कई बार हादसे के बाद यह सवाल मन में आता है कि क्या इस हादसे को टाला जा सकता था? मुजफ्फरनगर ट्रेन हादसे के बाद भी कई लोगों के मन में यह ख्याल आया होगा, लेकिन कड़वा सच यह है कि खतौली ट्रेन हादसा टल ही नहीं सकता था. क्योंकि एक दो जगह नहीं, बल्कि कदम-कदम पर रेलवे के इंजीनियर, अफसर, कर्मचारी लापरवाही की गंगा में डुबकी लगा रहे थे.
हादसे के बाद जांच के लिए पहुंची ज्वाइंट इंवेस्टिगेशन टीम की रिपोर्ट आंखें खोल देने वाली है. इस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद तो यह कहकर भी दिल को तसल्ली नहीं दी जा सकती कि अगर यह न हुआ होता, तो हादसा होने से बच जाता. क्योंकि खतौली के पास रेलवे की लापरवाही का ऐसा जाल बुना हुआ था, जिसमें मुसाफिरों की मौत तय थी.
आजतक के हाथ लगी ज्वाइंट इंवेस्टिगेशन टीम की रिपोर्ट
आजतक को ज्वाइंट इंवेस्टिगेशन टीम की रिपोर्ट हाथ लगी है. इस रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. साथ ही इस बात का भी खुलासा हुआ है कि हजारों-लाखों लोगों को सफर कराने वाली रेल के ट्रैक पर किस कदर लापरवाही बरती जाती है. ज्वाइंट रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हादसा रेलवे लाइन के कटे होने और उसमें गैप बन जाने के कारण हुआ, लेकिन ऐसा होने के पीछे जो वजहें बताई गई हैं, वो चौंकाने वाली हैं.
जिस ट्रैक से सौ किलोमीटर से भी ज्यादा की रफ्तार से मुसाफिरों से भरी ट्रेन गुजरनी हो, वहां रेलवे के मेंटेनेंस इंजीनियर किस तरह लापरवाही से ट्रैक को काट देते हैं. जिम्मेदार अफसर इससे बेपरवाह अनजान बने रहते हैं, जो रेलवे के सुरक्षा सिस्टम की एक भयंकर चूक को उजागर कर रही है. इतनी सूचना को जिस बेपरवाही से आगे पास किया जाता है, कंट्रोल रूम में बैठे कर्मचारी भी उसी लापरवाही के अंदाज में अनदेखा कर देते हैं. इसका खामियाजा खतौली ट्रेन हादसे की शक्ल में है.
रेलवे ट्रैक पर मरम्मत के दौरान की प्रक्रिया का नहीं किया गया पालन
ज्वाइंट इंवेस्टिगेशन टीम की रिपोर्ट इशारा कर रही है कि रेलवे ट्रैक पर मरम्मत के वक्त जो तय प्रक्रिया यानी स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसीजर अपनाया जाना चाहिए था, उसमें से किसी का भी पालन नहीं किया गया, जबकि ये काम जान-माल के जोखिम से जुड़ा हुआ था. जांच के दौरान मरम्मत के काम में लगे एक जेई मोहनलाल मीणा के बयान के मुताबिक ट्रैक पर 20 मिनट का ब्लॉक मांगा गया था, ताकि बीस मिनट तक कोई ट्रैन उस ट्रैक से न गुजरे, लेकिन कंट्रोल रूम ने या तो इसे अनसुना कर दिया या फिर इस ब्लॉकेज की मांग को गंभीरता से नहीं लिया.
ट्रैक पर रेड फ्लैग भी नहीं लगाया
इस लापरवाही के बाद भी हादसा टाला जा सकता था, लेकिन लापरवाहियों का सिलसिला थमा ही नहीं. रेलवे के निमयों के मुताबिक जब भी ट्रैक पर कोई मरम्मत की जाती है, तो ट्रैक पर एक बैनर फ्लैग यानी लाल झंडा लगाया जाता है, लेकिन काम कर रहे लोगों ने इस नियम का भी पालन नहीं किया. अगर झंडा लगा होता, तो ट्रेन के ड्राइवर को संकेत मिल जाता और हादसे को टाला जा सकता था या फिर कम से कम जानमाल के नुकसान से बचा जा सकता था, लेकिन जिस झंडे को चेतावनी के लिए ट्रैक पर लगाया जाना चाहिए था, वो हादसे वाली जगह पर फोल्ड किया हुआ मिला.
हादसे के लिए जिम्मेदार विभाग के सीनियर इंजीनियर जांच कमेटी में शामिल
दिलचस्प बात यह है कि जांच रिपोर्ट में परमानेंट वे (p-way) विभाग को हादसे के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है और इसी विभाग के एक सीनियर इंजीनियर हादसे की जगह पर जांच करने पहुंची कमेटी में भी शामिल थे. p-way विभाग के SSE यानी सीनियर सेक्शन इंजीनियर इस कमेटी का हिस्सा थे, लेकिन जैसे ही जिम्मेदारी उन्हीं के विभाग पर आयी, तो उन्होंने रिपोर्ट पर अपने दस्तखत ही नहीं किए.