नदियों में बढ़ रहे प्रदूषण पर इलाहाबाद हाइकोर्ट ने सख्त रुख अख्तियार कर लिया है. सोमवार 7 सितंबर को गंगा प्रदूषण मामले में सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाइकोर्ट ने गंगा और यमुना नदी में मूर्ति विसर्जन की इजाजत देने से इंकार कर दिया है.
हाइकोर्ट ने प्रशासन के उस सुझव को भी मानने से इंकार कर दिया कि विसर्जन के बाद मूर्तियों को निकालने की अनुमति दी जाए. कोर्ट ने प्रशासन द्वारा मूर्ति विसर्जन की वैकल्पिक व्यवस्था न कर एक वर्ष की मोहलत मांगे जाने को भी गंभीरता से लिया है. गंगा प्रदूषण जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति अरुण टंडन की खंडपीठ ने इस बात पर सख्त नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि पूरे साल अफसर एक-दूसरे को चिट्ठियां ही लिखते रहे. साल भर पहले आदेश देने के बाद भी यदि अफसर सोते रहे तो अब जनता का गुस्सा भी भुगतें.
हाइकोर्ट ने पिछले साल नौ अक्टूबर को ही दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन पर रोक लगा दी थी. मगर प्रशासन के पास वैकल्पिक प्रबंध न होने पर सशर्त अनुमति दे दी थी. लेकिन, एक साल बाद भी जिला प्रशासन कोई योजना न पेश कर सका. कोर्ट ने मूर्ति विसर्जन से पहले और बाद में पानी की गुणवत्ता की जांच भी करवाई थी और इसमें विसर्जन के बाद पानी की गुणवत्ता खराब होने की बात सामने आई थी.
उधर, हाइकोर्ट का आदेश आने के बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड गोमती में मूर्ति विसर्जन रोकने की कवायद में जुट गया है. बोर्ड के सदस्य सचिव जे. एस. यादव ने बताया कि फिलहाल ये आदेश इलाहाबाद और गंगा-यमुना के लिए है लेकिन राजधानी लखनऊ में गोमती को लेकर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड गंभीर है. यादव ने बताया कि इस बार दुर्गा पूजा पर गोमती में विसर्जन के लिए आने वाली प्रतिमाओं के नदी की बजाय कुंड में विसर्जन की व्यवस्था की जाएगी.