हाल में कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं जो बीजेपी के गले की फांस बन गईं और इसने महागठबंधन को बैठे-बिठाए मुद्दे दे दिए. ताजा घटना मंगलवार की है जिसमें उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने योगी सरकार पर प्रयागराज जाने से रोकने का आरोप लगाया है. अखिलेश इलाहबाद यूनिवर्सिटी के छात्र संघ के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने जा रहे थे. उन्हें एक चार्टर्ड प्लेन से प्रयागराज जाना था लेकिन उन्हें यह कहते हुए रोक दिया गया कि सपा नेता ने इसकी इजाजत नहीं ली है.
इस घटना को सिर्फ इसलिए बड़ी नहीं बोल सकते कि किसी पूर्व मुख्यमंत्री को अपने ही राज्य में जाने से रोका गया बल्कि इस वाकये ने बड़े स्तर पर अपनी छाप इसलिए छोड़ी क्योंकि बीजेपी और मोदी सरकार से खार खाए कई दलों और नेताओं ने अखिलेश के पक्ष में धड़ाधड़ बयान जारी किए और समर्थन जताया. खुद अखिलेश यादव ने कहा कि यूपी सरकार उनसे इतना डर गई है कि वह उन्हें एक प्रोग्राम में शामिल होने से रोक रही है.
प्रतिक्रिया सिर्फ अखिलेश तक ही सीमित नहीं रही. सपा और बसपा में गठबंधन है, लिहाजा बसपा सुप्रीमो मायावती भी इस सियासी मैदान में कूद पड़ीं और इसे भाजपा सरकार की तानाशाही और लोकतंत्र की हत्या का प्रतीक करार दिया. मायावती ने एक ट्वीट में कहा, "समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को मंगलवार को इलाहाबाद नहीं जाने देने कि लिए उन्हें लखनऊ हवाईअड्डे पर ही रोक लेने की घटना अति-निंदनीय और भाजपा सरकार की तानाशाही व लोकतंत्र की हत्या का प्रतीक है."
उन्होंने सवाल किया कि क्या भाजपा की केंद्र और राज्य सरकार बसपा-सपा गठबंधन से इतनी ज्यादा भयभीत और बौखला गई है कि उन्हें अपनी राजनीतिक गतिविधि और पार्टी प्रोग्राम करने पर भी रोक लगाने पर वह तुल गई है.
आसान शिकार बनी बीजेपी
हाल के घटनाक्रमों पर निगाह डालें तो यह तीसरी घटना है जिसने बीजेपी को बैकफुट पर लाने को मजबूर किया है और महागठबंधन को विरोध करने का आसान मुद्दा लपका दिया है. बीजेपी या उसकी सरकारें भले सफाई दें कि काम वही हो रहा है जो तर्कसंगत है लेकिन महागठबंधन दल इसे अपने मुताबिक भुनाने में कोई कोताही नहीं बरत रहे. मंगलवार की घटना योगी सरकार के लिए कानूनी या प्रशासनिक कार्रवाई हो सकती है लेकिन अखिलेश और मायावती के बयान से साफ है कि बीजेपी सरकार 'तानाशाही' पर उतर आई है.
चुनावी सीजन है और इसमें सरकार के एक-एक कदम की बारीकी से स्क्रूटनी होगी. कार्रवाई प्रशासनिक क्यों न हो, उसके सियासी मायने निकाले जाएंगे. इसलिए मुख्यमंत्री योगी का यह कथन बहुत मायने नहीं रखता कि सुरक्षा की स्थिति न बिगड़े, इसलिए अखिलेश को रोका गया. मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि सपा को अपनी अराजक गतिविधियों से बाज आना चाहिए. बकौल योगी, "प्रयागराज में कुंभ चल रहा है. अभी 10 दिन पहले ही अखिलेश यादव प्रयागराज गए थे. उन्होंने दर्शन-स्नान किया. अब प्रयागराज जिला प्रशासन ने आशंका जाहिर की है कि हिंसा हो सकती है. सपा अराजकता को आगे बढ़ाना चाहती है. प्रयागराज यूनिवर्सिटी में तोड़फोड़ हिंसा हो सकती थी. इसलिए प्रशासन ने जिला प्रशासन से यह मांग की थी." तकनीकी रूप से योगी की बात सही हो सकती है लेकिन फिलहाल वक्त का तकाजा ऐसा नहीं कि कोई पूर्व सीएम रोका जाए और उसपर राजनीति न हो.
