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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के प्रयागराज (Prayagraj) में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि (Narendra Giri) की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत से हर कोई गमगीन है. महंत नरेंद्र गिरि का बचपन से झुकाव धर्म और आध्यात्म की तरफ था. वह कई बार स्कूल से भाग गए थे. वह अक्सर संतों और योगियों से घुलमिल जाते. बचपन में लोग उन्हें 'बुद्धु' के नाम से बुलाते थे.
हाईस्कूल के बाद बैंक में की थी नौकरी
प्रयागराज के फूलपुर के पास छतौना गांव के बालक 'बुद्धु' को लोग अकसर कहते कि तुम कुछ नहीं कर पाओगे. नाना के सबसे दुलारे बुद्धु अक्सर गांव में खेलते -खेलते वहां आने वाले संतों योगियों के साथ घुल मिल जाते. बुद्धु के पिता भानु प्रताप सिंह बाहर रहते थे. ऐसे में फूलपुर के पास ‘गिर्दकोट’ गाँव में नाना के घर पर ही बुद्धु का रहना हुआ. नाना और मामा ही देखभाल करते थे. अचानक एक दिन बुद्धु घर से भाग गया. काफ़ी खोज बीन हुई और उसके बाद घर वापस लाया गया. क्लास 6 की पढ़ाई के बाद बुद्धु फिर भाग गया. काफ़ी खोजबीन के बाद लौटे तो पता चला कि कहीं योगियों से घुल मिल गए थे. फिर बुद्धु को समझाया बुझाया गया. हाई स्कूल की परीक्षा के बाद बुद्धु ने नरेंद्र सिंह नाम से बैंक ऑफ़ बड़ोदा में नौकरी पा ली.
शादी की बात शुरू होने के बाद छोड़ दिया था घर
सब कुछ सामान्य चल रहा था, पर जब घर में शादी की बात होने लगी तो एक दिन बैंक के गार्ड को चाभी सौंपकर नरेंद्र सिंह कहीं चले गए. नरेंद्र गिरी के मामा प्रोफ़ेसर महेश सिंह उस दिन को याद करते हुए कहते हैं कि ‘अचानक एक दिन फ़ोन आया. उधर से आवाज़ आई कि ‘ मैं महंत नरेंद्र गिरि बोल रहा हूँ..’ महेश सिंह कहते हैं ‘तब जाकर हम लोगों को पता चला कि बुद्धु महंत नरेंद्र गिरी बन गए हैं. उसके बाद हमारे इसी घर में जहां उनका पालन पोषण हुआ था वो संन्यासी के वेश में एक बार आए. जब प्रणाम करने लगे तो मेरी पत्नी यानी नरेंद्र गिरि की मामी ने कहा कि आप जिस वेश में आए हैं, हमको आपको प्रणाम करना चाहिए.’
महंत नरेंद्र गिरि के मामा महेश सिंह कहते हैं कि ‘ संन्यासी बनने के बाद अपने पूर्व परिवार से जुड़ाव नहीं रहता. नरेंद्र गिरि पर जो लोग सवाल उठा रहे हैं वो ये सोच लें कि अपने नाना के नाम पर बने अमिपुर के सरयू प्रसाद सिंह इंटर कॉलेज में हमेशा कार्यक्रमों में आने वाले नरेंद्र गिरि ने कभी एक फ़र्लांग की दूरी पर स्थित अपने घर में कदम नहीं रखा.’
मामा से कुछ दिन पहले हुई थी महंत की बात
महेश सिंह इस बात को भी याद करते हैं कि नरेंद्र गिरि में अपने संघर्ष की वजह से इतनी जिजीविषा थी कि लगता नहीं है कि वो आत्महत्या कर सकते हैं.’ उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के सचिव रहे महेश सिंह कहते हैं कि वो घर नहीं आते थे और आम आदमी की तरह मैं कभी-कभी गद्दी (बाघंबरी) में होने वाले कार्यक्रमों में जाता था. वह अपने नाना के नाम पर बने स्कूल में लगातार सक्रिय रहे. 27 नवम्बर को नाना के नाम पर बने अमीपुर के सरयू प्रसाद सिंह इंटर कॉलेज का स्थापना दिवस है. आख़िरी बार बात हुई थी तो यही कि इस बार के समारोह में मुख्यमंत्री योगी जी को आमंत्रित करेंगे. ये 5-6 दिन पहले की बात है और अब ये हो गया.
गांव वालों से जुड़ा हुआ था स्नेह
गौरतलब है कि महंत नरेंद्र गिरि ने 80 के दशक में धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन में कदम रखा था. लेकिन आध्यात्मिक जीवन में कदम रखने के बाद भी गांव के लोगों से उनका स्नेह कम नहीं हुआ. महंत नरेंद्र गिरि छतौना गांव के भरौली मजरे के रहने वाले थे और उनका असली नाम नरेंद्र सिंह था. नरेंद्र गिरी के पिता भानु प्रताप सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय सदस्य थे. नरेंद्र गिरी ने बाबू सरजू प्रसाद सिंह इंटर कॉलेज हाई स्कूल की परीक्षा पास की थी. नरेंद्र कुल चार भाई थे, जिनमे नरेंद्र गिरी दूसरे नंबर पर थे. नरेंद्र गिरि के दो भाई अध्यापक हैं जबकि एक भाई होमगार्ड हैं. वहीं, छोटे भाई की पत्नी किरण प्रतापपुर में आगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं.
नरेंद्र गिरि के निधन के बाद एक तरफ जहां उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने उनका अंतिम दर्शन किया. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी महंत नरेंद्र गिरि का अंतिम दर्शन के लिए प्रयागराज स्थित बाघम्बरी मठ पहुंचे.