वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग है या फव्वारा? इसकी सच्चाई आज सामने आ सकती है, कोर्ट कमिश्नर आज अपनी रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल करेंगे. रिपोर्ट दाखिल होने से पहले आजतक ने शिवलिंग या फव्वारे के अपने-अपने दावों की पड़ताल की और पता किया कि आखिर वजूखाने में पानी आता कहां से है?
हिंदू पक्ष की ओर से सवाल उठाया गया कि अगर फव्वारा है तो फिर पहले तल पर स्थित इस वजूखाने में पानी का स्रोत क्या है? पानी कहां से आता है और इस वज़ूखाने में जमा पानी आखिर कैसे निकलता है? आजतक की पड़ताल में इन दोनों सवालों का जवाब मिला. पहले तल्ले पर पानी का आना तो सामान्य बात है लेकिन यह पानी जब जमा हो जाता है, तब थोड़ा -थोड़ा पानी टैंकर के जरिए बाहर निकाला जाता है.
नगर निगम के पानी से होता है वजू
जिला प्रशासन के एक अधिकारी के मुताबिक, मस्जिद तल पर बने इस वजूखाने में कई नल लगे, जिसमें वाराणसी नगर निगम पानी भेजता है और वजू करने के लिए नमाजी इससे अपना हाथ पाव धोते रहे हैं. नल से आने वाले पानी से जब वजू होता है तो वही पानी इसमें जमा हो जाता है. यह करीब 25x25 फीट का है.
हर साल सफाई कराती है मस्जिद कमेटी
सिर्फ मस्जिद कमेटी के लोग साल में इसकी सफाई कराते हैं. वही जानते हैं कि इसके भीतर शिवलिंग जैसा एक पत्थर है, जिसे वो पुराना फव्वारा कहते हैं. कोर्ट कमिश्नर की टीम ने भी पहले इस कुंड के पानी को कम कराया फिर बाहर से उस गोल घेरे तक सीढ़ी लगाई गई और झांक कर देखा गया तो ये शिवलिंग जैसी आकृति मिली, जिसकी पूरी फोटोग्राफी की जा चुकी है.
सिर्फ साल में एक बार पूरा पानी निकाला जाता
साल भर में जब कभी सफाई होती है तब पूरा पानी निकाला जाता है. इस वजू कुंड में करीब डेढ़ से 2 महीने में पानी भर जाता है, जिसे पाइप के जरिए बाहर टैंकर तक लाया जाता है और फिर टैंकर उस पानी को ले जाता है. जानकारी के मुताबिक, सफाई के दिनों के अलावा कभी पूरा पानी नहीं निकाला जाता.
पूरे साल पानी में डूबा रहता है गोल कुंड
चूंकि इसमें मछलियां भी होती है इसलिए पूरा पानी सिर्फ साल में एक बार सफाई के लिए निकाला जाता है. इसमें पानी हर वक्त लगभग भरा होता है और वजूखाने के बीचों बीच गोल कुआंनुमा एक गहरा कुंड है जिसमें शिवलिंग जैसी आकृति मिली है. चूंकि पानी भरा होता है इसलिए गोल कुंड भी पूरे साल पानी के भीतर डूबा रहता था.
हिंदू पक्ष ने कहा था- यहां भी हो सकते हैं मंदिर के प्रमाण
कोर्ट कमिश्नर की टीम ने जब मुआयना किया तो हिंदू पक्ष ने दावा किया कि यहां भी मंदिर के प्रमाण हो सकते हैं इसलिए तल पर करीब 1 फुट छोड़कर बाकी पानी कम कराया गया. बाहर से लगाई गई सीढ़ियों के जरिए गोल घेरे तक पहुंचे हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने सबसे पहले वहां जाकर देखा था.
सबसे पहले विष्णु जैन ने देखा था 'शिवलिंग'
इसके बाद विष्णु जैन ने आजतक को बताया था कि घेरे के भीतर कोई पानी का स्रोत नहीं था, न ही कोई पाइप लगाया गया था, नीचे तहखाने से भी उन्हें ऊपर जाती कोई पाइप नहीं दिखाई दी थी. जबकि अंजुमन इंतजामियां कमेटी के वकील मेराजुद्दीन ने कहा था कि यह फव्वारा है लेकिन वो नहीं जानते कि ये काम कैसे करता है क्योकि ये काफी पुराना है.
एक नमाजी बोले- मैंने फव्वारे को चलते हुए देखा है
एक और नमाज़ी और इंतजामियां कमेटी से जुड़े रईस बताते हैं कि उन्होंने इस फव्वारे को चलते देखा है लेकिन ये नहीं जानते कि किस तकनीक पर काम करता है. दूसरी तरफ हिंदू पक्ष का दावा है कि मुसलमानों के द्वारा जिसे फव्वारा बताया जा रहा है, वहां फव्वारे का कोई सिस्टम है ही नहीं, ना तो कोई पाइप से वो जुड़ा है, ना ही पुराने स्थापत्यकला के किसी फव्वारे का कोई चिन्ह है.
हिंदू पक्षकार बोले- यह सम्पूर्ण शिवलिंग है
सोहनलाल आर्य जो कि हिंदू पक्षकार हैं और उन्होंने खुद गोल घेरे में मौजूद शिवलिंग नुमा आकृति को देखा है. उनके मुताबिक यह एक सम्पूर्ण शिवलिंग है, बिना किसी जोड़ का एक सम्पूर्ण पत्थर जिससे कुछ और नहीं जुड़ता है, इससे छेड़छाड़ की कोशिश जरूर हुई है.
अभी तक कोई पाईप या प्राकृतिक स्त्रोत न मिला
बहरहाल इस वजूखाने को जानने और देखने वाले ये तो मानते हैं कि नगर निगम के नल 25x25 के इस वजूखाने के किनारे-किनारे लगे हैं, जो वज़ू के लिए हैं लेकिन बीच में मौजूद उस गोल घेरे में स्वतः पानी का कोई स्रोत नहीं है, ना तो मस्जिद कमेटी की तरफ से वहां कोई पाइप मिला है ना ही कोई प्राकृतिक स्रोत.