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अदावत भुलाकर एक मंच पर आया मदनी परिवार, चाचा-भतीजे के गुटों में बंट गया था जमीयत उलेमा-ए हिंद

Madani family dispute: शनिवार को देवबंद में अधिवेशन के दूसरे सत्र में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के दूसरे गुट के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी शामिल हुए. मंच पर भतीजे महमूद मदनी ने चाचा अरशद मदनी का तहे दिल से स्वागत दिया.

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Maulana Mahmood Madani-Maulana Arshad Madani
Maulana Mahmood Madani-Maulana Arshad Madani
स्टोरी हाइलाइट्स
  • देवबंद में चल रहा है जमीयत उलमा-ए-हिंद का राष्ट्रीय अधिवेशन
  • 5000 मौलाना और मुस्लिम बुद्धिजीवी शामिल हो रहे हैं

यूपी के देवबंद में जमीयत उलेमा-ए हिंद (jamiat ulama i hind) का राष्ट्रीय अधिवेशन चल रहा है. दो दिवसीय सम्मेलन के महामंच पर जहां मुस्लिम समुदाय से जुड़ीं राजनीतिक-सामाजिक और धार्मिक चुनौतियों को लेकर मंथन चल रहा है, वहीं 100 साल पुराने इस संगठन में आपसी तालमेल भी फिर से फिट बैठता दिखाई दे रहा है.

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जमीयत उलेमा-ए हिंद दो गुटों में बंटा हुआ है. एक गुट मौलाना अरशद मदनी का है और दूसरा मौलाना महमूद मदनी की. दोनों ही अपने-अपने गुटों के अध्यक्ष हैं. मौलाना अरशद, मौलाना महमूद मदनी के चाचा हैं. फिलहाल, जो सम्मेलन देवबंद में चल रहा है वो मौलाना महमूद मदनी की अध्यक्षता में हो रहा है. लेकिन शनिवार को सम्मेलन के पहले दिन मौलाना अरशद मदनी भी यहां पहुंचे.

मौलाना अरशद मदनी ने यहां जमीयत के एक होने के संकेत दिए. उन्होंने कहा कि वो दिन दूर नहीं जब इत्तेहाद हो जाएगा. अरशद मदनी ने अपने बयान में दोनों धड़ों के एक होने की तरफ इशारा किया.

मौलाना असद मदनी की मौत के बाद छिड़ी जंग

अरशद मदनी का ये बयान काफी अहम है, क्योंकि मुस्लिम समाज से जुड़े देश के सबसे बड़े संगठन जमीयत को परिवार की लड़ाई ने बांट दिया है. 2006 में जब महमूद मदनी के पिता मौलाना असद मदनी का इंतकाल हुआ तो उसके बाद से ही संगठन में चाचा-भतीजे में वर्चस्व की लड़ाई छिड़ गई. असद मदनी लंबे वक्त तक संगठन के चीफ रहे थे, लेकिन उनके निधन के बाद जमीयत में दो फाड़ हो गए.

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मौलाना महमूद मदनी अपनी दावेदारी पेश करते रहे हैं, जबकि अरशद मदनी भी खुद को चीफ मानते हैं. दोनों ही लोग खुद को जमीयत का राष्ट्रीय अध्यक्ष लिखते हैं.

महमूद मदनी ने किया अरशद मदनी का स्वागत

हालांकि देवबंद में चल रहे इस अधिवेशन से जिस तरह की नरमी दिखाई दे रही है उससे लग रहा है कि चाचा-भतीजे के बीच वर्चस्व की लड़ाई लगभग खत्म हो गई. शनिवार को देवबंद में अधिवेशन के दूसरे सत्र में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के दूसरे गुट के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी शामिल हुए. मंच पर भतीजे महमूद मदनी ने चाचा अरशद मदनी का तहे दिल से स्वागत दिया. इसी दौरान अरशद मदनी ने कहा कि वो दिन दूर नहीं है जब जमीयत के दोनों गुट एक हो जाएंगे. 

मौलाना मदनी ने कहा कि हमारे उलेमा ने देश की आजादी से लेकर बाबरी मस्जिद जैसे मुद्दों तक के लिए बड़ी कुर्बानियां दी हैं. उन्होंने कहा कि हमारे बुजुर्ग कभी सड़कों पर नहीं उतरे, लेकिन उन्होंने देश के संवैधानिक तरीकों से लड़ाई लड़ी है. ऐसे में मैं आपके सामने इस बात को रखना जरूरी समझता हूं. हमें भी उसी तरीके पर हालात का मुकाबला करना है.

भारत अभी न्यायप्रिय लोगों से खाली नहीं हुआ 

मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हमारा मुकाबला किसी हिंदू से नहीं है बल्कि उस सरकार से है जो धर्म के नाम पर लोगों को बांटकर देश को बर्बाद कर रही है. मैं मानता हूं कि तकदीर के फैसले में देरी हो सकती है, लेकिन भारत अभी न्यायप्रिय लोगों से खाली नहीं हुआ है. जो लोग मस्जिदों में आग लगा रहे हैं वो जलील होंगे. वो देश को श्रीलंका की तरह करना चाह रहे हैं.

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बहुसंख्यकों के खिलाफ सड़कों पर ना उतरें

उन्होंने कहा कि देश के अल्पसंख्यक, बहुसंख्यकों के खिलाफ सड़कों पर ना उतरें. हम उन्हें समझाएंगे कि इसे रोकिए नहीं तो मुल्क बर्बाद और तबाह हो जाएगा. जो लोग बाबरी को सड़कों पर लाए उन्होंने इस मामले को खराब किया है. जब भी हमारी लड़ाई होगी तो सरकार से होगी. सरकार हमारी है. सरकार हमें हक देगी तो ताली बजाएंगे, नहीं देंगे तो लड़ेंगे.

बता दें कि 28 मई को यूपी के देवबंद में जमीयत का सम्मेलन शुरू हुआ था, जो 29 को भी चलना है. पहले दिन कई तरह के प्रस्ताव पास किए गए. जमीयत के इस सम्मेलन के एजेंडे में देश के मौजूदा हालात और मुसलमानों से जुड़े मुद्दे हैं. 

जमीयत का इतिहास

जमीयत उलेमा-ए हिंद मुसलमानों का 100 साल पुराना संगठन है. जमीयत मुसलमानों का सबसे बड़ा संगठन होने का दावा करता है. इसके एजेंडे में मुसलमानों के राजनीतिक-सामाजिक और धार्मिक मुद्दे रहते हैं. जमीयत उलेमा-ए हिंद इस्लाम से जुड़ी देवबंदी विचारधारा को मानता है. इसकी स्थापना वर्ष 1919 में तत्कालीन इस्लामिक विद्धानों ने की थी. इनमें अब्दुल बारी फिरंगी महली, किफायुतल्लाह देहलवी, मुहम्मद इब्राहिम मीर सियालकोटी और सनाउल्लाह अमृतसरी थे. मदनी परिवार का इस संगठन पर पुराने वक्त से वर्चस्व रहा है और अभी तक मदनी परिवार ही इसे संभाल रहा है.

इनपुट- तनसीम हैदर

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