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'केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी किसानों पर बयान नहीं देते तो लखीमपुर हिंसा नहीं होती', HC की तल्ख टिप्पणी

लखीमपुर हिंसा केस में आरोपियों की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा कि अगर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी ने किसानों को धमकाने वाला बयान नहीं दिया होता तो लखीमपुर में हिंसक घटना नहीं होती.

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केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी (File Photo)
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी (File Photo)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • जमानत पर सुनवाई के दौरान HC की टिप्पणी
  • 144 लागू होने पर भी कुश्ती कराने को लेकर सवाल

पिछले साल 3 अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने सोमवार को अहम टिप्पणी की है. हाई कोर्ट ने कहा कि अगर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी ने किसानों को धमकाने वाला बयान नहीं दिया होता तो लखीमपुर में हिंसक घटना नहीं होती.

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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा, 'उच्च पदों पर आसीन राजनीतिक व्यक्तियों को समाज में इसके परिणामों को ध्यान में रखते हुए सभ्य भाषा अपनाकर सार्वजनिक बयान देना चाहिए, उसे गैर-जिम्मेदाराना बयान नहीं देना चाहिए क्योंकि उसे अपने पद और उच्च पद की गरिमा के अनुसार आचरण करना होता है.'

धारा-144 लागू पर भी कुश्ती के आयोजन पर सवाल

हाई कोर्ट ने यह भी पूछा कि जब इलाके में धारा 144 लागू थी, तब कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य इस कार्यक्रम में क्यों शामिल हुए? अदालत ने यह भी कहा कि सांसदों को कानून के उल्लंघनकर्ता के रूप में नहीं देखा जा सकता है.

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा कि इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता है कि केंद्रीय मंत्री और राज्य के उपमुख्यमंत्री को इलाके में धारा 144 लागू होने की जानकारी नहीं थी. कोर्ट ने इस मामले से जुड़े चार आरोपियों की जमानत अर्जी खारिज करते हुए यह टिप्पणी की है.

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हाई कोर्ट ने खारिज की जमानत अर्जी

गौरतलब है कि कोर्ट ने आरोपी लवकुश, अंकित दास, सुमित जायसवाल और शिशुपाल की जमानत अर्जी खारिज कर दी है. कोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी जिक्र किया है. लखीमपुर खीरी हिंसा मामले का मुख्य आरोपी केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी का पुत्र आशीष मिश्रा उर्फ ​​मोनू है.

गौरतलब है कि 10 फरवरी को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आशीष को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था. इसके बाद किसान संगठनों ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. शीर्ष अदालत ने 18 अप्रैल को जमानत रद्द कर दी. आशीष मिश्रा फिलहाल जेल में हैं. आशीष मिश्रा पर आरोप है कि उन्होंने प्रदर्शन कर रहे किसानों को कुचल दिया था.

हाई कोर्ट ने की एसआईटी जांच की तारीफ

सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने एसआईटी की जांच की तारीफ करते हुए कहा कि इस मामले में एसआईटी ने निष्पक्ष व वैज्ञानिक ढंग से जांच की है, इसका पूरा श्रेय एसआईटी को जाता है. बता दें कि लखीमपुर हिंसा के बाद डीआईजी उपेंद्र अग्रवाल की अगुवाई में एसआईटी का गठन किया गया था.

एसआईटी ने मौके से मिले सीसीटीवी, वायरल वीडियो, आरोपियों की कॉल डिटेल, मोबाइल टावर लोकेशन, आरोपियों के असलहो की एफएसएल, जांच के आधार पर लगभग 5000 पन्ने की चार्जशीट दाखिल की थी. हाई कोर्ट में जस्टिस डीके सिंह की बेंच ने अंकित दास, लव कुश सुमित जायसवाल और शिशुपाल की बेल अर्जी को खारिज कर दिया है.

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प्रियंका बोलीं- न्याय की लौ बुझने नहीं देंगे

हाई कोर्ट के टिप्पणी के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा, 'लखीमपुर किसान नरसंहार में सबसे अहम पहलू था गृह राज्यमंत्री का "किसानों को देख लेने" की धमकी वाला भाषण. भाजपा सरकार ने किसानों के पक्ष में खड़े होने की बजाय, अपने मंत्री की लाठी मजबूत की. न्याय का संघर्ष जारी है पीड़ित किसान परिवार व हम सब मिलकर न्याय की लौ बुझने नहीं देंगे.'

 

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