साल 2013 में इलाहाबाद में जिस धर्म संसद से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की मांग उठी थी, तकरीबन ढाई साल बाद शनिवार को उसी धर्म संसद ने पीएम मोदी पर सवाल उठा दिए हैं. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पर मोदी की चुप्पी से निराश साधु-संतों ने सवाल किया है कि प्रधानमंत्री अयोध्या पर मन की बात क्यों नहीं करते हैं?
शनिवार को आयोजित धर्म संसद में एक बार फिर साधु-संतों ने राम मंदिर का मुद्दा उठाया. इस दौरान पीएम मोदी की चुप्पी पर सवाल उठे, तो सरकार की मंशा पर भी चर्चा हुई. कुछ संतों ने ये अल्टीमेटम भी दे दिया कि अगर राम मंदिर का सपना पूरा नहीं हुआ, तो साधु-संत सड़कों पर निकलेंगे. संतों ने पीएम मोदी से सवाल किया कि जब वो स्वच्छता समेत तमाम मुद्दों पर 'मन की बात' करते हैं तो फिर राम मंदिर पर 'मन की बात' क्यों नहीं करते?
पूर्व बीजेपी सांसद और हिंदू नेता रामविलास वेदांती ने धर्म संसद के बाद कहा, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर अपने मन की बात करते हैं. वह रेडियो पर सफाई से लेकर स्वास्थ्य और तमाम ऐसे विषयों पर बोलते हैं. तो फिर वह अयोध्या में राम मंदिर पर चुप क्यों हैं. प्रधानमंत्री अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर अपने मन की बात क्यों नहीं करते?'
गौरतलब है कि इससे पूर्व आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और विश्व हिंदू परिषद के नेता प्रवीण तोगड़िया भी राम मंदिर का निर्माण का मुद्दा उठाते रहे हैं. तोगड़िया ने तो हाल ही यहां तक कहा कि जब केंद्र में अपने भाई मोदी की सरकार है तो मंदिर निर्माण को लेकर आंदोलन करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
शनि मंदिर के मुद्दे पर भी चर्चा
धर्म संसद में शनि शिंगणापुर मंदिर का मुद्दा भी उठा. काशी सुमेरू पीठ के शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने कहा, 'इस दुनिया में कुछ भी समान नहीं है तो फिर सिस्टम हर किसी के लिए समान कैसे हो सकता है. मुझे लगता है कि शनि शिंगणापुर में परंपरा को पालन करने की आवश्यकता है. मुझे लगता है कि प्रतिमा को सिर्फ पुजारियों द्वारा स्पर्श किया जाना चाहिए. इसमें प्रशासन को दखल नहीं देना चाहिए और अगर ऐसा होता है तो समाज में कलह की स्थिति बन सकती है.'
दांडी संन्यासी संघ के स्वामी ब्रह्माश्रम ने कहा, 'हम अपनी परंपरा नहीं बदलना चाहते. इस मुद्दे पर बेवजह की राजनीति हो रही है. अगर कोई परंपरा के साथ खिलवाड़ करता है तो यह घातक हो सकता है.'