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किरनमय नंदा का आरोप- मुलायम के फर्जी साइन कर जारी किए गए आदेश

समाजवादी पार्टी में कब्जे को लेकर जारी जंग के बीच अब साइन को लेकर भी नया विवाद खड़ा हो गया है. मुलायम सिंह द्वारा समाजवादी पार्टी से निकाले गए पुराने भरोसेमंद किरनमय नंदा ने आरोप लगाया है कि 1 जनवरी को जारी दो पत्रों में मुलायम सिंह यादव के दस्तखत अलग-अलग हैं. इस बयान के बाद साइन को लेकर नया विवाद शुरू हो गया है.

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किरनमय नंदा
किरनमय नंदा

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समाजवादी पार्टी में कब्जे को लेकर जारी जंग के बीच अब साइन को लेकर भी नया विवाद खड़ा हो गया है. मुलायम सिंह द्वारा समाजवादी पार्टी से निकाले गए पुराने भरोसेमंद किरनमय नंदा ने आरोप लगाया है कि 1 जनवरी को जारी दो पत्रों में मुलायम सिंह यादव के दस्तखत अलग-अलग हैं. इस बयान के बाद साइन को लेकर नया विवाद शुरू हो गया है.

गौरतलब है कि 1 जनवरी को अखिलेश गुट ने लखनऊ में अधिवेशन कर अखिलेश यादव को सपा अध्यक्ष बनाने का ऐलान किया था. इसके बाद मुलायम सिंह यादव ने इस अधिवेशन को असंवैधानिक बताते हुए दो नेताओं किरनमय नंदा और नरेश अग्रवाल को पार्टी से निकालने का आदेश जारी किया था और कहा था कि सपा के अध्यक्ष अभी मुलायम सिंह ही हैं. अब किरनमय नंदा के इस बयान से मामले ने नया मोड़ ले लिया है.

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आज तक से खास बातचीत में किरनमय नंदा ने कहा कि दोनों चिठ्ठियों में अलग-अलग दस्तखत हैं. किसी ने मुलायम सिंह यादव के फेक दस्तखत किए हैं. नंदा ने कहा कि मेरे पास दस्तखत फेक साबित करने के सबूत हैं. ये पार्टी को गुमराह करने के लिए कुछ लोगों की साज़िश है. नंदा ने ये भी कहा कि किससे शिकायत करें जब कोई सुनने वाला ही नहीं है.

पार्टी सिंबल की लड़ाई EC पहुंची
इस बीच, सपा के चुनाव चिन्ह साइकिल को लेकर लड़ाई चुनाव आयोग पहुंच गई है. सोमवार को मुलायम सिंह यादव ने चुनाव आय़ोग जाकर अपनी स्थिति स्पष्ट की. मंगलवार को अखिलेश यादव भी चुनाव आयोग से मिलने जा रहे हैं. दोनों पक्ष सपा के चुनाव चिन्ह पर अपना-अपना दावा कर रहे हैं.

जानें कौन हैं किरनमय नंदा
साल 2010 में सपा के महासचिव बनकर अमर सिंह की जगह लेने वाले नंदा अखिलेश के करीबी हैं. 72 साल के नंदा समाजवादी पार्टी के बंगाली बाबू हैं. वे फिलहाल यूपी से राज्यसभा सांसद हैं. कभी खुद मुलायम सिंह ने नंदा को एक कर्मठ और समर्पित नेता बताया था. वे पश्चिम बंगाल की लेफ्ट फ्रंट सरकार में साल 1982 से लेकर 2011 तक मत्स्य पालन मंत्री रहे हैं. पश्चिम बंगाल में कई साल तक सोशलिस्ट पार्टी के महासचिव रहे हैं. इसके बाद पश्चि‍म बंगाल सोशलिस्ट पार्टी का समाजवादी पार्टी में विलय हो गया, जिसके बाद नंदा 1996 से लेकर 2000 तक समाजवादी पार्टी के महासचिव भी रहे. साल 2000 में उन्होंने फिर सपा से अलग होकर पश्चि‍म बंगाल सोशलिस्ट पार्टी बना ली. साल 2010 में वह वापस सपा में लौट आए और अमर सिंह की जगह उन्हें महासचिव बना दिया गया. सपा में वे अमर सिंह विरोधी लॉबी के सदस्य माने जाते हैं.

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