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Exclusive: चित्रकूट की खदानों में मजदूर नाबालिग लड़कियों का यौन शोषण

ये नरकलोक है दिल्ली से सैकड़ों किलोमीटर दूर बुंदेलखंड के चित्रकूट में, जहां गरीबों की नाबालिग बेटियां खदानों में काम करने के लिए मजबूर हैं, लेकिन ठेकेदार और बिचौलिये उन्हें काम की मजदूरी नहीं देते. मजदूरी पाने के लिए इन बेटियों को करना पड़ता है अपने जिस्म का सौदा.

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चित्रकूट में काम के बदले यौन शोषण की शिकार नाबालिग युवती (फोटो ग्रैब)
चित्रकूट में काम के बदले यौन शोषण की शिकार नाबालिग युवती (फोटो ग्रैब)

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  • मजदूरी पाने के लिए बेटियों को करना पड़ता है जिस्म का सौदा
  • सूचना मिलते ही कठोर कार्रवाई करते हैं: DM शेषमणि
  • ऐसी कोई बात प्रकाश में नहीं आई: ASP आरएस पांडे
  • योगी सरकार तुरंत सख्त एक्शन लेः स्वाति मालिवाल

कोरोना संकट के दौर में चित्रकूट की खदानों में नाबालिग लड़कियों के साथ यौन शोषण का मामला सामने आया है. आज तक की खास रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि खदानों में नाबालिग लड़कियों के साथ यौन शोषण किया जाता है.

आज गरीबी में पलती जिंदगी सबसे बड़ा अभिशाप है. दो जून की रोटी के जुगाड़ के लिए हड्डियां गला देने वाली मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन बस इससे काम नहीं चलता. यहां रोटी के दो टुकड़े और चंद खनकते सिक्के फेंकने की एवज में दरिंदे करते हैं बेटियों के जिस्म का सौदा.

ये नरकलोक है दिल्ली से सैकड़ों किलोमीटर दूर बुंदेलखंड के चित्रकूट में. जहां गरीबों की नाबालिग बेटियां खदानों में काम करने के लिए मजबूर हैं, लेकिन ठेकेदार और बिचौलिये उन्हें काम की मजदूरी नहीं देते. मजदूरी पाने के लिए इन बेटियों को करना पड़ता है अपने जिस्म का सौदा.

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यहां इन बच्चियों की उम्र तो गुड्डे गुड़ियों से खेलने की है. कॉपी कलम लेकर स्कूल जाने की उम्र है, लेकिन गरीबी और बेबसी ने इनके बचपन में अंगारे भर दिए हैं. परिवार को पालने का जिम्मा इनके कंधों पर आ चुका है. 12-14 साल की बेटियां खदानों में काम करने जाती हैं, जहां दो सौ तीन सौ रुपये के लिए उनके जिस्म की बोली लगती है.

कर्वी की रहने वाली सौम्या (बदला हुआ नाम) कहती है, 'जाते हैं और काम पता करते हैं तो वो बोलते हैं कि अपना शरीर दो तभी काम पर लगाएंगे, हम मजबूरी में ऐसा करते हैं, फिर भी पैसे नहीं मिलता. मना करते हैं तो बोलते हैं कि काम पर नहीं लगाएंगे. मजबूरन हमें यह सब करना पड़ता है.'

परिवार चलाने की जिम्मेदारी

इस गांव की ये मासूम बेटी भी पहाड़ की खदानों में पत्थर उठाने जाती है. जिस उम्र में इसके हाथों में कॉपी कलम होनी चाहिए थी, उन हाथों से इसे पत्थर उठाने पड़ते हैं. परिवार को पालने की जिम्मेदारी इसी मासूम के कंधे पर है. हाड़तोड़ मेहनत करने के बावजूद इस मासूम को अपने मेहनताने के लिए अपने तन का सौदा करना पड़ता है. कुछ बोलती है तो फिर पहाड़ से फेंक देने की धमकी मिलती है.

