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मोदी नहीं, योगी के सिर फूटेगा कैराना-नूरपुर में हार का ठीकरा, बढ़ेंगी मुश्किलें

राज्य के सीएम योगी आदित्यनाथ की गोरखुपर सीट और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर की सीट जीतने के बाद ही विपक्षी दलों को एकजुटता का रास्ता सूझा था. यहां पर सपा-बसपा मिलकर चुनाव लड़ी थी. यही वजह है कि अब कैराना और नूरपुर में भी विपक्षी एकजुटता का असर देखने को मिला है.

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पीएम मोदी के साथ आदित्यनाथ, फाइल फोटो (Getty Images)
पीएम मोदी के साथ आदित्यनाथ, फाइल फोटो (Getty Images)

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अपने एक साल के कार्यकाल में खुद की और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की सीट गंवा बैठे यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. कैराना लोकसभा सीट पर हुए उपचुनावों ने उनके खाते में एक और हार लिख दी है, वहीं बीजेपी का गढ़ माने जाने वाले नूरपुर विधानसभा की सीट भी योगी नहीं बचा पाए. पहले से ही सरकार और पार्टी के अंदर घिरते जा रहे योगी आदित्यनाथ के लिए ये नए नतीजे मुसीबत खड़ी करने वाले हैं.

2014 में मोदी लहर में उड़ गए थे विपक्षी

यूपी वो राज्य है जहां बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और तत्कालीन प्रदेश प्रभारी अमित शाह की रणनीति की बदौलत 2014 में विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया था. 80 सीटों वाले देश के इस सबसे बड़े प्रदेश में बीजेपी ने 72 सीटें जीतीं जबकि उसकी सहयोगी अपना दल को दो सीटें मिलीं. कांग्रेस की ओर से सिर्फ सोनिया-राहुल गांधी ही अपनी सीट बचा सके जबकि सपा को महज 4 सीटें मिलीं. मायावती का तो खाता भी नहीं खुला.

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2017 में भी बजा मोदी का डंका

समय बीतने के साथ यूपी में बीजेपी की लहर और मजबूत हुई. मोदी सरकार बनने के तीन साल बाद 2017 में जब विधानसभा चुनाव हुए तब एक बार फिर मोदी और शाह का जादू चला और विपक्ष धूल चाटता नजर आया. 403 विधानसभा सीटों वाले इस प्रदेश में बीजेपी को अकेले ही 312 सीटें मिलीं. सपा-कांग्रेस गठबंधन और मायावती की बसपा चुनाव मैदान में औंधे मुंह नजर आए.

बीजेपी ने 14 साल का सत्ता का वनवास खत्म कर जब प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई तो उसकी बागडोर गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ को सौंपी गई. आदित्यनाथ को ये जिम्मेदारी दी गई कि वे यूपी को विकास की राह पर ले जाएं ताकि 2019 के चुनावों के लिए मजबूत जमीन तैयार हो सके और बीजेपी 2014 का जादू वहां दोहरा सके.

उम्मीद पर खरे नहीं उतरे योगी

आशा के विपरीत योगी आदित्यनाथ अपनी सरकार के एक साल पूरा होने से पहले ही अपनी ही गोरखपुर सीट सपा के हाथों गंवा बैठे. सिर्फ यही नहीं पार्टी उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर सीट भी नहीं बचा सकी और सपा-बसपा ने एक साथ आकर सीएम योगी और बीजेपी को एक साथ दो बड़े झटके दे दिए.

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गोरखपुर-फूलपुर के झटकों से पार्टी अभी उबरी भी नहीं थी कि कैराना और नूरपुर के उपचुनाव भी उसके लिए बुरी खबर लेकर आए हैं.

कैराना-नूरपुर ने दिया दूसरा बड़ा झटका

कैराना में बीजेपी सांसद हुकुम सिंह और नूरपुर में बीजेपी विधायक लोकेंद्र सिंह चौहान के निधन के चलते ये सीटें खाली हुईं. बीजेपी ने सहानुभूति वोट के एक्स फैक्टर का फायदा उठाने के लिए यहां से क्रमशः हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह और लोकेंद्र सिंह चौहान की पत्नी अवनि सिंह को मैदान में उतारा लेकिन विपक्षी एकजुटता ने उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया. सपा-बसपा-कांग्रेस-आरएलडी के एक साथ आ जाने से कैराना सीट जहां आरएलडी के खाते में जाती दिख रही है, वहीं नूरपुर पर सपा का कब्जा हो रहा है.

आदित्यनाथ के सिर हार का ठीकरा

गोरखपुर-फूलपुर के बाद कैराना-नूरपुर की हार का ठीकरा भी योगी आदित्यनाथ के सिर फूटेगा. खुद मुख्यमंत्री को भी न चाहते हुए ये जिम्मेदारी अपने सिर लेनी पड़ेगी क्योंकि पीएम नरेंद्र मोदी उपचुनावों में चुनाव प्रचार नहीं करते और न ही बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व खासकर राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह उतना एक्टिव रोल निभाते हैं. ऐसे में हार का कोई बहाना योगी आदित्यनाथ के पास नहीं होगा.

और मजबूत होगा योगी विरोधी गुट

योगी आदित्यनाथ जब से सीएम बने हैं तब से पार्टी और सरकार में उनके खिलाफ दबे स्वर में आवाज उठ रही हैं. वहीं सरकार के कुछ मंत्रियों ने खुलेआम योगी की कार्यशैली और कार्यक्षमता पर सवाल उठाने से गुरेज नहीं किया. राजनीतिक हलकों में ये चर्चा भी गर्म है कि यूपी में मुख्यमंत्री योगी और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बीच सत्ता की खींचतान के चलते पार्टी और सरकार में दो गुट सक्रिय हैं.

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ताजा हार से योगी विरोधी गुट और ज्यादा ताकतवर होगा जो कि उनके लिए अच्छी खबर नहीं है. हालांकि 2019 के चुनावों में जितना कम वक्त है उसे देखते हुए राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की कोई संभावना नहीं दिखती लेकिन अगर 2019 में भी नतीजे विपरीत रहे और मोदी मैजिक पर महागठबंधन भारी पड़ा तो योगी के लिए सीएम की कुर्सी बचा पाना मुश्किल हो जाएगा.

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