
लखीमपुर हिंसा मामले में पुलिस की तफ्तीश में अब तक साफ हो गया कि 3 अक्टूबर को तिकुनिया में सोची-समझी साजिश के तहत प्रदर्शनकारी किसानों की हत्या की गई. इस मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा समेत 13 आरोपी गिरफ्तार भी कर लिए गए. लखीमपुर हिंसा और केंद्रीय राज्य मंत्री के नाम पर सियासत तेज है. लेकिन इस सियासी माहौल के बीच अपने बेटे, भाई और पिता को खाने वाले परिवारों की हालत क्या है? फिर चाहे वह किसान हों जिनको आशीष मिश्रा की जीप से रौंद डाला गया था, या फिर वह बीजेपी कार्यकर्ता हों, जिनको बेकाबू भीड़ ने पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया था.
दिल्ली-लखनऊ से लेकर लखीमपुर तक हर तरफ चर्चा तेज हो गई कि तिकुनिया में मारे गए किसान हादसे में नहीं, सोची-समझी साजिश के तहत हत्या हुई थी. अब न्याय की उम्मीद कितनी बची है? इसी को परखने के लिए 'आजतक' सबसे पहले पहुंचा लखीमपुर के धौराहरा में रहने वाले किसान नक्षत्र सिंह के घर पर पहुंचे. 3 अक्टूबर को हुई हिंसा में धौराहरा के नामदार पुरवा में किसान नक्षत्र सिंह की बेवा पत्नी, बेटा, सियानी बेटी और पोता-पोती मौजूद हैं. मृतक के बेटे जगजीत को लगता है कि न्याय नहीं हो रहा है. अब तो पहली मांग है कि जब तक केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा का इस्तीफा नहीं होता, तब तक न्याय नहीं हो पाएगा. जब मीडिया के साथ बदसलूकी बदजुबानी कर सकते हैं तो फिर वह कुछ भी करवा सकते हैं.
'गुंडों वाली मानसिकता'
कुछ ऐसी ही मांग इस हिंसा में मारे गए बहराइच के नानपारा में रहने वाले दलजीत सिंह के बड़े भाई जगजीत सिंह ने भी की है. सोची-समझी साजिश के तहत किसानों को रौंदने के सवाल पर जब आशीष मिश्रा के मंत्री पिता अजय मिश्रा से सवाल पूछा गया तो मंत्री जी भड़क गए, जिस पर मारे गए किसान के बड़े भाई कहते हैं कि गुंडों वाली मानसिकता है और अगर अजय मिश्रा को मंत्री पद से बर्खास्त नहीं किया गया तो दोबारा आंदोलन होगा.
इनको भी न्याय की उम्मीद
यह पक्ष उन बीजेपी कार्यकर्ताओं के परिजनों का भी है, जिनको घटना के बाद किसानों की शक्ल में आए उपद्रवियों ने पीट-पीट कर मौत के घाट उतार दिया. आज भी केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के ड्राइवर हरिओम मिश्रा का परिवार हो या बीजेपी कार्यकर्ता शुभम मिश्रा का परिवार, उन्हें न्याय की आस है. यह परिवार जानना चाहते हैं कि आखिर किसने उनके बेटों को बेरहमी से मार डाला? अब तक की हुई कार्रवाई से इन परिवारों की नाउम्मीदी ही बढ़ी है.
लाश ही वापस आई
शुभम मिश्रा जो गांधी जयंती (2 अक्टूबर) वाले दिन अपने घर से तिकुनिया में हो रहे दंगल कार्यक्रम और उपमुख्यमंत्री के स्वागत का इंतजाम करने निकला था. 24 साल का शुभम घर के लिए निकला तो पिता से कहकर गया कि कार्यक्रम खत्म होने के बाद 3 अक्टूबर की शाम तक लौट आएगा, लेकिन शुभम एक बार घर से गया तो फिर उसकी लाठी-डंडों से कुटी-पिटी हुई लाश ही वापस आई. शव की शिनाख्त हाथ में बंधे कलावे और शरीर पर पहने एक कपड़े से हुई. घटना को ढाई महीने हो चुके हैं. एक साल की बेटी एंजेल को अभी भी अपने पिता का इंतजार है. वह अपने पापा की तस्वीर को छूती है और पापा के बारे में पूछती है. यह मासूम नहीं जानती कि उसके पापा कभी लौटकर आने वाले नहीं हैं.
12,000 की नौकरी करता था हरिओम
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के ड्राइवर हरिओम मिश्रा का परिजनों का आरोप है कि हरिओम ही आशीष मिश्रा की थार जीप चला रहा था. घटना के बाद हरिओम मिश्रा की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. 12000 रुपये की नौकरी करने वाले हरिओम की मां का रो-रोकर बुरा हाल है. घर में पिता राधेश्याम मिश्रा बिस्तर पर बीमारी से जूझ रहे हैं.
कार्रवाई क्यों नहीं?
सयानी बहन महेश्वरी किसी तरह से मां का ख्याल रखती है, तो छोटा भाई श्रीराम मिश्रा अब घर की खेती संभाल रहा है. मृतक हरिओम की मां निशा मिश्रा जानना चाहती हैं कि उनके बेटे को किसने इतनी बेरहमी से मार डाला? अब तक उसके बेटे की हत्या करने वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही?
-संतोष कुमार की रिपोर्ट