इधर लखनऊ में समाजवादी घमासान मचा है, उधर सुगबुगाहट है कि पारिवारिक कलह से आजिज आए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अब अपनी राजनीतिक तरक्की नई पार्टी के साथ करेंगे. चर्चा तो यहां तक है कि परिवार में घुसपैठ करने वालों ने साइकिल पंक्चर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लिहाजा अब अखिलेश मोटरसाइकिल से राजनीतिक सफर पर आगे बढ़ेंगे, ताकि जल्दी पहुंचे.
इस चर्चा की गर्माहट लखनऊ से दिल्ली में चुनाव आयोग तक पहुंच चुकी है. आयोग में नई पार्टी के रजिस्ट्रेशन की समय सीमा, शर्तों और नियमों को लेकर चर्चा गर्म है. समाजवादी नेताओं के भी फोन खड़क रहे हैं. चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक अगर अखिलेश नई पार्टी बनाने पर आमादा हो जाएं, तो जनवरी तक ही उसका रजिस्ट्रेशन हो पाएगा. तब तक चुनाव आ जाएंगे. ऐसे में समय के अभाव और राजनीतिक दलदल में अखिलेश की नई पार्टी का खेल खराब हो सकता है.
अखिलेश के सामने है चुनौती
अब नियम और शर्तों की रोशनी में देखें, तो नवंबर सर पर आ गया है. रार आगे बढ़ती है और अखिलेश अलग रास्ते पर चलते हैं, तो जाहिर है कि उनकी राजनीतिक मोटरसाइकिल उन पगडंडियों पर नहीं चलेगी, जहां अब तक नेताजी की साइकिल चलती आई है. मोटरसाइकिल चलाने के लिए रोड की जरूरत पड़ेगी, जिसमें कम से कम तीन महीने का वक्त लगेगा. जाहिर है तब तक पेट्रोल कितना बचेगा क्योंकि साइकिल को तो पेट्रोल की जरूरत नहीं पड़ती. अब तो अखिलेश को पेट्रोल भी भराना पड़ेगा.
नई पार्टी के लिए हैं कई नियम और शर्तें
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एच एस ब्रह्मा ने 'आज तक' को बताया कि किसी भी पार्टी के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया पूरी होने में अधितकम 90 दिन लग जाते हैं. कई नियम व शर्ते भी हैं, जिन्हें पार्टी बनाने के एक महीने यानी 30 दिनों के भीतर पूरा करना होता है. पार्टी बनाने के तीस दिनों के भीतर रजिस्ट्रेशन की अर्जी चुनाव आयोग के सचिव तक पहुंचनी चाहिेए. चाहे डाक से भेजें या खुद हाथों-हाथ जमा करें. अर्जी के साथ प्रोसेस फीस के तौर पर दस हजार रुपये का डिमांड ड्राफ्ट होना चाहिए. पार्टी का संविधान जिसके हर पेज पर पार्टी महासचिव, अध्यक्ष या फिर चेयरमैन के दस्तखत जरूरी हैं. इतना ही नहीं बल्कि कार्यकारिणी के हरेक सदस्य की जानकारी हलफनामे के साथ होनी चाहिए. पहले दर्जे के मजिस्ट्रेट, ओथ कमिश्नर या फिर नोटरी के सामने शपथ पत्र का प्रमाणपत्र और बैंक अकाउंट व परमानेंट एकाउंट नंबर की तफसील भी जरूरी है. कार्यकारिणी का चुनाव करने वाले कार्यकर्ताओं की तादाद कम से कम सौ होनी चाहिए.
नई पार्टी का चुनाव में बेहतर प्रदर्शन जरूरी
चुनाव आयोग के मुताबिक सबसे पहले राजनीतिक दल का रजिस्ट्रेशन हो, फिर एक चुनाव में उसका परफॉरमेंस देखकर ही राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा मिलेगा. यानी अखिलेश को मोटरसाइकिल की सवारी करने के लिए अगले चुनाव का इंतजार तो करना ही होगा क्योंकि रजिस्टर्ड पार्टी को मान्यता प्राप्त दल बनने के लिए चुनाव में जौहर दिखाना ही होगा. राज्य स्तरीय या राष्ट्रीय स्तरीय दल का दर्जा मिलने के बाद किसी भी पार्टी का राजनीतिक सफर थोड़ा सरल जरूर हो जाता है. अव्वल तो उसके टिकट पर उम्मीदवारों को राज्य भर में एक ही चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ने का अधिकार मिल जाता है. नामांकन का पर्चा भरते वक्त एक प्रस्तावक से भी काम चल जाता है. सुविधाओं में सबसे पहले पार्टी को आयोग की तरफ से मतदाता सूचियों के दो सेट मुफ्त मिलते हैं. बाकी के लिए पार्टी को तय शुल्क अदा करना होता है. साथ ही, राज्य और देश के स्तर के मुताबिक आम चुनाव में आकाशवाणी और दूरदर्शन पर एक बार अपनी बात रखने का मौका मिलता है.