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सौम्या (बदला हुआ नाम, निवासी डफई गांव) कहती है, 'नाम नहीं बताएंगे, नाम कह देंगे मर जाएंगे. हमको इसलिए नाम नहीं बताता. धमकी भी देते हैं कि काम करना है तो करो जो इस तरह का काम करोगे तभी लगाएंगे नहीं तो चली जाओ. फिर हम करते हैं….(क्या तीन चार आदमी रहते हैं ?) हां, ऐसा तो होता है पैसे का लालच करा देते हैं ऐसा तो होता है...अगर नहीं जाएंगे तो कहते हैं कि हम तुमको पहाड़ से फेंक देंगे तो हमें जाना पड़ता है.'

सोचिए इस मासूम के दिल पर क्या बीत रही होगी और क्या बीत रही होगी उसकी मां के दिल पर, जिसने बेटी के लिए न जाने कितने सपने देखे होंगे, लेकिन उन सपनों में वहशियों ने अंगारे भर दिए. मां सब कुछ जानते हुए भी अपमान का जहर पीकर रह जाती है.

सौम्या की मां (घर के भीतर से) कहती हैं, 'बोलते हैं कि काम में लगाएंगे जब अपना शरीर दोगे. मजबूरी है पेट तो चलाना है तो कहती है चलो भाई हम काम करेंगे. 300-400 दिहाड़ी है. कभी 200 कभी 150 देते हैं. घर चलाना है परिवार भूखे ना सोए. पापा का इलाज भी कराना है.'

सौम्या के पिता कहते हैं कि अब क्या बताएं गरीबी जैसे हम लोग झेल रहे हैं. छोटे बच्चे हैं कमा के लाते हैं. किसी दिन खाए किसी दिन ऐसे ही सो गए.

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14 साल की बिंदिया की कहानी

महज 14 साल की है बिंदिया (नाम बदला हुआ) जो चित्रकूट के कर्वी में रहती है. पिता नहीं हैं. स्कूल जाने की उम्र में ये बेटी पहाड़ों की खदानों में पत्थर ढोती है. पढ़िए, इस बेटी की जुबानी, यहां के नरकलोक की कहानी.

बिंदिया, निवासी कर्वी (चेक कुर्ता में है) कहती है, 'पहाड़ के पीछे बिस्तर लगा है नीचे, लेकर जाते हैं. वहीं यह सब चलता है. नहीं करते तो मारते हैं गाली देते हैं. चिल्लाते हैं, रोते हैं दर्द होता है, क्या करें सह लेते हैं... दुख तो बहुत होता है कि मर जाए गांव में ना रहे अपन पेट रोटी तो चलाएंगे जैसे चलाएं.'

बिंदिया इस समय स्कूल में नहीं पढ़ रही है क्योंकि मास्टरजी ने स्कूल से नाम काट दिया. अगर पढ़ती तो शायद सातवीं-आठवीं में होती.

जिंदगी पहाड़ों के चक्कर काटने लगी, रही सही कसर लॉकडाउन ने पूरी कर दी. परिवार का पेट पालने के लिए दरिंदों की हवस के नरकलोक में जाने के सिवा कोई चारा नहीं बचा.

बिंदिया कहती है, 'अगर मेकअप करके नहीं जाएं तो बोलता है कि पैसा देते हैं तो तुम उसका क्या करती हो. 100 रुपये में क्या होता है. पायल, हाथ के कंगन बाजार में लेते हैं जाकर. जो नहीं लेते हैं तो कहते हैं कि पैसा खा लेती हो.'

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इस बेटी की बेबसी देखिए, परिवार पालने के लिए रोजाना दो-तीन सौ रुपये कमाने पड़ते हैं, और इसके लिए इसे अपना जिस्म दरिंदों के आगे परोसना पड़ता है. बेबस मां अपनी बेटी की नरक बन चुकी जिंदगी को चुप्पी साधकर देखती रह जाती है.

बिंदिया कि मां बताती है, 'जब से मजदूरी कर रहे हैं. अभी तक नहीं बताया. 3 महीने काम बंद था. 3 महीने से छटपटा रहे हैं. भाग रहे हैं. कैसे हमारा पेट पले, हमारी औलाद का पेट पले. तो अपना शरीर बिके या हमारी इज्जत जात तो है. बच्चों का पेट पले यह कहां तक चलेगा दीदी बताओ'

चित्रकूट की पहाड़ियों पर करीब 50 क्रशर चलते हैं. भुखमरी और बेरोजगारी की मार झेल रहे यहां के कोल समाज के लिए यही रोजी रोटी का सहारा है. इनकी गरीबी का फायदा उठाकर बिचौलिये और ठेकेदार बच्चियों का शोषण करते हैं. लोगों की क्या मजाल जो इनके खिलाफ आवाज भी उठा सके.

