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सहकारी बैंकों में पुराने नोट की लेन-देन बंद होने से परेशान है किसान

बैंक कर्मचारी ने बताया कि यहां ना तो उसके ₹2000 बदले जा सकते हैं और ना ही वह इसे अपने खाते में जमा कर सकता है. नोट बदलने की जगह उसे अखबार में छपी वह खबर दिखा दी गई जिसमें लिखा था कि कॉपरेटिव बैंकों को पुराने नोट बदलने और जमा करने की इजाजत नहीं है.

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सहकारी बैंकों में नोट ना चलने से परेशान लोग
सहकारी बैंकों में नोट ना चलने से परेशान लोग

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केंद्र सरकार के द्वारा सहकारी बैंकों में पुराने नोटों का लेन-देन बंद करने ऐलान करने के बाद से ही आम लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. गुरुवार की दोपहर में जब नौमीलाल हाथ में ₹500 के चार नोट लेकर लखनऊ के मोहनलालगंज में जिला कॉपरेटिव बैंक पहुंचे तो वहां इक्का-दुक्का लोगों को ही देख कर वह खुश हो गए. नौमीलाल ने सोचा कि वो जल्दी से अपने ₹2000 बदलवाकर कुछ गेहूं, खेतों के लिए खाद और घर के कुछ जरूरी चीजें खरीद लेंगे. लेकिन कॉपरेटिव बैंक के कर्मचारी ने उनसे जो कुछ कहा उसे सुनकर नौमीलाल के पांव तले जमीन ही खिसक गई.

बैंक कर्मचारी ने बताया कि यहां ना तो उसके ₹2000 बदले जा सकते हैं और ना ही वह इसे अपने खाते में जमा कर सकता है. नोट बदलने की जगह उसे अखबार में छपी वह खबर दिखा दी गई जिसमें लिखा था कि कॉपरेटिव बैंकों को पुराने नोट बदलने और जमा करने की इजाजत नहीं है.

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दिहाड़ी मजदूरी करने वाले नौमी लाल को 500 और 1000 रुपये के नोट बंद होने के बारे में तो पता था लेकिन अपने कॉपरेटिव बैंक पर उसे भरोसा था जहां उसका अकाउंट उसके चाचा ने 20 साल पहले खुलवाया था. तब से लेकर आज तक नौमीलाल ना तो किसी और बैंक में गया और ना ही उसने कभी किसी और बैंक में खाता खुलवाने की कोशिश की. उसे लगता था कि उस जैसे गरीब लोगों के लिए कॉपरेटिव बैंक की सबसे ठीक जगह है.

घर में आटा-चावल सब खत्म
नौमी लाल को आज पैसों की सख्त जरुरत थी. परिवार में चार बच्चे हैं, जिन्हें पालने के लिए वह खुद और उसकी पत्नी दोनों मजदूरी करते हैं. ऐसा कई बार होता था जब उसे मजदूरी नहीं मिलती थी इसीलिए उसने अपने गांव के पास ही एक खेत बटाई पर ले लिया. यानि खेत किसी और का लेकिन नौमीलाल वहां अपनी पत्नी के साथ मेहनत करेगा और जो फसल होगी उसका आधा हिस्सा उसे मिल जाएगा. लेकिन नोट बंदी के बाद ना तो आसानी से काम मिल रहा था और ना ही खेतों में काम करने के लिए खाद पानी का इंतजाम हो पा रहा था. अब घर में आटा चावल सब कुछ खत्म हो चुका था.

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पांच दिनों की दिहाड़ी के बदले दिए 500 के नोट
इस पूरे हफ्ते जब संसद में पूरा का पूरा विपक्ष मोदी के खिलाफ एकजुट होकर नोट बंदी के खिलाफ मुहिम चला रहा था, तब नौमी लाल इन सब से बेखबर एक आदमी के यहां मजदूरी कर रहा था जो अपना नया मकान बनवा रहा था. नौमीलाल खुश था की ऐसे मुश्किल दिनों में 5 दिन की दिहाड़ी मिल गई. लेकिन पांच दिनों के बाद जब उस आदमी ने नौमी लाल के हाथ पर मजदूरी के नाम पर ₹500 के चार पुराने नोट रख दिए है तो नौमी लाल का चेहरा उतर गया. लेकिन उस आदमी ने कहा कि अभी उसके पास देने को नए नोट नहीं हैं और वह पुराने नोट को अपने बैंक ले जाकर बदलवा सकता है या अपने खाते में जमा कर सकता है. यह बात नौमीलाल को किसी ने नहीं बताई कि कॉपरेटिव बैंक पुराने नोट ना तो इस बदल सकते हैं ना ही जमा कर सकते हैं.

उसके बाद वह अपना पुराना नोट लेकर दो बैंकों में गया लेकिन उसका नंबर आने से पहले ही बैंक ने कहा कि अब पैसे खत्म हो गए. कॉपरेटिव बैंक के कर्मचारी ने जब उसे यह बताया की नोट बदलने की आखिरी तारीख आज तक ही है, तो बदहवास होकर वह एक बार फिर पंजाब नेशनल बैंक गया जहां आखिरकार उसका नोट बदल दिया गया.

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लेकिन नौमीलाल जैसे तमाम ऐसे लोग हैं जिनका खाता अपने कॉपरेटिव बैंक के अलावा कहीं नहीं हैं. 80 साल के बुजुर्ग श्री किशन इस बात से हैरान हैं कि जो नोट पिछले महीने इसी बैंक ने दिए थे, वही बैंक अब इसे वापस लेने फिर क्यों मना कर रहा है. कॉपरेटिव बैंक के कर्मचारी अपने ग्राहकों को जवाब देते देते परेशान हैं. उन्हें डर है कि अब लोगों का भरोसा कॉपरेटिव से उठ जाएगा और सालों पुराने ग्राहक भी अब उन्हें छोड़कर चले जाएंगे.

पुराने नोटों का क्या करें ?

सरकार भले ही दावा कर रही हो की खाद और बीज के लिए किसानों की मदद की जाएगी, लेकिन हकीकत कुछ और है. उत्तर प्रदेश में किसानों को खाद बेचने वाले साधन सहकारी समिति के सचिव काशी प्रसाद यादव बताते हैं कि खाद बेचने वाली समितियों के बैंक खाते भी इन्हीं कॉपरेटिव बैंकों में है, अगर वह किसानों से पुराने नोट लेकर खाद देना शुरू भी कर दें तो उन पुराने नोटों का करें क्या, क्योंकि कॉपरेटिव बैंक उनसे भी पुराने नोट लेने को तैयार नहीं है.

लखनऊ जिला सहकारी बैंक के कर्मचारी आशीष कुमार बताते हैं कि सरकार के इस कदम से सहकारी बैंकों से लोगों का भरोसा उठ गया है. गांव में तमाम किसान ऐसे हैं जिनका खाता कॉपरेटिव बैंक के अलावा कहीं और है ही नहीं. काला धन रोकने के लिए उठाया गया कदम ऐसे लोगों के लिए बहुत भारी पड़ रहा है. किसान खेती का काम-धाम छोड़कर दो हजार रुपया बदलवाने के लिए बैंकों की लाइन में लगे हैं और उनकी सुनने वाला कोई नहीं है.

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