उत्तर प्रदेश के लखनऊ में रहने वाले चना लाल को अब कोई उम्मीद नहीं. वो हार मान चुके हैं. उन्हें कोई उम्मीद नहीं कि उनका विकृत चेहरा कभी ठीक हो पाएगा. उन्होंने इस बात की उम्मीद छोड़ दी है कि उनके चेहरे पर बनी 4 किलो की 'सूंड' का कभी ऑपरेशन हो पाएगा. उन्होंने स्वीकार लिया है कि अब ताउम्र उन्हें दर्द के साथ ही रहना होगा.
35 साल के चला लाल लखनऊ के बाहरी इलाके के एक गांव में रहते हैं. चेहरे से लेकर छाती तक निकले ट्यूमर की वजह से वे न तो ठीक से खा पाते हैं और न ही बोल पाते हैं. वे शीशा नहीं देखते और अकेले रहते हैं. उनकी दो भतीजियां उनका ध्यान रखती हैं.
दरअसल, चना लान गंभीर न्यूरोफिबरोमेटोसिस बीमारी से पीड़ित हैं. पहले उनका चेहरा हल्का सा विकृत था, लेकिन धीरे-धीरे वह हाथी की सूंड के आकार जैसा हो गया. उन्होंने 10 साल पहले ऑपरेशन कराने की कोशिश की, लेकिन उनका इतना खून बह गया कि वो मरते-मरते किसी तरह बचे. तब उन्हें डॉक्टरों ने हिदायत दी कि अगर वो जिंदा रहना चाहते हैं तो फिर कभी ऑपरेशन न कराएं.
लाल अपने आठ भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं. और उनकी दो भतीजियां रोजाना के कामों में उनकी मदद करती हैं. वो कहते हैं, 'मैं बदसूरत हूं. मुझे खुद को शीशे में देखना भी पसंद नहीं. मुझे यह भी नहीं पसंद कि कोई मुझे देखे. मैं ऑपरेशन कराना चाहता हूं, लेकिन मुझे ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं. पिछले बार ऑपरेशन के वक्त तो मैं मर ही गया था. इसलिए मुझे नहीं लगता कि इस चेहरे का कुछ हो सकता है'.
लाल जब छोटे थे तो उनके चेहरे पर छोटा सा दाग था, लेकिन उनके माता-पिता बेहद गरीब थे और पास में कोई अस्पताल भी नहीं था. आठ साल की उम्र तक उन्हें किसी डॉक्टर को नहीं दिखाया गया.
पुराने दिनों को याद करते हुए लाल कहते हैं, 'जब बच्चे मुझे देखकर भाग जाया करते थे तो मुझे लगने लगा था कि मेरे चेहरे में कुछ तो गड़बड़ है. मुझे याद है कि मैं अपनी मां के पास जाकर रोया था और उन्होंने मुझसे सीधे-सीधे कहा कि तुम्हारा चेहरा भयानक है. उसके बाद से मैंने कभी किसी बच्चे को अपने साथ खेलने के लिए नहीं कहा'.
उसी लाल के स्वर्गीय माता-पिता उन्हें डॉक्टर के पास ले गए, लेकिन इलाज के लिए 15,000 रुपये की जरूरत थी. परिवार के लिए यह रकम बहुत बड़ी थी और वे घर वापस आ गए. उस वक्त एक सर्कस ने उनके घरवालों से उन्हें उनके साथ भेजने के लिए कहा और बदले में पैसों की पेशकश की, लेकिन उन्होंने मना कर दिया.
जब लाल 25 साल के हुए तो घरवाले पैसों का इंतजाम कर उन्हें डॉक्टर के पास ले गए. ऑपरेशन के दौरान मुख्य रक्त नली काटते ही उनका बहुत खून निकलने लगा. इसके बाद डॉक्टरों ने उनके घरवालों से कहा कि अगर अपने बेटे को जिंदा रखना चाहते हो तो फिर कभी उसका ऑपरेशन मत करवाना.
लाल का ट्यूमर अब इतना बढ़ गया कि उनके बाएं आंख की रोशन चली गई है और वो बाएं कान से सुन भी नहीं पाते हैं. वे कहते हैं, 'मैं कुछ चबा भी नहीं सकता क्योंकि मेरे जबड़े भी धंस गए हैं और मेरे दांत अपना काम नहीं कर पाते हैं. मैं जानना चाहता हूं कि आखिर रसीले सेब का स्वाद कैसा होता है'.
लाल कभी-कभी मजदूरी करते हैं. लेकिन इस तरह के शरीरिक काम से उन्हें बेहद दर्द होता है. उनके मुताबिक, 'जब मुझे अपने सिर पर भारी चीजें उठानी पड़ती हैं तो मुझे बहुत दर्द होता है, लेकिन मैं शिकायत नहीं करता. अगर मालिक ने सुन लिया तो वो मुझे काम नहीं देगा'.
लाल अकेले रहते हैं, लेकिन उनकी भतीजी सुमन उनका ध्यान रखती है. सुमन के मुताबिक, 'जब मैं अपने चाचा को अकेला देखती हूं तो मुझे बहुत बुरा लगता है. मैं चाहती हूं कि वो भी बाकी लोगों की तरह जिंदगी बिताएं. जब मैं छोटी थी तो उनके चेहरे को देखकर डर जाया करती थी. लेकिन अब मुझे आदत हो गई है. वह बहुत ही मृदुभाषी और अच्छे इंसान हैं. मैंने उन्हें कभी गुस्से में नहीं देखा. हम उनके लिए पत्नी ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनकी हालत देखकर कोई आगे नहीं बढ़ता. मैं चाहती हूं कि उनकी होने वाली पत्नी उनसे बहुत प्यार करे'.
वहीं, चना लाल को कोई उम्मीद नहीं. वो कहते हैं कि वो शादी और बच्चे चाहते हैं, लेकिन लोग सोचते हैं कि उनकी बेटियों को भी यह बीमारी हो जाएगी.
जब लाल घर से बाहर जाते हैं तो लोग उन्हें भगवान गणेश का अवतार मानने लगते हैं. उनके मुताबिक, 'लोग मेरे पैर छूते हैं और मुझसे प्रार्थना करने के लिए कहते हैं. उन्हें लगता है कि मैं भगवान हूं. लेकिन वे मुझे गुस्सा दिलाते हैं क्योंकि मैं भगवान नहीं हूं. अगर मैं भगवान होता तो मैं इतनी तकलीफ में नहीं होता'.