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कुंभ मेले पर शुरू हुई थी पहली डाक सेवा

इलाहाबाद में 21 फरवरी 1911 को ऐतिहासिक कुंभ मेले के मौके पर फ्रांस के एक पायलट एम. पिकेट ने एक नया इतिहास रचा था. वे अपने विमान में इलाहाबाद से नैनी के लिए 6500 पत्रों को अपने साथ लेकर उड़े.

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इलाहाबाद में 21 फरवरी 1911 को ऐतिहासिक कुंभ मेले के मौके पर फ्रांस के एक पायलट एम. पिकेट ने एक नया इतिहास रचा था. वे अपने विमान में इलाहाबाद से नैनी के लिए 6500 पत्रों को अपने साथ लेकर उड़े.

विमान था हैवीलैंड एयरक्राफ्ट और इसने दुनिया की पहली सरकारी डाक ढोने का एक नया दौर शुरू किया. हालांकि यह उड़ान महज छह मील की थी, पर इस घटना को लेकर इलाहाबाद में ऐतिहासिक उत्सव सा वातावरण था.

ब्रिटिश एवं कालोनियल एयरोप्लेन कंपनी ने जनवरी 1911 में प्रदर्शन के लिए अपना एक विमान भारत भेजा था, जो संयोग से तब इलाहाबाद आया जब कुंभ का मेला भी चल रहा था. वह ऐसा दौर था जब जहाज देखना तो दूर लोगों ने उसके बारे में ठीक से सुना भी बहुत कम था. ऐसे में इस ऐतिहासिक मौके पर अपार भीड़ होना स्वाभाविक ही था. यह पहली डाक यात्रा कुल 27 मिनट की थी.

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इस यात्रा में हेनरी ने इतिहास तो रचा ही पहली बार आसमान से दुनिया के सबसे बड़े प्रयाग कुंभ का दर्शन भी किया. इस पहली हवाई डाक सेवा का विशेष शुल्क छह आना रखा था और इससे होने वाली आय को आक्सफोर्ड एंड कैंब्रिज हास्टल इलाहाबाद को दान में दिया गया. इस सेवा के लिए पहले से पत्रों के लिए खास व्यवस्था बनाई गई थी. 18 फरवरी को दोपहर तक इसके लिए पत्रों की बुकिंग की गई. पत्रों की बुकिंग के लिए आक्सफोर्ड कैंब्रिज हॉस्टल में ऐसी भीड़ लगी थी कि उसकी हालत मिनी जीपीओ सरीखी हो गई थी.

डाक विभाग ने यहां तीन चार कर्मचारी भी तैनात किए थे. चंद रोज में होस्टल में हवाई सेवा के लिए 3000 पत्र पहुंच गए. एक पत्र में तो 25 रुपये का टिकट लगा था. पत्र भेजने वालों में इलाहाबाद की कई नामी गिरामी हस्तियां तो थी हीं, राजा महाराजे और राजकुमार भी थे. डाक लेकर विमान 5.30 बजे रवाना हुआ और चंद मिनट में नैनी केंद्रीय जेल के पास एक खास जगह पर डाक उतार कर वापस लौट आया.

इस ऐतिहासिक उड़ान की स्वर्ण जयंती के अवसर पर सन् 1961 में तत्कालीन संचार मंत्री सी. सुब्रह्मण्यम ने इलाहाबाद जीपीओ से तीन विशेष स्मारक टिकट जारी किए. भारत में नियमित वायु सेवा सन् 1920 से बम्बई से कराची के लिए रॉयल एयरफोर्स की मदद से प्रायोगिक आधार पर शुरू की गई थी, पर इसने स्थायी सेवा का आकार ले लिया. यह कालांतर में वाया राजकोट भी जाने लगी. उस समय बंबई से कराची की दूरी 100 मील प्रति घंटा की रफ्तार पर छह घंटे में तय होती थी.

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इतना ही नहीं, वाणिज्यिक उपयोग के लिए हवाई जहाज के उपयोग का पहला प्रस्ताव भी सरकार को महानिदेशक डाक-तार जी. आर. आर. क्लार्क ने सन् 1919 में दिया था. इसी के तहत 5 मार्च 1920 को एयर बोर्ड बना तथा चीफ इंस्पेक्टर ऑफ एयर बोर्ड का पद भी सृजित किया गया.

वैसे दुनिया में विमान सेवा की गति में तेजी आने से लंबा समय लगा. सन् 1918 तक रफ्तार प्रति घंटा 130 मील, 1935 तक 145 मील और 1947 तक जाकर 300 मील हो सकी. हवाई डाक के संदर्भ में यह तथ्य उल्लेखनीय है कि सन् 1932 में अमेरिका में हवाई लिफाफों का उपयोग शुरू हुआ. 6 नवम्बर 1917 को हवाई सेवा से दुनिया का पहला अखबार 'केप टाइम्स' भेजा गया, जबकि 'न्यूयार्क हेराल्ड ट्रिब्यून' हवाई जहाज से नियमित भेजा जाने लगा.

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