नायडू और विपक्षी एकजुटता
इससे ठीक पहले चंद्रबाबू नायडू का दिल्ली आना और देश की राजधानी में उपवास करना, सत्याग्रह कम सियासत ज्यादा था. नायडू चाहते तो अमरावती या हैदराबाद में भी उपवास कर सकते थे लेकिन जो संकेत देश की राजधानी में बैठ कर उन्हें देना था, शायद वे इसमें कामयाब न होते. आग में घी डालने का काम यह रहा कि उपवास से ठीक एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुंटूर दौरे पर थे और उन्होंने नायडू परिवार पर ऐसा हमला बोला जिसकी उम्मीद शायद नायडू को न रही हो. प्रधानमंत्री ने नायडू के बेटे को 'वेल्थ क्रिएशन' से जोड़ा और 'सन राइज' (उगते सूरज) को बेटे के राइज से.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आरोपों में कितनी सच्चाई है और कितनी मिलावट, इसकी विवेचना बाद में होगी लेकिन फौरी तौर पर महागठबंधन के दलों ने नायडू का साथ दिया और दिल्ली में मंच पर ऐसे कई नेता जुटे जो मोदी सरकार और बीजेपी को पानी पी-पी कर कोसते हैं. नायडू यह कहते सुने गए कि "मोदी सभी को धमका रहे हैं, विपक्षी, नौकरशाह, कॉरपोरेट और यहां तक कि मीडिया को भी. वह विपक्षियों और विरोधियों के खिलाफ सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग को लगा रहे हैं." उन्होंने कहा, "हम लोकतंत्र बचाना चाहते हैं. आज देश को बचाने के लिए सभी पार्टियों का एकसाथ आना लोकतांत्रिक मजबूरी है."
नायडू की बातों से साफ है कि उनका अनशन महज प्रतीकात्मक था. असली निशाना उन दलों को एक साथ लाना था जो मोदी सरकार के खिलाफ हैं और विपक्षी पार्टियों का रूतबा रखती हैं. तभी विपक्षी पार्टियों से एकजुट होने का आह्वान करते हुए नायडू ने कहा कि "हमें यह दिमाग में रखना होगा. मोदी को पूर्ण बहुमत दिया गया था. उन्होंने क्या किया? कुछ नहीं. भाजपा और मोदी यह पूछ कर कि आपका नेता कौन है, विपक्ष को बांटने का खेल खेल रहे हैं." नायडू ने और बहुत कुछ बोला लेकिन शाम होते-होते देश-दुनिया ने देखा कि विपक्षी एकजुट हैं और मोदी सरकार के खिलाफ हैं. इससे बीजेपी को क्या मिला, यह सोचनीय है लेकिन नायडू और विपक्ष को जो सहानुभूति मिली, उसे सबने जरूर देखा.
बंगाल में CBI के बहाने बीजेपी पर ठीकरा
बंगाल का मामला बीते बहुत दिन नहीं हुए. तकनीकी तौर पर सीबीआई सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर कोलकाता गई शारदा चिटफंड मामले में अपनी जांच आगे बढ़ाने लेकिन दांव कितना उलटा पड़ा, यह जगजाहिर है. देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी सरकारी एजेंसी के शीर्ष अधिकारी पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी और प्रदेश की पुलिस दबंग अंदाज में दिखी. इन सबके बावजूद विपक्ष एकजुट हुआ और बीजेपी, मोदी सरकार व सीबीआई को निशाने पर लेते हुए यह कहा गया कि दिल्ली में बैठे नरेंद्र मोदी के इशारे पर सबकुछ हो रहा है.
प्रदेश की मुख्यमंत्री यह कहते हुए धरने पर बैठीं कि 'फेडरल स्ट्रक्चर' को बर्बाद किया जा रहा है. ममता ने धरने का नाम भी काफी सोच समझ कर 'संविधान बचाओ' धरना रखा. हालांकि सियासी मायने सुलझते ही उन्होंने धरना समाप्त किया और कहा, "सभी विपक्षी पार्टियों के आग्रह पर मैंने धरना खत्म करने का फैसला लिया है. मुझे कोई दिक्कत नहीं है. मैं पहले भी यहां 26 दिन का अनशन कर चुकी हूं. मैं सिंगूर में 14 दिनों तक धरना दे चुकी हूं लेकिन हमें कम से कम एक लोकतांत्रिक संस्थान से न्याय मिल गया है." कोर्ट ने सीबीआई को निर्देश दिया कि कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को गिरफ्तार नहीं करना है लेकिन उनसे पूछताछ होगी. यह अलग बात है कि बीजेपी ने पूछताछ को अपनी जीत बताया तो ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल ने राजीव कुमार की गिरफ्तारी पर रोक को अपनी जीत माना. कुछ भी हो, हाल की ये घटनाएं बीजेपी पर भारी पड़ी हैं और महागठबंधन को अपनी बात लोगों के सामने रखने के मौके दिए हैं.