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कोरोना: बीमा कंपनियों की वादाखिलाफी, कहीं पेमेंट से इनकार-कहीं 'बहाने' की भरमार

हम आपको कोरोना की मार झेल चुके कुछ ऐसे लोगों की कहानी बताने जा रहे हैं. जिन्होंने अपने बुरे वक्त के लिए बीमा तो करवाया था, लेकिन अब खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. वहीं बीमा करने वाले एजेंट भी बीमा कंपनियों के इस रवैया से शर्मिंदा महसूस कर रहे हैं.

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बीमा कंपनी से निराश हो रहे हैं बीमाधारक (डेमो तस्वीर)
बीमा कंपनी से निराश हो रहे हैं बीमाधारक (डेमो तस्वीर)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • मेडिकल बीमा कराने वालों को नहीं कर रही बीमा कंपनी मदद
  • बीमा की रकम देने में लगवा रहे दफ्तर के चक्कर

कोरोना की दूसरी लहर की त्रासदी में न जाने कितनों ने अपनी जान गवाई और वही बहुतेरे ऐसे खुशनसीब भी थे जिन्होंने कोरोना को मात दी और इलाज के बाद स्वस्थ होकर अपने घरों को लौटे. इनमें से कई ऐसे लोग भी थे जिन्होंने अपना बीमा करवा रखा था, लेकिन हेल्थ पॉलिसी देने वाली बीमा कंपनियों से इन लोगों को बीमा का पैसा नहीं मिला.

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कोरोना की मार झेल चुके कुछ ऐसे लोगों की कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं. जिन्होंने अपने बुरे वक्त के लिए बीमा तो करवाया था, लेकिन अब खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. वहीं बीमा करने वाले एजेंट भी बीमा कंपनियों के इस रवैया से खुद को शर्मिंदा महसूस कर रहे हैं.

फिरोजाबाद में बीमाधारक को नहीं मिला क्लेम

पहली कहानी उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद के रहने वाले सुधीर अग्रवाल की है. फिरोजाबाद के एक मध्यम दर्जे के व्यापारी 60 वर्षीय सुधीर अग्रवाल दिसंबर 2020  में कोरोना वायरस संक्रमित हुए थे. उन्होंने अपना इलाज गुड़गांव के मेदांता हॉस्पिटल में कराया. ठीक होकर जब वह वापस आए तो उन्होंने अपना ढाई लाख के बिल के भुगतान का बीमा क्लेम एचडीएफसी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी से किया. लेकिन बीमा कंपनी ने ना तो इनका कोई क्लेम का भुगतान किया और ना ही कोई संतोषजनक जवाब दिया. 

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सुधीर अग्रवाल ने मेदान्ता हॉस्पिटल का बिल का भुगतान खुद ही दिया था. फिरोजाबाद के विभव नगर निवासी सुधीर कुमार अग्रवाल ने एचडीएफसी लाइफ ईजी हेल्थ पॉलिसी ली थी जिसका नंबर 90734164 है. सुधीर कुमार अग्रवाल की मानें तो उन्होंने यह पॉलिसी 31 मार्च 2018 को ली थी जिसका वह लगातार प्रीमियम भी देते आ रहे हैं.

यहां तक कि वर्ष 2021 तक का उन्होंने प्रीमियम जमा कर दिया. अब जब कोरोना संक्रमण का इलाज का मेदांता हॉस्पिटल का उन्होंने ढाई लाख रुपए का बिल एचडीएफसी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी को प्रस्तुत किया. तो कंपनी ने अभी तक न तो इनके क्लेम का सेटलमेंट किया है ना ही कोई संतोषजनक पत्राचार किया है.

सुधीर कुमार अग्रवाल बताते हैं कि मैंने पहले फिरोजाबाद के एमसी अग्रवाल हॉस्पिटल में इलाज कराया उन्होंने मुझसे कहा कि आप की स्थिति खराब है आप के लंग्स में दिक्कत है. आपको मेदांता गुड़गांव या अच्छे हॉस्पिटल में जाना चाहिए. इसके बाद मैं तुरंत गुड़गांव के मेदांता हॉस्पिटल में चला गया. वहां मुझे ऑक्सीजन पर रखा गया और 10 दिन बाद मुझे छुट्टी दे दी.

