उत्तर प्रदेश के नए बीजेपी अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी आज (29 अगस्त) योगी मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे सकते हैं. योगी सरकार में भूपेंद्र चौधरी पंचायती राज मंत्री हैं. बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात के बाद वो इस्तीफा देंगे. उनके इस्तीफे के बाद पंचायती राज विभाग की कमान कौन संभालेगा, अब इसकी अटकलें तेज हो गई हैं.
इधर, बीजेपी ने नए प्रदेश अध्यक्ष की ताजपोशी को एक बड़ा इवेंट बना दिया है. चारबाग से बीजेपी दफ्तर तक जगह-जगह पार्टी कार्यकर्ता प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी का स्वागत करेंगे. पार्टी दफ्तर में प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर कार्यभार संभालने की उनकी औपचारिकता होगी जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और दोनों डिप्टी सीएम और कई कैबिनेट मंत्री मौजूद होंगे.
चौधरी संगठन के माहिर माने जाते हैं
कहा जा रहा है कि बीजेपी भूपेंद्र सिंह चौधरी के बहाने सिर्फ जातीय और क्षेत्रीय समीकरण ही नहीं साधा बल्कि 2024 के लिए अपने सबसे कमजोर किले को भी दुरुस्त करने का भी दांव चल दिया है. राममंदिर आंदोलन के दौरान बीजेपी का दामन थामा और स्थानीय कार्यकर्ता से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचने वाले भूपेंद्र सिंह चौधरी संगठन के माहिर माने जाते हैं.
वो जाट समाज से हैं और मुरादाबाद से आते हैं, जो पश्चिमी यूपी बेल्ट के साथ-साथ रुहलेखंड के इलाके में तक अपना असर रखते हैं. इसीलिए बीजेपी ने 2024 के चुनाव से पहले भूपेंद्र सिंह को सूबे का 'चौधरी' बनाकर ऐसा दांव चला है, जिससे विरोधी दलों को अपने कदम जमाने के लिए किसी तरह कोई जमीन खाली न मिले.
दरअसल, बीजेपी में प्रभावशाली नेताओं-मंत्रियों और गठबंधन में उसके सहयोगियों से पूर्वांचल का किला मजबूत है. पीएम मोदी और सीएम योगी दोनों ही पूर्वांचल से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. इसी बेल्ट के प्रयागराज से उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य हैं तो राजनाथ सिंह और महेंद्रनाथ पांडेय भी इसी क्षेत्र से आते हैं. बीजेपी के सहयोगी अपना दल (एस) और निषाद पार्टी का आधार भी इसी इलाके में है. इस तरह बीजेपी ने पूर्वांचल को मजबूत बना रखा है.
सबसे ज्यादा चुनौती पश्चिमी यूपी में
वहीं, अवध क्षेत्र और बुंदलेखंड की जमीन बीजेपी के लिए पहले से ही सियासी उर्वरक बनी हुई है. अवध का प्रतिनिधित्व योगी कैबिनेट में उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक करते हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए सबसे ज्यादा चुनौती सिर्फ पश्चिमी यूपी में थी, क्योंकि 2019 के लोकसभा और 2022 के चुनाव में पार्टी को इसी इलाके में सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा था. यही वजह है कि पश्चिम यूपी को संभालने के लिए बीजेपी ने 'चौधरी' चाल चालकर बीजेपी ने सूबे के चारो कोने की किलेबंदी की रणनीति बुनी है.