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राहुल और प्रियंका की 'ना' के बाद यूपी में शीला पर दांव लगाना चाहते हैं PK

मामला यूपी का है, लिहाजा राहुल गांधी आनन-फानन में कोई कदम उठाने के बजाय वक्त लेकर फैसला करने के मूड में हैं. सोमवार को सोनिया गांधी, राहुल गांधी और यूपी प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने 10 जनपथ में ढाई घंटे तक माथापच्ची की, लेकिन कोई फैसला नहीं हो सका.

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शीला दीक्षि‍त और राहुल गांधी
शीला दीक्षि‍त और राहुल गांधी

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कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के छुट्टि‍यों से लौटने के बाद पार्टी में यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर सुगबुगाहट एक बार फिर तेज हो गई है. वतन वापसी करते ही राहुल ने नेताओं और कार्यकर्ताओं से फीडबैक लेना शुरू कर दिया है, वहीं राहुल या प्रियंका गांधी के सीएम उम्मीदवार बनने का प्रस्ताव देने वाले प्रशांत किशोर दोनों की 'ना' के बाद अब शीला दीक्षित पर दांव लगाने की तैयारी में हैं.

मामला यूपी का है, लिहाजा राहुल गांधी आनन-फानन में कोई कदम उठाने के बजाय वक्त लेकर फैसला करने के मूड में हैं. सोमवार को सोनिया गांधी, राहुल गांधी और यूपी प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने 10 जनपथ में ढाई घंटे तक माथापच्ची की, लेकिन कोई फैसला नहीं हो सका. इस मुद्दे पर बात करते हुए कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह ने कहा, 'रणनीति बन रही है. जल्दी ही सबके सामने उसका ऐलान होगा.'

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दूसरी ओर, कांग्रेस के मंच से प्रियंका की भूमिका और यूपी में बदलाव के सवाल पर जयराम रमेश ने कहा कि आजाद साहब ही इस मामले में बयान दे चुके हैं. पार्टी का यही कहना है कि जब फैसला होगा तो आपको बता दिया जाएगा.

प्रियंका नहीं तो शीला ही सही
यूपी में कांग्रेस के इलेक्शन मैनेजर प्रशांत किशोर के करीबी सूत्रों की मानें तो पीके मानते हैं कि टैंकर मामले में FIR दर्ज होने के बाद भी यूपी में शीला ही सबसे बेहतर विकल्प होंगी. यूपी की सियासत के मद्देनजर शीला की इमेज विकास करने वाली रही है. टैंकर मामला राजनीति से प्रेरित बताकर आसानी से इससे पीछा छुड़ाया जा सकता है. साथ ही शीला की उम्र और कद के कारण यूपी के नेताओं को भी उनको स्वीकार करने में ज्यादा दिक्कत नहीं होगी.

सीनियर नेताओं को शीला से परेशानी
सूत्रों के मुताबिक, पार्टी के वरिष्ठ नेता शीला को यूपी में चेहरा बनाने को आत्मघाती कदम मान रहे हैं. इस खेमे का तर्क है कि शीला दीक्षि‍त उम्रदराज हैं, दूसरा उन पर हाल ही FIR दर्ज हुई है. दिल्ली चुनाव में वह बुरी तरह हार चुकी हैं. ऐसे में विरोधी इसका फायदा उठा लेंगे, वहीं राज्य में पार्टी के नेताओं का बड़ा तबका शीला को अपना नेता मन से स्वीकार नहीं करेगा. इससे पार्टी एकजुट होकर चुनावी मैदान में नहीं लड़ पाएगी.

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राज्य के किसी नेता को मिले कमान
सीनियर नेताओं का मानना है कि अगर ब्राह्मण चेहरा ही देना है तो जितिन प्रसाद, प्रमोद तिवारी और राजेश मिश्र का नाम ज्यादा बेहतर रहेगा. राहुल के करीबियों का एक तबका अब फिल्म स्टार और सांसद राजबब्बर का नाम भी सूझा रहा है. उनका तर्क है कि राजबब्बर का जाना-पहचाना चेहरा और बेदाग छवि पार्टी को फायदा पहुंचा सकते हैं. साथ ही यूपी की जाति की राजनीति का तिलस्म भी राजबब्बर तोड़ सकते हैं, क्योंकि उनकी छवि किसी जाति विशेष की नहीं है.

इसके अलावा राहुल के लौटने के बाद अमेठी राजघराने से आने वाले राज्यसभा सांसद संजय सिंह के नाम पर भी चर्चा आलाकमान कर रहा है. यूपी की राजनीति के लिहाज से ब्राह्मण-राजपूत समीकरण में राजपूत नेता संजय सिंह भी रेस में हैं. यूपी के लिहाज से दबंग छवि और संजय गांधी स्टाइल आफ पॉलिटिक्स उनके पॉजिटिव पॉइंट्स माने जा रहे हैं.

बड़े नेताओं को कमिटियों में एडजस्ट करने की तैयारी
प्रदेश अध्यक्ष और नेता विधायक दल के साथ ही कैंपेन कमिटी चेयरमैन, मैनिफेस्टो कमिटी चेयरमैन जैसी चुनाव से जुड़ी तमाम कमि‍टियों के चेयरमैन पद पर जातीय समीकरण के लिहाज से राज्य के बड़े नेताओं को रखने की तैयारी है. इन अहम नेताओं में पूर्व मंत्री आरपीएन सिंह, सांसद पीएल पूनिया, पूर्व सांसद राजाराम, पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जयसवाल, पासी समाज से पूर्व मंत्री रामलाल राही जैसे नेताओं के नामों पर विचार चल रहा है.

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अगले कुछ दिनों तक जारी रहेगी माथापच्ची
राहुल के करीबी सूत्रों के मुताबिक, हर चीज पर चर्चा के दौर अभी चलते रहेंगे. नाम आगे पीछे होते रहेंगे, लेकिन ईद के बाद कभी भी पार्टी अपनी रणनीति, संगठन के संयोजन और चेहरों के साथ जनता के सामने होगी. पार्टी फिलहाल 15 जुलाई से चुनाव प्रचार में कूदने की तैयारी में है.

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