्रेस सबसे ज्यादा सक्रिय नजर आई.
प्रियंका गांधी ने हाथरस की पीड़िता के परिजनों से फोन पर बात की और योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. कांग्रेसी कार्यकर्ता पिछले दो दिनों से प्रदेश भर में सड़क पर उतरकर हाथरस की बेटी के लिए इंसाफ की गुहार लगा रहे हैं तो प्रियंका गांधी और राहुल गांधी परिजनों से मिलने के लिए निकल पड़े. ग्रेटर नोएडा के पास यूपी पुलिस और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के बीच हाथापाई हुई, इस दौरान धक्कामुक्की में राहुल गांधी भी जमीन पर गिर पड़े. हाथरस जा रहे राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को यूपी पुलिस ने हिरासत में ले लिया.
प्रियंका गांधी का मिशन 2022 पर नजर
दरअसल, कांग्रेस महासचिव व उत्तर प्रदेश की पार्टी प्रभारी प्रियंका गांधी मिशन 2022 पूरा करने के लिए योगी सरकार पर लगातार हमलावर हैं. सोनभद्र में जमीन मामले को लेकर हुए नरसंहार के मामले से लेकर उन्नाव में रेप पीड़िता को जलाने तक का मामला हो या फिर सीएए के खिलाफ प्रदर्शन में पुलिसिया कार्रवाई में पीड़ितों की आवाज उठाने का मामला और अब लॉकडाउन में घर लौटने वाले श्रमिकों और चीन के साथ विवाद हर मुद्दे पर प्रियंका गांधी विपक्षी दलों से आगे रही हैं.
प्रियंका गांधी अपने मंसूबों में कितना कामयाब होंगी यह तो समय ही बताएगा, लेकिन इतना तो है कि लोकसभा चुनाव में करारी मात के बाद कांग्रेस को यूपी में दोबारा खड़ा करने की कवायद में जुटी प्रियंका अब स्वयं कांग्रेस को लीड कर रही हैं, जिससे कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं के हौसले भी बुलंद हुए हैं. यूपी की कमान जब से प्रियंका गांधी को मिली है, तब से सूबे में कांग्रेस सड़कों पर आंदोलन करती नजर आ रही है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू को धरना प्रदर्शन करने के मामले में पुलिस गिरफ्तार कर जेल भेजती है, लेकिन जेल से बाहर आने के बाद फिर वो आवाज बुलंद करने लगते हैं.