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BRD अस्पताल त्रासदी: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से मांगा 8 हफ्ते का समय, अब जनवरी 2023 में होगी सुनवाई

याचिककर्ता के वकील ने CJI के सामने मामले को उठाते हुए इस त्रासदी की जांच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज की निगरानी में कराए जाने की मांग की है. याचिकाकर्ता की ओर से जांच की मांग उठाते हुए कहा गया कि ऑक्सीजन की सप्लाइ के लिए एक सिस्टम बनाये जाने की ज़रूरत है.

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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दिया 8 हफ्तों का समय
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दिया 8 हफ्तों का समय

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में अगस्त 2017 में 63 बच्चों की मौतों के मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज की निगरानी में कराए जाने की मांग की गई है. दरअसल, मामले की सुनवाई के दौरान याचिककर्ता के वकील ने CJI के सामने मामले को उठाते हुए इस त्रासदी की जांच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज की निगरानी में कराए जाने की मांग की है. याचिकाकर्ता की ओर से जांच की मांग उठाते हुए कहा गया कि ऑक्सीजन की सप्लाइ के लिए एक सिस्टम बनाये जाने की ज़रूरत है.

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इस पर CJI जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ये नीतिगत मामला है. आप  हाई कोर्ट क्यों नहीं जाते? उन्होंने कहा कि वैसे भी स्वास्थ्य केन्द्र का नहीं, राज्य का विषय है. हम संसद को इस पर क़ानून बनाने का निर्देश कैसे दे सकते हैं? इसके जवाब में याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि स्वास्थ्य संविधान की समवर्ती सूची के अंतर्गत आता है. वैसे भी हम देख चुके हैं कि कोरोना के दौरान कितनी दिक्कतें हुईं.

वहीं केन्द्र सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि मेडिकल ऑक्सीजन और उपकरणों के सही इस्तेमाल को लेकर दिशानिर्देश तैयार कर लिए जाएंगे. इसमे 8 हफ्ते लग जाएंगे. इसके बाद CJI ने केंद्र सरकार को आठ हफ्ते मे दिशा-निर्देश तय कर कोर्ट में जवाब दाखिल करने को कहा. अब इस मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2023 के तीसरे हफ्ते में की जाएगी. 

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गौरतलब है कि अगस्त 2017 में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से 60 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई थी. जिसके बाद इस मामले में डॉ. कफील खान को निलंबित कर दिया गया था. इस मामले में डॉ. कफील समेत 9 लोगों पर आरोप था. अपना निलंबन खत्म कराने को लेकर डॉ. कफील ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) से भी मदद मांगी थी.

इससे पहले इसी साल अगस्त में राज्य सरकार ने 24 फरवरी 2020 को दिए दोबारा विभागीय जांच के आदेश को वापस ले लिया था. सरकार ने इस मामले में 15 अप्रैल 2019 को जांच अधिकारी की ओर से दायर जांच रिपोर्ट को ही मान लिया था. इस रिपोर्ट में डॉ. कफील खान को निर्दोष पाया गया था. रिपोर्ट में कहा गया था कि डॉ. कफील खान के खिलाफ भ्रष्टाचार या लापरवाही के सबूत नहीं मिले हैं.

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