कई दिनों की पड़ताल आजतक की टीम को गोंडा गांव लेकर आई, महिलाऐं इतनी डरी हुई थी कि वो नहीं चाहती थी कि कोई इनको हमसे बात करता देखे. हैवानियत के इस घिनौने खेल पर आतंक का साया है जिसकी आड़ में न जाने कितनी मां बेटियों की अस्मियता तार-तार हो रही है.

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मां को साथ नहीं जाने देते

बुंदेलखंड का ये वो नरकलोक है, जहां सरकार की योजनाएं नहीं पहुंचतीं, जहां जिंदगी तो जैसे उधार पर है. इलाके में चल रहे गैर कानूनी खनन से बंधी है गांव वालों की रोजी रोटी. यहां के खनन ठेकेदार गांव की लड़कियों को काम पर ले जाते हैं. इन लड़कियों की उम्र 10 से लेकर 18 साल के बीच होती है. लड़की की मां अगर काम पर जाना चाहे तो उसे भगा दिया जाता है.

लड़कियों की मेहनत-मजदूरी के बावजूद उन्हें तब तक मेहनताना नहीं मिलता, जब तक कि वो ठेकेदार और उसके साथियों की हवस का शिकार बनने के लिए राजी न हो जाएं.

इस नरकलोक तक इंडियन पैनल कोड के कानून नहीं पहुंचते. यहां बाल अधिकारों से जुड़ी संस्थाओं के हाथ नहीं पहुंचते. बचपन की रक्षा, उन्हें शोषण से बचाने के तमाम विधि विधान यहां तक नहीं पहुंचते. शोषण से तंग आकर तमाम महिलाओं ने पहाड़ों पर काम छोड़ दिया. बच्चों को वहां भेजना छोड़ दिया. इस बीच आजतक पर चित्रकूट में बच्चियों के साथ यौन शोषण का खुलासा होने के बाद स्वाति मालिवाल ने ट्वीट कर राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार से तुरंत सख्त एक्शन लेने की मांग की.

इस इलाके में रहने वाले ज्यादातर लोग कोल आदिवासी हैं, जो दलित वर्ग की श्रेणी में आते हैं. यहां के जल और जंगल पर जैसे उनका कोई अधिकार ही नहीं है.

डॉक्टर विशेष गुप्ता, अध्यक्ष राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग, प्रदेश कहते हैं कि सरकार की जो योजनाएं हैं उन महिलाओं को उसका लाभ क्यों नहीं मिल पा रहा है. वहां के बच्चे क्यों उच्च शिक्षा से दूर हैं. निश्चित तौर पर यह जांच का विषय है.

कोई बात प्रकाश में नहीं आईः ASP

यहां के नरकलोक के बारे में हमारी संवाददाता मौसमी सिंह ने तमाम आला अधिकारियों से बातचीत की, लेकिन उन्हें तो जैसे ऐसी घटनाओं का पता ही नहीं.

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शेषमणि पांडेय, जिलाधिकारी, चित्रकूट कहते हैं कि किसी भी मामले पर हम लोगों को सूचना मिलते ही कठोर कार्रवाई करते हैं. किसी को भी इस तरह की अगर कहीं भी कोई शिकायत हुई है तो वह बहुत गंभीर है.

आरएस पांडे, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक चित्रकूट, कहते हैं कि ऐसी कोई बात प्रकाश में नहीं आई. हम लोग पूरी तरह सतर्क हैं. इसीलिए सूचना का संकलन किया जा रहा है ताकि किसी के साथ कोई गलत ना हो.

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प्रशासन को वाकई इस नरकलोक के बारे में कुछ पता नहीं है या फिर सब कुछ पता होने के बावजूद वो इधर से आंखें मूंदे है, ये तो जांच का विषय है.

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