भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-कानपुर में फैज अहमद फैज की नज्म को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. आईआईटी कानपुर ने 'हम देखेंगे लाजिम है कि हम भी देखेंगे' नज्म को लेकर जांच कमेटी गठित कर दी है. उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और उच्च शिक्षा मंत्री दिनेश शर्मा ने गुरुवार को आजतक से बातचीत में कहा कि शायर कोई भी हो लेकिन समाज तोड़ने वाली शायरी की कोई जगह नहीं होती.
उन्होंने कहा कि आईआईटी के प्रशासक इसकी जांच कर रहे हैं, अगर कुछ भी आपत्तिजनक होगा तो कार्रवाई होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर इस मामले की जांच में आईआईटी कानपुर सरकार का सहयोग चाहेगी तो हम पूरी मदद करेंगे. दिनेश शर्मा ने कहा कि किसी भी शायर को किसी ऐसी कविता या शायरी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए जिससे दूसरे समाज में कटुता पैदा हो.क्या है पूरा मामला?
बता दें कि आईआईटी कानपुर ने एक समिति गठित की है, जो यह तय करेगी कि फैज अहमद फैज की कविता 'हम देखेंगे लाजिम है कि हम भी देखेंगे' हिंदू विरोधी है या नहीं. फैकल्टी सदस्यों की शिकायत पर कमेटी गठित की गई है. दरअसल, फैकल्टी के सदस्यों ने कहा था कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान छात्रों ने यह 'हिंदू विरोधी गीत' गाया था'.
किस शायरी को लेकर हुआ विवाद?
कमेटी जांच करेगी कि क्या छात्रों ने शहर में जुलूस के दिन धारा 144 का उल्लंघन किया, क्या उन्होंने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक बयान पोस्ट किए और क्या फैज की कविता हिंदू विरोधी है. फैज अहमद की कविता है, 'लाजिम है कि हम भी देखेंगे, जब अर्ज-ए-खुदा के काबे से. सब भूत उठाए जाएंगे, हम अहल-ए-वफा मरदूद-ए-हरम, मसनद पे बिठाए जाएंगे. सब ताज उछाले जाएंगे, सब तख्त गिराए जाएंगे. बस नाम रहेगा अल्लाह का, हम देखेंगे.' इसकी आखिरी लाइन ने विवाद खड़ा कर दिया है.
गौरतलब है कि आईआईटी कानपुर के छात्रों ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों के समर्थन में 17 दिसंबर को परिसर में शांतिमार्च निकाला था. इस मार्च के दौरान उन्होंने फैज की कविता गाई थी.