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शिव की नगरी काशी में भले अभी बहुत बारिश नहीं हुई हो, लेकिन पहाड़ों पर इंद्र की मेहरबानी का आलम ये है कि गंगा में बाढ़ जैसे हालात बन हुए हैं. बनारस के जीवंत घाटों पर इसका असर दिखने लगा है. गंगा के लगातार बढ़ते जलस्तर के चलते अब नदी के तटीय इलाकों पर बसने और आजीविका चलाने वाले लोग पलायन करने को मजबूर हैं. बाढ़ ने तट पर बने लगभग सभी छोटे मंदिरों और देवालयों को डुबोना शुरू कर दिया है और ये धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़ रही है.
उठाई चौकी-छतरी, चले ऊपर की ओर
गंगा में आई बाढ़ से डरे-सहमे लोग अब गंगा घाट से चौकी और छतरी के साथ ऊपर की ओर पलायन करने लगे है. इतना ही नहीं दशाश्वमेध घाट पर मौजूद जल पुलिस लगातार बाढ़ के खतरे के बारे में अनाउंसमेंट करके लोगों को आगाह कर रही है. जल पुलिस लोगों को गहरे पानी में न जाने और नाव पर निर्धारित सवारी को लाइफ जैकेट के साथ बैठाने की भी हिदायत दे रही है.
देव-दीपावली तक सामान्य होंगे हालात
हालांकि, अभी गंगा का जलस्तर खतरे के निशान से 11 मीटर और चेतावनी निशान से लगभग 10 मीटर नीचे है, लेकिन गंगा घाट किनारे पूजा-पाठ कराने वाले पंडा-पुजारियों में से एक अनितेश उपाध्याय अपनी छतरी और चौकी को हटाते हुए बताते हैं कि गंगा का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है. इसलिए वो अपने सामान को सुरक्षित जगह पर ले जा रहे हैं.
अब आने वाली बाढ़ की वजह से त्रउनकी आजीविका अगले 2 महीने तक प्रभावित रहेगी. यही बात एक अन्य पंडा रमेश त्रिपाठी ने भी की. वहीं गंगा आरती कराने वाली संस्था की सदस्य किशोरी रमन दुबे की मानें तो इस बाढ़ का असर तीन महीने तक रहेगा. बाद में देव-दीपावली की तैयारियों के साथ ही गंगा घाट की साफ-सफाई होगी और तब जाकर जनजीवन सामान्य होगा.