यूपी में कम से कम एक मुद्दा ऐसा है जिसपर सारा दलगत राजनीतिक विरोध किनारे हो जाता है. यह है विधायकों की सैलरी का मुद्दा. हर महीने 50 हजार रुपए वेतन पाने वाले और अन्य भत्ते पाने वाले यूपी के विधायक बढ़ती महंगाई से परेशान हैं.
गुरुवार को विधानसभा सदन में उनकी यह परेशानी छलक पड़ी. सत्तारूढ़ से लेकर विपक्षी विधायकों और मंत्रियों ने अपना दर्द जाहिर करते हुए यहां तक कहा कि महंगाई की मार से उनका खर्च चल नहीं पा रहा है. वे अपने यहां आने वाले मेहमानों को एक कप चाय तक नहीं पिला पा रहे हैं.
बीजेपी विधानमंडल दल के नेता हुकुम सिंह ने कहा कि विधायकों का वेतन अधिकारियों के वेतन का आधा है. यही वजह है कि अधिकारी विधायकों की बात नहीं सुनते हैं. हुकुम सिंह की बात का समर्थन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी ने किया. तिवारी काफी समय से विधायकों के वेतन व भत्ते में कम से कम 25 फीसदी की बढ़ोत्तरी करने की मांग कर रहे हैं.
विधायकों की पीड़ा से इत्तेफाक दिखाते हुए संसदीय कार्य मंत्री आजम खां ने घोषणा की कि विधायकों का वेतन बढ़ेगा लेकिन यह कितना बढ़ेगा इसका निर्णय विधानसभा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री और दलीय नेताओं की बैठक के बाद लिया जाएगा.
आजम ने कहा कि सरकार विधायकों के वेतन को मूल्य सूचकांक से भी जोडऩे पर विचार करेगी ताकि विधायकों को उनके सम्मान के अनुसार वेतन मिले. हालांकि यहां यह बात गौर करने वाली भी है कि गत विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग को दिए गए शपथ पत्र के अनुसार यूपी के 403 विधायकों में से 67 प्रतिशत करोड़पति हैं.