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एटा लोकसभा सीट: कौन-कौन है उम्मीदवार, किसके बीच होगी कड़ी टक्कर

1984 में भारतीय लोक दल के जीत दर्ज करने के बाद यह सीट भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खाते में आ गई. 1989, 1991, 1996 और 1998 में यहां भारतीय जनता पार्टी के महकदीप सिंह शाक्य ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी. 1999 और 2004 एटा से लगातार दो बार समाजवादी पार्टी का परचम लहराया.

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एटा पर बीजेपी को टक्कर देने की फिराक में है सपा (ट्विटर)
एटा पर बीजेपी को टक्कर देने की फिराक में है सपा (ट्विटर)

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महान सूफी संत अमीर खुसरो की जन्मभूमि एटा को उत्तर प्रदेश के राजनीतिक लिहाज से काफी अहम माना जाता है. एटा संसदीय सीट उत्तर प्रदेश के चर्चित लोकसभा सीटों में शुमार की जाती है और पिछली बार की तरह इस बार भी इस सीट पर सभी की नजर रहेगी क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह मैदान में हैं और उन पर चुनाव में जीत हासिल करने का दबाव है जबकि उनके खिलाफ इस बार सपा-बसपा की जोड़ी है.

एटा संसदीय सीट पर 14 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जिसमें मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राजवीर सिंह उर्फ राजू भईया और समाजवादी पार्टी के देवेंद्र सिंह यादव के बीच है. इस सीट पर कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया है. कांग्रेस ने यूपी में 3 क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन कर रखा है. इसी गठबंधन के तहत कांग्रेस ने यह सीट राष्ट्रीय जन अधिकार पार्टी (आरजेएपी) के लिए छोड़ी है और आरजेएपी ने सूरज सिंह को मैदान में उतारा है. 8 कई क्षेत्रीय दलों के अलावा और 5 निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.

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कानपुर और फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट से सटे एटा में पहला चुनाव (1952) कांग्रेस ने जीता था, लेकिन उसके बाद यहां से हिंदू महासभा ने पहले 1957 फिर 1962 में जीत दर्ज की. हालांकि, उसके बाद कांग्रेस ने 1967 और 1971 का आम चुनाव जीतकर जोरदार वापसी की. 1977 में चली कांग्रेस विरोधी लहर में चौधरी चरण सिंह की भारतीय लोकदल ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी. 1980 के चुनाव में यहां से कांग्रेस ने आखिरी बार जीत हासिल की थी.

1984 में भारतीय लोक दल के जीत दर्ज करने के बाद यह सीट भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खाते में आ गई. 1989, 1991, 1996 और 1998 में यहां भारतीय जनता पार्टी के महकदीप सिंह शाक्य ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी. 1999 और 2004 एटा से लगातार दो बार समाजवादी पार्टी का परचम लहराया.

2009 के लोकसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने भारतीय जनता पार्टी से अलग हो अपनी पार्टी बनाई और चुनाव में जीत भी हासिल की. 2014 के चुनाव में कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह को टिकट मिला और उन्होंने बड़ी जीत हासिल की.

2014 का जनादेश

जातीय समीकरण के लिहाज से देखा जाए तो एटा संसदीय क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण है. एटा क्षेत्र में लोध, यादव और शाक्य बहुल जातियां रहती हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में इस सीट पर करीब 16 लाख मतदाता थे, जिसमें से 8.5 लाख पुरुष और 7.2 लाख महिला मतदाता हैं. एटा लोकसभा क्षेत्र में कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं, इनमें कासगंज, अमॉपुर, पटियाली, एटा और मारहरा विधानसभा सीटें शामिल हैं.

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2014 में देश में चली मोदी लहर का फायदा एटा में भी मिला और भारतीय जनता पार्टी ने समाजवादी पार्टी को सीधे तौर पर करारी मात दी. एटा में हुए 58 फीसदी मतदान में बीजेपी के राजवीर सिंह को करीब 51 फीसदी वोट मिले तो उनके प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को सिर्फ 29 फीसदी वोट मिले थे.

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