इलाहाबाद हाईकोर्ट में गंगा में बढ़ते प्रदूषण को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई हुई. इस दौरान प्रमुख सचिव पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन ने संयुक्त हलफनामा दाखिल किया. हलफनामे में बताया गया कि कूड़े के निस्तारण के लिए कितने प्लांट चालू हैं और कितने बंद हैं. इसके साथ ही चार्ट दाखिल किया गया और बताया गया कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कुछ चमड़ा उद्योगों के खिलाफ कार्रवाई की है.
ओमेक्स सिटी प्रोजेक्ट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय बहादुर सिंह ने भी अपना पक्ष रखा. उन्होंने कोर्ट से उच्चतम बाढ़ बिंदु से 500 मीटर तक नए निर्माण पर रोक का विरोध कर इसे हटाने की मांग की. उन्होंने कहा कि यह आदेश अव्यावहारिक है. क्योंकि 1978 की प्रयागराज की बाढ़ में कलेक्ट्रेट तक पानी आ गया था, उसे आधार मानकर निर्माण पर प्रतिबंध सही नहीं है. सरकार के शासनादेश में गंगा किनारे से दो सौ मीटर तक ही निर्माण पर रोक है.
बता दें कि ओमेक्स कंपनी ने एक हजार करोड़ का निवेश किया हुआ है. यहां जमीन पर तीन हजार से अधिक लोगों ने प्लाट लोन लेकर लिए हैं. बहुत से लोगों ने सेवानिवृत्ति के बाद प्लाट खरीदा है. रोक के चलते कंपनी लाखों लोगों को आवास दिलाने की योजना पर अमल नहीं कर पा रही है. अदालत से निश्चित तारीख तय कर सुनवाई की मांग की गई है. वहीं प्लॉट खरीदने वालों की तरफ से भी अर्जी दी गई है. जिसमें कहा गया कि उनको प्लाट या आवास नहीं सौंपा जा रहा है.
कोर्ट ने सरकार के हलफनामे का अधिवक्ताओं को जवाब दाखिल करने की अनुमति दी है. अब इस मामले में अगली सुनवाई 14 दिसंबर को होगी. इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस एम के गुप्ता और जस्टिस अजित कुमार की पूर्णपीठ कर रही है.