अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली दो दिन के दौरे पर आईं सोनिया गांधी ने सुबह और शाम दो उद्घाटन किए. दोनों ही जगहों पर एक बात मिलती-जुलती थी. वो था उद्घाटन से पहले पूजा-पाठ. शुरुआत डलमऊ विधानसभा क्षेत्र के नगर पंचायत भवन से हुई. सोनिया के आने से पहले ही पंडितजी टीका लगाकर पूजा अर्चना की सामग्री के साथ उनका इंतजार कर रहे थे. मीडियाकर्मियों के कैमरों की दिशा भी उसी ओर थी, जिससे सोनिया का पूजा-पाठ ठीक तरीके से कैद हो सके.
पहले पूजा-पाठ फिर उद्घाटन का कार्यक्रम
आते ही सोनिया सिर पर पल्लू डालकर पूजा में बैठ गईं. पंडितजी ने कलेवा बांधा, मंत्रोच्चार किया और सोनिया के हाथ में नारियल दिया. सोनिया ने भी अपने दाहिने हाथ से एक बार में वहीं नारियल तोड़ा, गरी का प्रसाद लिया, फिर पंचायत भवन का उद्घाटन करने गईं. कुछ ऐसा ही नजारा शाम को मनहरु इलाके में एक सड़क के उद्घाटन में भी देखने को मिला. वहां भी पंडितजी पूजा सामग्री के साथ इंतजार कर रहे थे. सोनिया आईं और सुबह की तरह पूजा करने के बाद उद्घाटन किया.
गौरतलब है कि पहले अमूमन गांधी परिवार अपने लोकसभा क्षेत्र में अगर किसी एक धर्म में आस्था जताता दिखता था, तो उस दौरे में ही दूसरे धर्म या धर्मों के कार्यक्रम के साथ भी नजर आता था, लेकिन सोनिया के इस दो दिवसीय दौरे में अब तक ऐसा और कोई कार्यक्रम नहीं है.
आखिर क्यों छवि बदलने में जुटे हैं कांग्रेस और गांधी परिवार
लोकसभा चुनाव में हार की छानबीन के लिए एंटोनी कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में मुस्लिम समुदाय के प्रति कांग्रेस के झुकाव को भी हार का बड़ा जिम्मेदार माना था. इसके बाद से ही कांग्रेस के भीतर मंथन तेज हो गया कि छवि में बदलाव की जरूरत है. दिग्विजय और सलमान खुर्शीद की बाटला कांड की बयानबाजी हो या फिर मनमोहन सिंह का संसाधनों पर अल्पसंख्यकों का पहला हक जताने वाला बयान. कांग्रेस अब अपनी छवि बदलने की जुगत में है.
लगातार एक के बाद एक संदेश
केरल की राजनीति में अब तक ईसाई धर्म से एंटोनी और ओमान चांडी कांग्रेस का चेहरा थे, लेकिन हिंदू वोटों में बीजेपी ने पैठ बढ़ाई. तो कांग्रेस ने विपक्ष का नेता हिंदू धर्म के रमेश चेन्निथला को चुना. हाल में घोषित अपनी 8 राज्यसभा उम्मीदवारों में भी पार्टी ने एक भी मुस्लिम चेहरे को जगह नहीं दी. इसके उलट यूपी और महाराष्ट्र से सिटिंग एमएलसी के टिकट भी काट दिए.
राहुल गांधी भी मंदिरों में दिखते हैं
वैसे सोनिया से पहले राहुल गांधी भी केदारनाथ मंदिर और उसके बाद भी तमाम मंदिरों में मत्था टेकते नजर आए हैं. कांग्रेस के नेताओं को साफ कहा गया कि वो अल्पसंख्यकों के हर कार्यक्रम में हिस्सा लें, लेकिन बहुसंख्यकों के कार्यक्रमों को भी पूरी तरजीह देना कतई न भूलें. इस वजह से 2004 में सत्ता में आने के बाद 2014 में सत्ता गंवाने के दूसरे साल इस बार पहली बार सोनिया और राहुल होली के दिन कांग्रेस ऑफिस आकर सबसे मिलते और गुलाल लगाते-लगवाते नजर आए.
गुजरात से आई समीक्षा रिपोर्ट का भी असर
गुजरात से आई अंदरुनी समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया कि गुजरात दंगों पर पार्टी एक खास वर्ग का पक्ष लेती दिखी. इसका सियासी नुकसान हुआ. वैसे हाल में दीवाली के बाद राहुल गांधी जब पत्रकारों से मुखातिब हुए, तो उनके घर दीवाली की झालर जगमगा रही थी. पूछे जाने पर राहुल ने कहा कि जी बिलकुल ये दीवाली के लिए ही लगी है और मैं हर साल लगवाता हूं. हालांकि, इस पर सोनिया के करीबियों का कहना है कि बात धर्म विशेष की नहीं है. गांधी परिवार सभी धर्मों को बराबर सम्मान देता रहा है और देता रहेगा.
संभल कर छवि बदलने की चाहत क्यों?
दरअसल, पार्टी चाहती है कि उस पर तोहमत प्रो मुस्लिम होने की लगी थी, जिसको बदलना है. आखिर बहुसंख्यकों की कीमत पर वो राजनीति कैसे कर सकती है. वो इस बात का खास ख्याल रख रही है कि इससे कांग्रेस की उसी छवि में लौटे जिसमें वो सभी धर्मों को साथ लेकर चलती दिखे, किसी की तरफ झुकी हुई नहीं. लेकिन सवाल है कि क्या कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर जा रही है.
इसीलिए अब कांग्रेस और गांधी परिवार आहिस्ता-आहिस्ता छवि बदलने का मौका मिलते ही भुनाने की कोशिश में जुट जाते हैं. लेकिन, ध्यान रखना होगा कि ये सियासत की वो उपजाऊ जमीन है. जरा सी चूक किसी की सियासी जमीन को बंजर बना सकती है.