दुनियाभर में ताजमहल को मुहब्बत का प्रतीक माना जाता है. यह सभी जानते हैं कि शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में इसे बनवाया था, लेकिन मुमताज महल को इस महल में किस तरह दफनाया गया यह आज भी एक रहस्य है. हालांकि, एक नई किताब ने इस रहस्य से पर्दा उठाने का दावा किया है. किताब में लिखा गया है कि मुमताज के शव को ममी बनाकर दफनाया गया था और मुमताज को दफनाने के लिए शाहजहां ने 17वीं सदी में मकबरे के रूप में ताजमहल का निर्माण करवाया.
विवादास्पद ई-बुक 'ताजमहल या ममी महल' के लेखक अफसर अहमद कहते हैं, 'ताजमहल के बारे में सच को छिपा दिया गया. यदि ताजमहल के निर्माण के समय ही सच का खुलासा हो जाता तो इस निशानी का निर्माण पूरी तरह असंभव हो जाता.' पत्रकार से लेखक बने अहमद ने अपनी किताब में मुमताज की मौत से जुड़े कई अज्ञात तथ्यों का भी खुलासा किया है. किताब में मुमताज की मौत और उनकी जिंदगी के चंद आखिरी दिनों के बारे में भी ब्योरा दिया गया है.
किताब में हैं कई सवालों के जवाब
अहमद बताते हैं कि अंतिम बार दफन किए जाने से पहले मुमताज को एक अमानत घर में दो बार-तीन बार दफन किया गया. लेकिन उस समय के दौरान उनके शव को किस तरह संरक्षित रखा गया? क्या मुगलों ने भी उसी तरीके को अमल में लाया जिसे प्राचीन मिस्र में लाया जाता था या इसमें कोई और तरीका अपनाया गया? क्या मुगलों के पास भी शव को संरक्षित रखने का तरीका था? सबसे बड़ा सवाल कि क्या मुमताज का शव अभी तक संरक्षित है? किताब में इन सारे सवालों का जवाब देने की कोशिश की गई है.
अहमद ने कहा कि वे मुमताज की मौत और उसके बाद उसके दफन के चारों तरफ गिरे रहस्य के पर्दे को उठाना चाहते हैं. शाहजहां के दरबारी लेखक इस पूरी घटना पर से पर्दा उठा सकते थे, लेकिन वे ऐसा नहीं कर सके क्योंकि उन्हें ऐसा कुछ भी खुलासा नहीं करने की हिदायत थी जिससे बादशाह की छवि खराब होने का खतरा हो.
लेखक ने कहा कि पाठकों को मुमताज की मौत और दफन के पीछे की सच्चाई जानने का अधिकार है. ई-किताब में यह भी जानने का प्रयास किया गया है कि मुगलों ने केवल इस्लामिक रिवाज का पालन किया या दफन के लिए दूसरे तरीके को अमल में लाया.
-इनपुट IANS से