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कैराना की एक सीट जीतकर 10 सीटों पर अजीत सिंह ने जिंदा कर दी उम्मीदें

कैराना में पार्टी ने अपने मूल वोट बैंक जाट समुदाय को बीजेपी खेमे से वापस लाकर अपनी राजनीति को संजीवनी दे दी है. इतना ही नहीं एक बार फिर आरएलडी मुस्लिम जाट को एक साथ लाने में सफल रही है.

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चौधरी अजीत सिंह
चौधरी अजीत सिंह

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उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा उपचुनाव में आरएलडी की तबस्सुम हसन ने बीजेपी की उम्मीदवार मृगांका सिंह को मात दी है. वही आरएलडी जो पहले लोकसभा और फिर विधानसभा चुनाव में पिटने के बाद पूरी तरह हाशिए पर चली गई थी. कैराना में पार्टी ने अपने मूल वोट बैंक जाट समुदाय को बीजेपी खेमे से वापस लाकर अपनी राजनीति को संजीवनी दे दी है. इतना ही नहीं एक बार फिर आरएलडी मुस्लिम जाट को एक साथ लाने में सफल रही है.

आरएलडी को मिली जीत से पार्टी प्रमुख चौधरी अजीत सिंह का कद बढ़ गया है. 2019 में मोदी के खिलाफ विपक्षी दलों द्वारा बनाए जा रहे महागठबंधन में आरएलडी भी अब अहम हिस्सा हो सकती है. इतना ही नहीं अजीत सिंह सम्मानजनक सीटों के मोल भाव करने की स्थिति में आ गए हैं.

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बता दें कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश जाट लैंड कहा जाता है. प्रदेश में 10 से ज्यादा लोकसभा सीटें हैं, जहां जाट समुदाय किंगमेकर की भूमिका में है. इनमें फतेहपुर सीकरी, मथुरा, अलीगढ़, हाथरस, बागपत, कैराना, बिजनौर, गाजियाबाद, मेरठ और मुजफ्फरनगर लोकसभा सीटें शामिल हैं. हालांकि इन सीटों पर आरएलडी अकेले दम चुनाव नहीं जीत सकती है. इसके लिए गठबंधन उसके लिए अहम हो जाता है.

गौरतलब है कि नवंबर 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच खाई गहरी हो गई थी. आरएलडी की राजनीति के सितारे डूबने लगे थे. आरएलडी के सामने सबसे बड़ी चुनौती जाट वोट को वापस अपने पाले में लाने की थी, जो 2014 के लोकसभा चुनाव और बाद में 2017 के विधानसभा चुनाव में उससे छिटककर बीजेपी के खेमे में चला गया था.

इसी का नतीजा था कि लोकसभा चुनाव में खुद अजीत सिंह हार गए और पार्टी एक सीट भी नहीं जीत सकी. जबकि विधानसभा चुनाव में एक ही विधायक जीत सका था, जो बाद में बीजेपी में चला गया. लेकिन अब विपक्षी एकता बनने के बाद से अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी इस जाट और मुस्लिम गठजोड़ को कैराना लोकसभा उपचुनाव के जरिए फिर से कायम करने में सफल रहे हैं.

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आरएलडी उम्मीदवार तबस्सुम हसन के बहाने चौधरी अजीत सिंह ने अपना खोया हुआ जनाधार वापस पा लिया है. 2019 तक वे जाट समुदाय को पार्टी से जोड़े रखने में सफल रहते हैं तो फिर उनकी अहमियत महागठबंधन में बनी रहेगी और उचित सीटें भी उनके खाते में आ सकती हैं.

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