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फांसी के मामले में HC ने एक घंटे में यूपी के मुख्य सचिव को किया तलब, तुरंत पहुंचे अधिकारी

हाई कोर्ट के आदेश पर आनन-फानन में चीफ सेक्रेटरी आरके तिवारी के साथ अपर मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी और जेल डीजी कोर्ट में पेश हुए. मामले की सुनवाई हुई तो हाई कोर्ट ने 3 हफ्ते में चीफ सेक्रेटरी से इस मामले पर विस्तृत रिपोर्ट मांग ली.

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यूपी के मुख्य सचिव आरके तिवारी
यूपी के मुख्य सचिव आरके तिवारी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • फांसी के एक मामले में कोर्ट ने यूपी के मुख्य सचिव को एक घंटे में किया तलब
  • लखनऊ में मचा हड़कंप, हाई कोर्ट के लखनऊ बेंच पहुंचे मुख्य सचिव

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में उस वक्त हड़कंप मच गया, जब हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक मामले की सुनवाई के दौरान एक घंटे में राज्य के मुख्य सचिव को तलब कर लिया. दरअसल यह मामला फांसी की सजा पाए आरोपियों को पैरोल पर रिहा किए जाने को लेकर था.

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हाई कोर्ट के आदेश पर आनन-फानन में चीफ सेक्रेटरी आरके तिवारी के साथ अपर मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी और जेल डीजी कोर्ट में पेश हुए. मामले की सुनवाई हुई तो हाई कोर्ट ने तीन हफ्ते में चीफ सेक्रेटरी से इस मामले पर विस्तृत रिपोर्ट मांग ली.

कोरोना की पहली लहर के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को एक हाई पावर कमेटी बनाकर उत्तर प्रदेश की जेलों में बंद कैदियों के बीच कोरोना संक्रमण रोकने के लिए कम अपराध वाले उम्रदराज कैदियों को 2 माह की पैरोल पर छोड़ने आदेश दिया था. 

इस आदेश का पालन करते हुए पिछले 21 सालों से फैजाबाद जेल में बंद उन 4 मुजरिमों को भी पैरोल दे दी गई, जिनको लोअर कोर्ट से फांसी की सजा सुनाई गई थी. पैरोल दिए जाने पर दूसरे पक्ष के लोगों ने इसका विरोध किया और हाई कोर्ट में फैसले के खिलाफ याचिका लगा दी.

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हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई के बाद 4 मुजरिमों को 15 दिसंबर को दोबारा जेल भेज दिए गया. दरअसल फैजाबाद में लोअर कोर्ट ने साल 2000 में हुए 4 आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी. फांसी की सजा के खिलाफ आरोपियों ने हाई कोर्ट में अपील की. 

हाई कोर्ट ने 4 आरोपियों की सजा को समाप्त कर दिया और दोष मुक्त कर दिया. इस फैसले के विरोध में राज्य सरकार और दूसरे पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई. 

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को गलत बता दिया, जिसके बाद चारों आरोपियों को दोबारा गिरफ्तार कर 2010 में जेल भेज दिया गया. चूंकि हाई कोर्ट का आदेश सुप्रीम कोर्ट से रद्द कर दिया गया, लिहाजा लोअर कोर्ट से मिली फांसी की सजा बरकरार रही. 

इसी बीच कोरोना में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से आई गाइडलाइंस के तहत जेल विभाग ने इन सभी 4 आरोपियों जिनकी उम्र 75 से 90 साल के बीच थी, उनको परोल दे दी. फिलहाल इस मामले में सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता वीके शाही ने सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का हवाला देते हुए पक्ष रखा और जिसको सुनने के बाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने 3 हफ्ते में चीफ सेक्रेटरी से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है. (इनपुट - संतोष कुमार)

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