पंजाब के स्थानीय निकाय के चुनावों में जीत से कांग्रेस उत्साहित है. कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों की नाराजगी सियासी तौर पर कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हुई है जबकि बीजेपी को इससे काफी गहरा झटका लगा है. सूबे के 7 नगर निगमों से 4 नगर निगम में बीजेपी ही खाता ही नहीं खोल सकी और बाकी तीन नगर निगम में पार्टी क्रमश-1-4-11 यानी कुल 16 सदस्य ही जीत सके हैं.
किसान आंदोलन की आंच ने पंजाब, हरियाणा के बाद जिस तरह से राजस्थान व पश्चिम यूपी के इलाकों के अपनी जद में लिया है. और इन राज्यों में किसान पंचायतों का दौर शुरू हुआ है, वो बीजेपी के लिए चिंता का सबब बनती जा रही है. पंजाब के नतीजों में किसानों के गुस्से का असर साफ दिखा, लेकिन सवाल उठता है कि क्या ऐसा ही किसानों की नाराजगी का खामियाजा मार्च-अप्रैल में होने वाले यूपी के पंचायत चुनाव और राजस्थान व हरियाणा में होने वाले विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी को उठाना पड़ेगा?
कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन करीब तीन माह से जारी है. ऐसे में आंदोलन के बीच हुए पंजाब स्थानीय निकाय के चुनाव को लिटमस टेस्ट के तौर पर देखा जा रहा था. इस पहले किसान आंदोलन के बीच हरियाणा में निकाय चुनाव हुए थे. इन दोनों ही राज्यों के निकाय चुनाव में बीजेपी को सियासी तौर पर भारी नुकसान उठाना पड़ा है जबकि विपक्षी दलों को इसका राजनीतिक तौर पर फायदा मिला है. यही वजह है कि किसानों की नाराजगी को वोट में बदलने के लिए पश्चिम यूपी के जिलों में आरएलडी से लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी तक महापंचायत करने में जुट गए हैं.
आरएलडी के चौधरी अजित सिंह के बेटे आरएलडी के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी अपने खोए हुए जनाधार को वापस लाने के लिए तकरीबन एक दर्जन से ज्यादा किसान पंचायत कर चुके हैं. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी पश्चिम यूपी में अभी तक तीन किसान महापंचायत को संबोधित कर किसानों के साथ खड़े होने का सियासी संदेश दिया है. वहीं, आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल भी 28 फरवरी को मेरठ में किसान रैली के जरिए यूपी की सियासत में एंट्री करने की कवायद करना चाहते हैं.
पंजाब निकाय चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस महासचिव ने फेसबुक पर लिखा कि पंजाब ने दिखा दिया कि जनता देश के किसानों के साथ है, उनको सताने वाली भाजपा के साथ नहीं. हरियाणा, राजस्थान और अब पंजाब में स्थानीय निकाय चुनावों में हो रही पराजय से भाजपा का किसान विरोधी खेल अब खत्म होने को है. भ्रष्ट उद्योगपतियों की सेवक बीजेपी का विकल्प अब देश ने जनता की हितैषी कांग्रेस को मान लिया है.
पंजाब स्थानीय निकाय के चुनाव में कांग्रेस की जीत से हरियाणा और यूपी में बीजेपी सरकार के लिए सियासी चुनौतियां खड़ी हो गई हैं. हरियाणा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल सरकार का समर्थन कर रही जेजेपी को अपनी रणनीति पर नए सिरे से विचार करना पड़ सकता है, क्योंकि दुष्यंत चौटाला पर लगातार किसान दबाव बना रहे हैं. वहीं, पश्चिम यूपी में पंचायत चुनाव सिर पर हैं और अगले साल की शुरुआत में ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में किसानों की नाराजगी बीजेपी के लिए टेंशन बढ़ा सकती है.
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि किसान आंदोलन के बीच पंजाब और हरियाणा में निकाय चुनाव हुए हैं और दोनों ही जगह बीजेपी को हार मिली है. इससे किसानों की नाराजगी साफ जाहिर हो रही है. वहीं, हरियाणा से पश्चिम यूपी सटा हुआ है और किसान आंदोलन का बड़ा असर भी यूपी के इस इलाके में साफ दिख रहा है. इसी बात को बीजेपी बखूबी समझ रही है, जिसके चलते ही यूपी सरकार हाईकोर्ट में सूबे के पंचायत चुनावों को मार्च-अप्रैल में कराने के बजाय आगे के महीने में कराना चाहती थी.
वह कहते हैं कि पश्चिम यूपी में हो रही पंचायतों में जिस तरह से भीड़ जुट रही है, वो बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है, क्योंकि सूबे का सियासी माहौल इसी इलाके से बनता है. बीजेपी भी यह बात अच्छे से समझ रही है. इसलिए पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मंगलवार को पश्चिमी यूपी, हरियाणा और राजस्थान के नेताओं से चर्चा की है. इस बैठक में गृह मंत्री अमित शाह, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर सहित इन प्रभावित इलाकों के बीजेपी विधायक और सांसद शामिल रहे. खासकर जाट नेताओं को इस बैठक में बुलाया गया था और उन्हें साफ तौर पर संकेत दिया गया है कि वे खाप पंचायतों के पास जाएं, उनसे बात करें और कृषि कानूनों को लेकर बने भ्रम को दूर करें.
माना जा रहा है कि किसानों की नाराजगी को दूर करने के लिए बीजेपी का किसान मोर्चा अब जिलों और गांवों में बैठकें आयोजित करने की तैयारी में है. पश्चिमी उत्तरी प्रदेश के मुजफ्फरनगर से आने वाले केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, बागपत के सांसद सत्यपाल सिंह, हरियाणा बीजेपी के अध्यक्ष ओपी धनखड़ सहित कई जाट नेताओं को बीजेपी मैदान में उतारकर किसानों को साधने की कवायद करेगी.
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह भी कहते हैं कि पंजाब निकाय चुनाव के नतीजे बताते हैं कि कृषि कानूनों को लेकर किसानों में बीजेपी के खिलाफ जबरदस्त नाराजगी है. इसीलिए अब बीजेपी नेता किसानों को लेकर किस तरह से उल्टे-सीधे बयान देने से बच रहे हैं. पश्चिम यूपी और हरियाणा में बीजेपी नेता अपने इलाकों में घूम नहीं पा रहे हैं. पिछले दिनों सीएम योगी आदित्यनाथ को अपना नोएडा दौरा टालना पड़ गया था. पश्चिम यूपी के गांव में बीजेपी नेताओं के प्रवेश न करने के लिए पोस्टर लगे हैं. यह बताता है कि जमीन पर किस तरह का बीजेपी के खिलाफ गुस्सा है, लेकिन यह वोट में कितना तब्दील होगा यह तो पंचायत चुनाव में पता चल पाएगा. हालांकि, विपक्ष जिस तरह से सक्रिय है और उनकी रैलियों में भीड़ जुट रही है. वो बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है.