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कोरोना कर्फ्यू की मार सभी तरह के बाजारों पर पड़ रही है लेकिन इसका ज्यादा और व्यापक असर धार्मिक नगरी काशी के लगभग बंद चल रहे मंदिरों के चलते फूलों के कारोबार पर पड़ रहा है. ज्यादातर मंदिर आंशिक रूप से कोरोना गाइडलाइन के साथ खुल रहें है. मंदिर में जाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या भी न के बराबर हो गई है. मंदिरों के कम खुलने से फूल बाजार बेहाल हैं.
शादियों का सीजन चलने के बाद भी फूल कारोबारी और किसान बेहाल हैं. बेहद मांग वाले वक्त में, शादी और लगन के दौर के बावजूद वाराणसी में फूलों का कारोबार 25 प्रतिशत ही घटकर रह गया है. इसकी सीधी मार फूल की खेती करने वाले किसानों को झेलनी पड़ रही है.
मंदिरों के शहर के लिए मशहूर काशी में फूलों का कारोबार हमेशा से ही बढ़िया रहा है. यहां के फूलों की खेती करने वाले किसान या फूलों का कारोबार करने वाले व्यापारी भी हमेशा से ही अपने व्यापार संतुष्ट रहे हैं.
मंदिरों की संख्या ज्यादा होने की वजह से स्थानीय और आने वाले श्रद्धालुओं में हमेशा से फूल माला की मांग रहती है. जब से कोरोना कर्फ्यू क्या लगा मानों फूल मंडी मुरझा गई है. सामान्य दिनों में जहां तील रखने की भी जगह नहीं थी, वहां मुश्किल से ही किसान फूल बेचने आ रहें हैं.
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फूलों की पैदावार करने वाले एक किसान ने कहा, 'मंदिर-मस्जिद सभी बंद हैं और लगन का भी वक्त है, लेकिन 25 लोग ही शामिल हो रहे हैं. लगन के समय 2000 से 3000 रुपयों की प्रति दिन बिक्री हो जाती थी, लेकिन इस बार 500 रुपया भी मिलना मुश्किल है. जो फूल माला बच भी रहा है उसे फेंक दिया जा रहा है, क्योंकि यह कच्चा काम है. अगर फूलमंडी खोलने का वक्त बढ़ा दिया जाएगा तो कुछ राहत मिल सकती है.' यह बातें तूफानी ने कहीं, वे स्थानीय किसान हैं और फूलों की ही खेती करते हैं.
'मजदूरी तक नहीं निकल पा रही'
वहीं फूमलमंडी में फूल बेचने आए एक अन्य फूल किसान गोपाल ने कहा, 'इस समय हालात ऐसे हैं कि दाल-रोटी तक नहीं चल पा रहा है. माला बिक ही नहीं पा रहा है, क्योंकि ग्राहक नहीं आ रहे हैं. माला बनाने में वक्त लग जाता है. पुलिस 1 बजे मंडी बंद करा देती है. फूलमंडी खोलने का वक्त बढ़ाया जाए, जिस तरह से अन्य किसानों को उनकी फसलों को बेचने की छूट है, उसी तरह फूल किसानों को भी छूट मिलनी चाहिए. जो माला बच भी रहा है उसे फेक दिया जा रहा है.'
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वहीं फूलों से दुल्हे का सेहरा बनाने वाले किसान कन्हैया बताते हैं कि शादियां नहीं हो रही है और मंदिर भी बंद है. पहले दो हजार से 2,500 रुपये तक की बिक्री होती थी, लेकिन अभी 500-1,000 रुपया ही कमा पा रहे हैं. मजदूरी तक नहीं निकल पा रही है. आम दिनों में मंडी में आने वाले फूल माला की खपत सिर्फ मंदिरों में ही हो जाया करती थी.
मंदिरों में घटी फूलों की मांग
वहीं फूलमंडी में फूल-माला की खरीदारी करने आए वाराणसी के प्रसिद्ध मंगलागौरी मंदिर के पुजारी ने भी बताया कि मंदिर बंद होने से लोगों का नित्य दर्शन-पूजन बंद है. यज्ञ-अनुष्ठान भी बंद है. मंदिर में भीड़ नहीं है, लेकिन नित्य की सेवा के लिए थोड़ा-बहुत ही फूल-माला खरीदा जाता है. बहुत जरूरी होने पर ही फूलों की खरीदारी होती है. पहले 500-600 रुपयों तक का फूल माला खरीदते थे लेकिन अब 100-200 रुपये का ही खरीदते हैं.
कोरोना ने तोड़ी व्यापारियों की कमर
वाराणसी के बांसफाटक फूलमंडी संचालक एकांश अग्रवाल का कहना है कि बनारस में लगन भी इस बार अच्छी थी, लेकिन एक-डेढ़ महीने से कोरोना कर्फ्यू की वजह से व्यापार न के बराबर हो रहा है. मंडी खोलने का वक्त भी सिर्फ एक बजे तक का है तो किसान फूल कब तोड़ेगा और कब माला तैयार करके मंडी आएगा. शादियां सभी टल गई हैं और मंदिर भी बंद है. इसलिए फूल बहुत खराब हो रहा है.
उन्होंने कहा, 'जो व्यापार होता था, उसका 25 फीसदी भी नहीं हो रहा है. लगन के वक्त में 400-500 किलो गुलाब बिक जाता था, अब 50 किलो तक नहीं बिक रहा है. अगर फूलमंडी का समय 4-5 बजे तक हो जाए तो काफी सहूलियत होगी. मंडी खोलकर खानापूर्ति हो रही है.
उन्होंने बताया कि जहां तक रेट की बात है तो लगन के वक्त 2,000-2,500 रुपये सैकड़े तक गेंदे की माला की कीमत रहती है. कोरोना कर्फ्यू की वजह से 1,000-1,500 रुपए का बिक रहा है. तो वहीं बारिश की वजह से भी रेट डाउन हुआ है. किसान इस वक्त पैसा पैदा करते थे होली के बाद से लेकिन कोरोना कर्फ्यू की वजह से सब बिगड़ गया.
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