उसके बाद मैं जब घर आया तो मैंने जो मेडिकल क्लेम करा रखा था वह मैंने फॉर्म एचडीएफसी में भरा. उनको मैंने पेपर भी दे दिए. उन्होंने आज तक कोई जवाब नहीं दिया. जबकि मैंने क्लेम सबमिट किया है. मैंने सारे डॉक्यूमेंट दे दिए. उन्होंने आज तक कोई सुनवाई नहीं की. मैं बहुत परेशान हूं. मेरे इलाज में ढाई लाख रुपया खर्च हुआ है.

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इंश्योरेंस आदमी इसलिए कराता है ताकि जरूरत के वक्त जरूरत काम आए. मैंने कैसे-कैसे पैसे का इंतजाम कर अपना इलाज कराया उसके बाद भी मुझे अपनी बीमा रकम नहीं मिल रही है. 

अलीगढ़ के इन लोगों को नहीं मिला क्लेम

अगली कहानी अलीगढ़ की है.अलीगढ़ के रहने वाले दो परिवारों के साथ ऐसा ही हुआ है. अलीगढ़ के रहने वाले पति पत्नी दोनों को कोरोना हुआ जिसके बाद दोनों ही लोग अस्पताल में भर्ती हुए. पत्नी की मृत्यु हो गई, लेकिन पति का इलाज नोएडा के ही एक निजी अस्पताल में जारी रहा. स्वस्थ होने के बाद इन्होंने जब बीमा कंपनी को बिल भेजा तो कंपनी ने अपने हिसाब से काट कर 20 से 30 फीसद रकम ही अभी तक दी है. इन्होंने कई चक्कर लगा लिए लेकिन कोई फायदा होता नहीं दिख रहा है.

बिल बना पौने तीन लाख, मिले महज 71 हजार

अलीगढ़ में हार्डवेयर का कारोबार करने वाले नीरज अग्रवाल बताते हैं कि उन्होंने स्टार हेल्थ नामक कम्पनी की पॉलिसी ली हुई है. जब वह बीमार हुए तो नोएडा के यथार्थ हॉस्पिटल में उनका इलाज हुआ. कोविड होने के कारण अस्पताल प्रबंधन ने डिस्चार्ज होते समय 2 लाख 75 हज़ार रुपये का बिल बनाकर दिया था. जब क्लेम लेने की प्रक्रिय शुरू की तो कम्पनी वालों ने 71 हज़ार 350 रुपये फाइनल कर के भजे दिए. उसके बाद कम्पनी को हमने कई रिमाइंडर भेजे कई चक्कर लगाए लेकिन हमें पूरी रकम अभी तक नहीं दी गई है.

बीमा कंपनी वाले ये कहते हैं कि जिसने पॉलिसी की है उस लड़के को भेजो लेकिन उसकी मृत्यु हो चुकी है. अब क्या करें कुछ समझ में नहीं आता है. मेरी पत्नी का देहान्त हुआ उनकी दूसरी कम्पनी की पॉलिसी थी जिसका हमें पूरा पैसा मिला लेकिन स्टार हेल्थ ने हमें बहुत परेशान किया हुआ है.

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9 लाख के बिल पर 4 लाख का पेमेंट

एक अन्य मामले में कारोबारी सुधीर बंसल ने बताया कि पिछले वर्ष जुलाई में हमारे परिवार के 3 लोगों की तबीयत खराब हुई थी. जिसके बाद हम घर में ही क्वारन्टीन हुए थे, लेकिन रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद हम वरुण हॉस्पिटल में भर्ती हो गए थे. हॉस्पिटल में हमारा कैशलेस नहीं हुआ था इसलिए रिम्बर्समेंट के लिए बीमा कम्पनी में डाला.

हमारा बिल सवा 9 लाख रुपये के करीब था. जिसका सेटलमेंट कम्पनी ने दो से ढाई महीने बाद जाकर किया है. जिसमें हमें 4 लाख 20 हज़ार रुपये हमारे पास आए अभी भी कम्पनी के पास हमारा 5 लाख 20 हज़ार रुपये बकाया है. हमारा ये पैसा डूबा ही हुआ है.

वाराणसी में अपने पॉलिसीधारकों के सामने शर्मिंदा होने पर मजबूर हैं बीमा एजेंट-

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की भी हालत भी बिगड़ी ही हुई है. यहां पर भी कोविड से ग्रसित होकर अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजो का पैसा रिम्बर्स करने से बीमा कंपनियों ने हाथ खड़ा कर दिया है. निजी कंपनियों के इस रुख से पीड़ित व्यक्ति को तो दिक्कत का सामना करना तो पड़ ही रहा है वहीं कंपनी के एजेंट के सामने भी बजाए शर्मिंदा होने के कोई और रास्ता नहीं रह गया है.

