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काशी के विश्वनाथ कॉरिडोर का विवाद पहुंचा सुप्रीम कोर्ट

काशी विश्वनाथ कॉरीडार मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. कॉरिडोर की योजना के विरोध में ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानन्द सरस्वती के पट्टशिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वराननद लंबे समय से मुहिम चलाए हुए हैं.

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सुप्रीम कोर्ट (तस्वीर- PTI)
सुप्रीम कोर्ट (तस्वीर- PTI)

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काशी में विश्वनाथ मंदिर से लेकर गंगा तक कॉरीडार बनाने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. कॉरिडोर की योजना के विरोध में ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानन्द सरस्वती के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद लंबे समय से मुहिम चलाए हुए हैं.

सुप्रीम कोर्ट में याचिका जितेन्द्रनाथ व्यास और अंजुमन इंतजामिया मस्जिद ने दाखिल की है. दरअसल, काशी में विश्वनाथ मंदिर से लेकर गंगा तक का एक कारीडोर बनाया जा रहा है. मकसद है कि श्रद्धालु गंगा स्नान कर आसानी से विश्वनाथ मंदिर तक पहुंच सकें. इसके लिए आसपास की घनी आबादी के मकानों को खरीद कर उन्हें ढहाया जा रहा है. लेकिन परियोजना की जद में कई पौराणिक और ऐतिहासिक मन्दिर भी आ रहे हैं. काशीवासियों के उबलने और विरोध की वजह भी यही है. इनका कहना है कि सरकार ओवरब्रिज क्यों नहीं बना देती.

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याचिका में यहां हो रहे निर्माण और तोड़फोड़ पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि पहला याचिकाकर्ता काशी विश्वनाथ मंदिर के व्यास परिवार का सदस्य है. वह मंदिर और भगवान की पूजा अर्चना करता है जबकि दूसरा याचिकाकर्ता ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन देखता है.

याचिका में आरोप लगाया गया है कि केन्द्र सरकार काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी परिसर में दखल दे रही है. जबकि दोनों याचिकाकर्ता अपने अपने धर्मस्थलों का प्रबंधन देखते हैं. व्यास परिवार और मस्जिद प्रबंधन के बीच मतभेद होने के बावजूद दोनों के बीच आम सहमति पर आधारित करार है ताकि दोनों समुदायों के बीच शांति कायम रहे और दोनों साथ- साथ बने रहें.

इस करार में राज्य सरकार बिचौलिये की भूमिका में है ताकि करार की शर्तों को लागू कराया जा सके और आपसी समझदारी कायम रहे. उस करार के मुताबिक मस्जिद इंतजामिया की ओर से सालाना रखरखाव के अलावा पूरे परिसर में दोनों पक्षों की सहमति के बगैर कोई नया निर्माण नहीं कराया जा सकता.

याचिका में आरोप लगाया गया है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास विकास और आधुनिकीकरण के नाम पर केन्द्र सरकार के निर्देश पर पिछले कुछ महीनों से जिला प्रशासन उस क्षेत्र में किसी को घुसने नहीं देता है और लगातार ध्वस्तीकरण का काम चल रहा है.

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इसके लिए शासन और प्रशासन ने दोनों याचिकाकर्ताओं से कोई इजाजत नहीं ली, जो कि उस क्षेत्र का प्रबंधन देखते हैं. आधुनिकीकरण के बहाने स्थानीय प्रशासन बिना किसी अधिकार के एक-एक करके आसपास के घर खरीद रहा है. फिर उन्हें ढहा रहा है.

इतना ही नहीं प्रशासन ने संरक्षित धरोहर मंदिर के कुछ हिस्से और व्यास पीठ को भी ढहा दिया है. अभी हाल में प्रशासन ने ज्ञानवापी परिसर की प्राचीन दीवार जो कि मस्जिद का हिस्सा थी उसे ढहा दिया. यहां इमाम प्रार्थना कराते थे.

याचिकाकर्ता का कहना है कि यह धार्मिक संपत्ति में दखलंदाजी है. उनकी मांग है कि ढहाई गई व्यास पीठ और ज्ञानवापी परिसर की चारदिवारी को दोबारा बनाया जाए.

याचिका में कहा गया है कि 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में सुनवाई के दौरान जब काशी विश्वनाथ और ज्ञानवापी का मामला उठा था तो कोर्ट ने पक्षकारों को कोई भी दिक्कत होने पर सीधे सुप्रीम कोर्ट आने की छूट दी थी.

उस आदेश में मिली छूट के आधार पर यह याचिका दाखिल की है. याचिका में पूरे परिसर की सुरक्षा मुहैया कराए जाने की भी मांग की गई है.

ये मामला न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा व अशोक भूषण की पीठ में सुनवाई के लिए लगा था, लेकिन सुनवाई एक सप्ताह के लिए टल गई.

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