उत्तर प्रदेश में खनन घोटाले में नया मोड़ आ गया है. मायावती सरकार के दौरान 2009-10 के दौरान हमीरपुर और बुंदेलखंड में खनन पर टेंडर के लिए नियम बने थे. मौजूदा सरकार ने निविदा देने के नाम पर जिन अखबारों में विज्ञापन दिए थे, उनका इलाके लोगों ने नाम तक नहीं सुना था. सर्कुलेशन के नाम पर 10-20 कॉपी निकलने वाले 2 पन्नों के अखबारों में खनन के पट्टे जारी करने के लिए छोटा सा विज्ञापन दिया गया और सियासी रसूख वाले करीबियों के आवेदन लिए गए. 'आजतक' के पास इन अखबरों की कॉपी मौजूद है.
साल 2012 में सत्ता बदलते ही समाजवादी पार्टी की सरकार ने खनन का मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया, और नए सिरे से प्रक्रिया शुरू की गई. लेकिन नई प्रक्रिया में भी घोटाले की साजिश देखी गई. सीबीआई सूत्रों ने बताया कि आवेदन करने वाले मूल आवेदकों में से 32 के चालान में नाम बदलकर सपा सरकार के खास लोगों को खनन के पट्टे दिए गए. हमीरपुर की जिलाधिकारी बी, चंद्रकला ने नियमों को ताक पर रखकर बगैर टेंडर के 60 पट्टे आवंटित किए. इनमें सपा के एमएलसी रमेश मिश्रा उनके परिवार और तमाम करीबियों समेत रसूखदार लोगों को पट्टे दिए गए. ये सभी पट्टे 2012-13 के दौरान आवंटित किए गए.
'आजतक' के पास मौजूद दस्तावेज बताते हैं कि कई पट्टे एक दिन में ही दे दिए गए. इनमें से 13 पट्टे एक साथ तत्कालीन खनन मंत्री और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सहमति से दिए गए. कई पट्टे बाद में खनन मंत्री गायत्री प्रजापति के आदेश से दिए गए.
इस मामले में कोर्ट में याचिका दायर करने वाले विजय द्विवेदी ने बताया कि सरकार के करीबियों को पट्टा मिला. इसके बाद न सिर्फ तय जगह पर खनन किया गया बल्कि हमीरपुर की लाल सोना उगलने वाली बेतवा नदी में मनमाने तरीके से मोरंग बालू के करोड़ रुपये के खनन किए गए. उन्होंने बताया कि इसके खिलाफ जब इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई तो कोर्ट ने रोक लगाते हुए सूबे के अफसरों से अवैध खनन मामले में हलफनामा मांगा, लेकिन अफसरों ने कोर्ट को गुमराह किया.
गौरतलब है कि जिस दौरान अफसरों ने अदालत में खनन बंद होने का दावा किया, उसी दौरान खनन जोरों पर था. उस दौरान हर महीने दर्जनों ट्रक आसपास के थानों में अवैध खनन वाले मोरंग के साथ पकड़े गए. 'आजतक' के पास थानों में पकड़ गए ट्रकों की आधिकारिक सूची उपलब्ध है. ऐसे कई दस्तावेज हैं जिससे साफ है कि बंद होने की अवधि में मात्रा से अधिक खनन करने पर कई लोगों पर प्रशासन ने लाखों का जुर्माना लगाया और उसकी रसीद भी दी. सीबीआई सूत्रों की मानें तो ये सारा काम तात्कालीन डीएम, खनन अधिकारी और खनन मंत्रालय की मिलीभत से हुआ. उस वक्त अखिलेश यादव खनन मंत्री भी थे, लिहाजा जांच में देर सबेर उन पर भी आंच आनी तय है.