लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में पहली बार मैट्रिक्स रिब तकनीक का उपयोग किया गया है. मैट्रिक्स रिब टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल 12 वर्षीय लड़की के कान की सर्जरी के दौरान प्रयोग किया गया. लड़की अपने कानों की विकृति की समस्या से जूझ रही थी, उसकी सफल सर्जरी मैट्रिक्स रीब तकनीक के माध्यम से की गई.
एसजीपीजीआई अस्पताल के प्लास्टिक सर्जरी एवं बर्न्स विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. राजीव अग्रवाल ने बताया कि 2 माह पूर्व 12 वर्ष की लड़की जिसके दोनों कानों में विकृति थी और दोनों कान आगे की तरफ झुके हुए थे, ऐसे में कानों को सही आकार देने के लिए शरीर की पसली के मुलायम भाग का प्रयोग किया गया.
डॉ. राजीव अग्रवाल ने बताया कि कान की पसलियों को रीबप्लास्टिक की तकनीक के द्वारा मजबूत करने का काम किया गया. उन्होंने कहा कि मैट्रिक्स रिब एक रीबप्लास्टि की चिकित्सा पद्धति है, जिसके द्वारा इंसानों की एक या उससे अधिक पसलियों को शरीर से निकालने के बाद अत्याधुनिक टाइटेनियम प्लेट से जोड़ा जा सकता है.
इस तकनीक के माध्यम से ही रोगियों के पसलियों में कहीं भी खाली जगह नहीं रह जाती है और टाइटेनियम प्लेट के माध्यम से फिल कर दी जाती है. डॉ. राजीव ने कहा कि इस टेक्निक में अच्छी बात यह है कि पसलियां पहले की तरह ही मजबूत और टिकाऊ बनी रहती हैं, साथ ही साथ इस तकनीकी का प्रयोग एक से अधिक पसलियों में भी किया जा सकता है.
डॉ. राजीव अग्रवाल ने कहा कि पसलियों के टूट जाने और फैक्चर हो जाने पर भी यह तकनीक बहुत ही कारगर साबित होती है, हालांकि सर्जरी करने के दौरान बहुत ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत पड़ती है क्योंकि मैट्रिक्स रीब बहुत ही नाजुक और कठिन तकनीक प्रक्रिया है.
प्लास्टिक सर्जरी एवं वन विभाग के हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ. राजीव अग्रवाल ने यह भी बताया कि मैट्रिक रीब की सर्जरी करना बहुत ही जोखिम भरा रहता है क्योंकि पसलियों को निकालने और फिर से उन्हें बनाने के कार्य में बहुत ही ज्यादा रिस्क रहता है और इसके पीछे का कारण यह है कि मरीज तो निशचेतना की अवस्था में रहता है लेकिन सांस लेता रहता है.
आगे बताया, 'इसके कारण पसलियां निरंतर गतिशील और सक्रिय रहती हैं और ऐसे में गतिशील और सक्रिय वाले स्थान पर सर्जरी करनी पड़ती है और पावर ड्रिल मशीन के जरिए सुराख भी करना होता है, ऐसे में हल्की सी चूक से मरीज की जिंदगी खतरे में आ सकती है क्योंकि पसलियों के कुछ ही मिलीमीटर की दूरी पर फेफड़ा होता है.'