संसद में यूपी से हर ओर से सवाल है कि क्या मुस्लिमों के सियासी अलंबरदारों की कौम में स्वीकार्यता खत्म हो रही है? 49 फीसदी मुस्लिम वोटरों वाले आजम खां के रामपुर से मुस्लिम प्रत्याशी की हार से बात कुछ और गाढ़ी हुई है. कांग्रेस के सलमान खुर्शीद तो मुख्य मुकाबले में भी नहीं पहुंच पाए जबकि उनके संसदीय क्षेत्र फरुखाबाद में मुस्लिम वोटरों की तादाद 20 फीसदी है.
तकरीबन 45 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं वाले सहारनपुर से इमरान मसूद को भी कामयाबी नहीं मिली. बीजेपी ने यहां भी परचम फहराया. राज्य में सबसे अधिक 49 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले रामपुर से मुस्लिम प्रत्याशी हार गया. यह तब हुआ जब यहां मुसलमानों के बड़े क्षत्रप और कौम में दूसरों से ज्यादा नजदीक सियासी दल सपा के महासचिव आजम खां न सिर्फ रहते हैं बल्कि उनकी सियासत का केंद्र भी यही शहर होता है.
मुस्लिमों के दूसरे अलंबरदार शाहिद मंजूर भी मेरठ में कौम के बीच पूरी तरह स्वीकार्य नहीं हुए. उनके वोटों में शाहिद अखलाक ने सेंध लगा दी, नतीजतन दोनों हार गए. हालांकि इस क्षेत्र में मुस्लिम वोटों के बिखराव की रवायत है. संभल और मुरादाबाद जैसे मुस्लिम बहुलता वाले शहर में किसी एक मुस्लिम नेता की स्वीकार्यता नहीं दिखी. यहां सपा और बीएसपी में मुस्लिम वोटों का इस कदर बंटवारा हुआ कि दोनों के प्रत्याशी हार गए.
श्रवस्ती में सपा के मुस्लिम प्रत्याशी की राह पीस पार्टी से लड़े मुस्लिम उम्मीदवार ने ही रोक ली. पीस पार्टी के प्रत्याशी को एक लाख से भी ज्यादा वोट मिले. 28 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटरों वाले अमरोहा संसदीय क्षेत्र में भी कमोबेश यही स्थिति रही. बीएसपी के मुस्लिम चेहरे नसीमुद्दीन सिद्दीकी भी अपने दल के वोटों का बंटवारा रोकने में कामयाब नहीं रहे, बेटे के लिए भी फतेहपुर में मुसलमानों को गोलबंद नहीं कर पाये.