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एक साल से रिम्बर्स नहीं हुआ है पैसा

वाराणसी में स्टार हेल्थ एंड एलाइड इंश्योरेंस कंपनी में बतौर एजेंट एडवाइजर अमित कुमार पांडेय के तमाम क्लाइंट के साथ ऐसा ही हुआ. उन्हीं में से एक 45 वर्षीय शशि कुमार वर्मा के बारे में वे बताते हैं कि 18 जुलाई को उनके क्लाइंट शशि की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आ गई. फिर उन्हे शहर के सारनाथ क्षेत्र के लेढूपुर इलाके के मेरेडियन अस्पताल में भर्ती कराया गया.

बीमा कंपनी की ओर से कैशलेस सुविधा होने के बावजूद उस दौरान शहर का कोई भी निजी अस्पताल कोविड का केस कैशलेस लेने को तैयार नहीं था. इसलिए बीमित व्यक्ति बीमा कंपनी से पैसा रिम्बर्स कराने की सोचकर अस्पतालों में कैश पैसा देकर भर्ती हो रहें थे. उनके क्लाइंट शशि कुमार वर्मा ने भी ऐसा ही किया और भर्ती होने के पहले ही अस्पताल ने उनसे 70 हजार रुपए एडवांस रखवा लिया और उन्हे कोविड के इलाज के नाम पर 21-28 जुलाई तक भर्ती रखा.

इसके अलावा शशि का 10 हजार रुपये दवाई और जांच का भी लगा. कुल 80 हजार का क्लेम स्टार हेल्थ एंड एलाइड इंश्योरेंस में रिम्बर्स के लिए अगस्त 2020 में किया गया. लेकिन एक साल का वक्त बीतने को है, कंपनी ने पैसा देने से हाथ खड़ा कर दिया है. 

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इस बारे में एजेंट अमित पांडेय बताते हैं कि क्लेम की जांच करने वाले अधिकारी रिम्बर्स करने के नाम पर अलग अलग बहाने बनाते हैं. कभी कहते हैं कि सरकार की गाइडलाइन के अनुसार क्लेम गलत है तो कभी कहते हैं कि मेडिकल रीजन की वजह से गलत है तो कभी 50-50% में सेटल करने की बात करते हैं.

अब तक 4-5 बार कंपनी में दस्तावेज भेजे गए हैं. हैरानी की बात है कि भर्ती होने के दौरान ऐसा ही एक कोविड केस उसी अस्पताल में उसी कंपनी की ओर से बीमित मरीज का क्लेम दे दिया गया, लेकिन उनके क्लाइंट का क्लेम रिम्बर्स नहीं किया गया. क्लेम मिलने वाले व्यक्ति के क्लेम मिलने के पीछे की वजह भी बताई गई कि क्योंकि वह बीमित लाभार्थी को इसलिए क्लेम मिल गया, क्योंकि उसका एक अधिक बिजनेस देने वाले एजेंट के जरिये बीमा हुआ था.

जबकि उनके क्लाइंट और दूसरे व्यक्ति दोनों को कोविड था और दोनों का एक ही कमरे में एक समान इलाज, डॉक्टर और बिल बने थें. उनके क्लाइंट का 80 हजार रुपया रिम्बर्स का फस गया है और अब क्लाइंट आए दिने उनके सिर पर सवार हैं. वे बताते हैं कि स्टार हेल्थ एंड एलाइड इंश्योरेंस कंपनी ने उनकी एक अपेंडिक्स से पीड़ित महिला का भी नॉनकोविड क्लेम रिम्बर्स करने से मना कर दिया है और 40-42 हजार रुपया कंपनी ने नहीं दिया.

ऐसी परिस्थिति में अब एक एजेंट होने के नाते उन्हे काफी शर्मिंदा होना पड़ रहा है. वे बताते है कि अब उनके केस को एक साल होने वाला है. अगर अभी भी उनके क्लाइंट शशि वर्मा का पैसा स्टार हेल्थ एंड एलाइड इंश्योरेंस कंपनी रिम्बर्स नहीं करती है तो वे न्यायालय का सहारा लेंगे.

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