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पश्चिमी यूपी के लिए जयंत चौधरी का प्लान, एजेंडे में युवा, दलित, मुस्लिम और किसान

राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख जयंत चौधरी ने भले ही सपा के साथ गठबंधन कर रखा है, लेकिन अपना सियासी आधार मजबूत करने के लिए उन्होंने अभी से काम शुरू कर दिया है. 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए जयंत चौधरी युवा, दलित, किसान और मुसलमान के एजेंडे पर सियासी समीकरण सेट कर रहे हैं. ऐसे में देखना है कि जयंत क्या इस सियासी प्रयोग में सफल हो पाएंगे?

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स्टोरी हाइलाइट्स
  • जयंत चौधरी का फोकस अब दलित वोट बैंक पर
  • युवा पंचायत के जरिए युवाओं को साधने का प्लान
  • जाट-मुस्लिम समीकरण के साथ दलित कॉम्बिनेशन

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव नतीजे के बाद से ही आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी पश्चिमी यूपी में नए सियासी समीकरण पर काम कर रहे हैं. सपा के साथ मिलकर भले ही चुनाव में कोई करिश्मा न दिखा सके हों, लेकिन जंयत चौधरी 2024 के लिए अभी से सक्रिय हो गए हैं. आरलडी के एजेंडे में इस बार युवा, दलित, मुस्लिम और किसान हैं. जयंत इन्हीं चारों मुद्दों के जरिए सियासी बिसात बिछाने में जुटे हैं ताकि पश्चिमी यूपी में बीजेपी के सामने एक कड़ी चुनौती पेश कर सकें. साथ ही इसे अपनी बार्गेनिंग पोजीशन को भी बढ़ाने का दांव माना जा रहा है. 

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जयंत का दलितों पर फोकस
2022 विधानसभा चुनाव में सपा के साथ मिलकर भी जयंत चौधरी बहुत ज्यादा सफल नहीं रहे. अखिलेश-जयंत की तमाम कोशिशों के बावजूद पश्चिमी यूपी का दलित वोट या तो बसपा के साथ रहा है या फिर बीजेपी में गया. यही वजह है कि जयंत चुनाव के बाद से ही दलित वोटों को साधने की कवायद में जुट गए थे, जिसके लिए पहले उन्होंने दलित नेता चंद्रशेखर के साथ दोस्ती बढ़ाई. वहीं, अब जयंत चौधरी ने अपने सभी आठों विधायकों से कहा कि विधायक निधि का 35 फीसदी फंड दलित कल्याण पर खर्च करें. इसे दलितों के दिल जीतने के अभियान के तौर पर देखा जा रहा है. इस तरह जयंत की कोशिश जाट-मुस्लिम के साथ दलित कॉम्बिनेशन बनाने का है. पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम के बाद दलित वोटर भी काफी निर्णायक भूमिका में हैं. 

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युवाओं को साधने में जुटे जयंत
जयंत चौधरी इन दिनों युवा पंचायत के जरिए युवाओं को साधने की मुहिम पर काम कर रहे हैं. इसके लिए उनके निशाने पर मोदी सरकार की ओर से लाई गई 'अग्निपथ योजना' है. वह अग्निपथ योजना वापस लेने की मांग को लेकर पूरे पश्चिमी यूपी में 'युवा पंचायत' लगातार आयोजित कर रहे हैं. शामली से शुरू युवा पंचायत आज यानि शुक्रवार को बागपत में खत्म हो रही है. 'युवा पंचायत' के जरिए जयंत 'अग्निपथ योजना' के खिलाफ युवाओं को लामबंद तो कर ही रहे हैं, बेरोजगारी की व्यापक समस्या उठाकर भी इस बड़े वर्ग से भावनात्मक रूप से जुड़ने का प्लान है. अग्निपथ योजना के विरोध के जरिए वे बेरोजगारी का मुद्दा उठा रहे हैं. 'युवा पंचायत' में जयंत सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बना रहे हैं. वह युवाओं से अपील कर रहे हैं कि आप डटे रहिए, उनकी लड़ाई वो लड़ेंगे., 

यूपी में लाखों युवा सेना में भर्ती होने की तैयारी करते हैं, जिनमें पश्चिमी यूपी के जिलों का बड़ा हिस्सा है. गाजियाबाद, हापुड़, मुजफ्फरनगर, बागपत और बुलंदशहर है. यह ऐसा इलाका है, जहां से सशस्त्र सेना में जाने वालों की संख्या काफी ज्यादा है. यहां के युवाओं में 'अग्निपथ योजना' को लेकर एक आम भावना देखी गई है कि वह सिर्फ चार साल की नौकरी के लिए नहीं दौड़ते हैं और ना ही पसीना बहाते हैं. जयंत चौधरी यहां के युवाओं की इसी भावना को पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं. 

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किसान आरएलडी का मूल वोटबैंक
आरएलडी ने शुरू से किसानों की पार्टी के तौर पर अपनी पहचान बनाई है. किसानों के मुद्दों को लेकर चौधरी चरण सिंह और चौधरी अजित सिंह के बाद जयंत चौधरी भी मुखर हैं. कृषि कानूनों के विरोध के दौरान भी जयंत चौधरी और उनकी पार्टी काफी मुखर रही थी, क्योंकि आरएलडी का सियासी आधार भी किसान रहा है. ऐसे में किसानों से जुड़े तमाम मुद्दों को लेकर जयंत चौधरी मुखर ही नहीं, बल्कि आक्रामक भी रहते हैं. भारतीय किसान यूनियन खुलकर आरएलडी को समर्थन करती रही है और किसान नेता राकेश टिकैत का जयंत के साथ अच्छा तालमेल है. ऐसे में वो किसान वोट बैंक को किसी भी सूरत में खुद से नहीं छिटकने देना चाहते. 

मुसलमान वोटबैंक पर जयंत की नजर
जयंत चौधरी की नजर अपने जाट कोर वोटबैंक के साथ-साथ मुस्लिमों पर भी है, जिनके सहारे पश्चिमी यूपी में किंगमेकर की भूमिका अदा करते रहे हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव में भी आरएलडी को सियासी संजीवनी जो मिली है, उसमें मुसलमानों की अहम भूमिका रही है. जयंत किसी भी सूरत में मुस्लिम वोटबैंक को अपने से दूर नहीं करना चाहते हैं, जिसके लिए पार्टी संगठन से लेकर तमाम जगहों पर मुस्लिम नेताओं की नियुक्त कर रही है. आजम खान जब जेल में बंद थे तो जयंत चौधरी ने रामपुर जाकर उनके परिवार से मुलाकात की थी और अपने पुराने रिश्ते की दुहाई दी थी. जयंत को पता है कि पश्चिमी यूपी में अगर अपनी सियासी जड़ें मजबूत रखनी है तो जाट के साथ-साथ मुस्लिमों को साधकर रखना है. 

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राष्ट्रीय लोकदल की कमान संभालने के बाद से ही जयंत चौधरी पश्चिमी यूपी की राजनीति में काफी ज्यादा सक्रिय हैं. जयंत अपने कोर वोट बैंक को मजबूत बनाए रखने की कवायद में दलितों को जोड़कर नए सियासी समीकरण दुरुस्त कर रहे हैं. ऐसे में देखना है कि जयंत चौधरी की ये कोशिश 2024 में क्या सियासी गुल खिलाती है?

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