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बंगाली बाबू ने तोड़ा मुलायम का भरोसा, जिसपर दांव लगाया उसी से मिला दगा

किरणमय के पिता ज्योतिर्मय नंदा बंगाल के पूर्वी मिदनापुर जिले के एक प्रख्यात शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ता रहे हैं. किरणमय ने कम्युनिस्ट पार्टी के छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन (एआईएसएफ) से जुड़कर राजनीति की शुरुआत की. उन्होंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से बीए किया है.

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मुलायम सिंह के साथ किरणमय नंदा
मुलायम सिंह के साथ किरणमय नंदा

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समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को जिस अधिवेशन में पद से हटाकर मार्गदर्शक बना दिया गया, उसकी अध्यक्षता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरणमय नंदा कर रहे थे. मुलायम को अपने बेटे अखिलेश द्वारा पद से हटाए जाने पर जितना बड़ा झटका लगा, उतना ही झटका उन्हें इस बात से भी लगा होगा कि जिन किरणमय नंदा को उन्होंने बंगाल की राजनीति से लाकर अपनी पार्टी में इतने बड़े ओहदे पर बैठाया, वही मुश्किल वक्त में विरोधी खेमे से जा मिला. यही नहीं किरणमय नंदा साल 2000 में सपा से अलग अपनी राह बना चुके थे, उसके बावजूद मुलायम ने 10 साल बाद उनकी पार्टी में ससम्मान वापसी कराई. मुलायम ने अधिवेशन के तुरंत बाद किरणमय को पार्टी से बाहर करने के आदेश जारी कर दिए हैं.

सपा से पुराना नाता
साल 2010 में सपा के महासचिव बनकर अमर सिंह की जगह लेने वाले नंदा अखिलेश के करीबी हैं. 72 साल के नंदा समाजवादी पार्टी के बंगाली बाबू हैं. वे फिलहाल यूपी से राज्यसभा सांसद हैं. कभी खुद मुलायम सिंह ने नंदा को एक कर्मठ और समर्पित नेता बताया था. वे पश्चिम बंगाल की लेफ्ट फ्रंट सरकार में साल 1982 से लेकर 2011 तक मत्स्य पालन मंत्री रहे हैं. पश्चिम बंगाल में कई साल तक सोशलिस्ट पार्टी के महासचिव रहे हैं. इसके बाद पश्चि‍म बंगाल सोशलिस्ट पार्टी का समाजवादी पार्टी में विलय हो गया, जिसके बाद नंदा 1996 से लेकर 2000 तक समाजवादी पार्टी के महासचिव भी रहे. साल 2000 में उन्होंने फिर सपा से अलग होकर पश्चि‍म बंगाल सोशलिस्ट पार्टी बना ली. साल 2010 में वह वापस सपा में लौट आए और अमर सिंह की जगह उन्हें महासचिव बना दिया गया. सपा में वे अमर सिंह विरोधी लॉबी के सदस्य माने जाते हैं.

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पिता से मिली सामाजिक कार्य की सीख
किरणमय के पिता ज्योतिर्मय नंदा बंगाल के पूर्वी मिदनापुर जिले के एक प्रख्यात शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ता रहे हैं. किरणमय ने कम्युनिस्ट पार्टी के छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन (एआईएसएफ) से जुड़कर राजनीति की शुरुआत की. उन्होंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से बीए किया है. वे 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर मिदनापुर के मुगबेरिया से चुनाव लड़े और विजयी हुए. इस सीट से वे छह बार चुनाव जीत चुके हैं. अपने विधानसभा क्षेत्र में वे इतने लोकप्रिय रहे कि एक बार तो उन्हें 58 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल हुए. साल 2011 में उन्हें राज्य की रायगंज विधानसभा सीट पर कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिली और वह हार गए.

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