आजादी के लंबे अरसे के बाद भी राजभाषा हिंदी के उत्थान के लिए आजतक कभी अखिल भारतीय स्तर का कोई सम्मेलन नहीं हो सका था. लेकिन इसकी शुरुआत शनिवार को पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के बड़ा लालपुर स्थित दीन दयाल हस्तकला संकुल से हो गई. दो दिवसीय सम्मेलन की शुरुआत बतौर मुख्य अतिथि गृह और सरकारिता मंत्री अमित शाह ने किया. इस मौके पर विशिष्ट अतिथि के तौर पर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी मौजूद थे तो वहीं लखीमपुर खीरी किसानों की मौत के मुख्य आरोपी बेटे आशीष मिश्रा के पिता अजय मिश्रा टेनी भी गृहमंत्री के साथ मंच साझा करते हुए दिखाई पड़े.
हिंदी भाषा पर शाह मंत्र
इस अवसर पर मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह व सहकारिता मंत्री आमित शाह ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव के तहत पहली बार राजधानी से बाहर हा रहा है. यह नई शुरुआत है. आजादी का अमृत महोत्सव महत्वपूर्ण है. यह भविष्य के भारत के लिए संकल्प का समय है. यह संकल्प होना चाहिए कि हिंदी का वैश्विक स्वरूप हो. स्थानीय भाषा और हिंदी पूरक है. राजभाषा विभाग की जिम्मेदारी है कि वह स्थानीय भाषा का भी विकास करे.
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि काशी हमेशा विद्या की राजधानी है. काशी सांस्कृतिक नगरी है. देश के इतिहास को काशी से अलग कर नहीं देख सकते. काशी भाषाओं का गोमुख है. हिंदी का जन्म काशी से हुआ है. 1868 में काशी से ही शिक्षा हिंदी में हुई. हिंदी के उन्नयन के लिए काशी से शुरुआत हुई. पहली पत्रिका काशी से ही शुरू हुई. मालवीय जी ने हिंदी से पढ़ाई की चिंता की. उन्होंने कहा कि तुलसी दास को कैसे भूला जा सकता है, जिन्होंने यदि राम चरित मानस नहीं लिखा होता तो आज रामायण लोग भूल जाते. भाषा जितनी समृद्धि होगी संस्कृति उतनी ही मजबूत होगी.
युवाओं से की ये अपील
युवाओं से उन्होंने अपील किया कि वे हिंदी में बोलने में गर्व महसूस करें. उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन को राजधानी दिल्ली से बाहर करने का निर्णय वर्ष 2019 में ही कर लिया था. लेकिन कोरोना काल की वजह से नहीं कर पाएं, लेकिन आज खुशी है कि ये नई शुभ शुरुआत आजादी के अमृत महोत्सव में होने जा रही है. गृहमंत्री ने कहा कि जो देश अपनी भाषा खो देता है, वो देश अपनी सभ्यता, संस्कृति और अपने मौलिक चिंतन को भी खो देता है. जो देश अपने मौलिक चिंतन को खो देते हैं वो दुनिया को आगे बढ़ाने में योगदान नहीं कर सकते हैं. दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली लिपिबद्ध भाषाएं भारत में हैं. उन्हें हमें आगे बढ़ाना है.