महराजगंज में सरकारी दवाओं की कालाबाजारी का राज खुलता जा रहा है. स्टोर से निकासी पर्ची पर दूसरे दवाओं के डिस्पैच नंबर हैं, लेकिन आपूर्ति दूसरी दवाएं हुई हैं. इस मामले में जांच की सुई एनआरएचएम घोटाला के समय चर्चित रहे एक फार्मेसिस्ट के इर्द-गिर्द ही घूम रही है.
उत्तर प्रदेश के महराजगंज के सरकारी अस्पताल में मरीजों की निशुल्क दवा को प्राइवेट हॉस्पिटल में बेचने का मामला तूल पकड़ लिया है. डीएम सत्येन्द्र कुमार खुद जांच की निगरानी कर रहे हैं. मजिस्ट्रेटीयल जांच के अलावा पुलिस, औषधि विभाग के साथ-साथ डीएम के निर्देश के बाद अब स्वास्थ्य विभाग ने एसीएमओ के नेतृत्व में जांच शुरू कर दिया है.
एक साथ चार एजेंसियों की जांच ने जिम्मेदारों के होश को उड़ा दिया है, क्योंकि जांच में ऐसे-ऐसे तथ्य आ रहे हैं जो बड़े दवा घोटाले की तरफ इशारा कर रहे हैं. स्टोर से निकासी पर्ची पर दूसरे दवाओं के डिस्पैच नंबर हैं, लेकिन आपूर्ति दूसरी दवाएं हुई हैं. इस मामले में जांच की सुई एनआरएचएम घोटाला के समय चर्चित रहे एक फार्मेसिस्ट के इर्द-गिर्द ही घूम रही है.
पिछले डेढ़ दशक से वह सीएमओ कार्यालय में ही तैनात है. आशंका जताई जा रही है कि उसके दिशा निर्देश में सरकारी दवाएं प्राइवेट अस्पतालों में बेची जा रही हैं. वहीं सरकारी अस्पताल में इलाज कराने आए मरीज बाहर से दवा खरीदने को मजबूर हैं.
क्या है पूरा मामला
जिला प्रशासन के निर्देश पर एक सप्ताह पहले असिस्टेंट कमिश्नर ने चार जिलो के ड्रग इंस्पेक्टर, नायब तहसीलदार सदर के साथ पनियरा थाना की पुलिस के साथ पनियरा कस्बे में संचालित ज्योतिमा हॉस्पिटल पनियरा में औचक छापेमारी किया था. उस दौरान अस्पताल संचालक फरार हो गया था, लेकिन मौके से एक निजी अस्पताल कर्मी पकड़ में आया था.
जांच के दौरान निजी अस्पताल के अंदर संचालित मेडिकल स्टोर में 21 प्रकार की दवाएं मिली, जिसमें से अधिकांश दवाएं सरकारी मिलीं. ड्रग विभाग ने अस्पताल को सील कर दिया. अस्पताल संचालक समेत दो के खिलाफ पनियरा थाना में एफआईआर दर्ज कराया.
प्रमुख सचिव के आदेश के बाद भी नहीं हटा चर्चित फार्मासिस्ट
प्राइवेट अस्पताल में सरकारी दवा की बरामदगी के बाद चार एजेंसियां जांच कर रही हैं. अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि पनियरा के प्राइवेट हॉस्पिटल में मिली सरकारी दवाएं जिले के स्वास्थ्य विभाग के स्टोर से निकासी हुई थी या फिर किसी स्वास्थ्य केन्द्र के माध्यम से दवाएं बेची गई हैं.
यह भी स्पष्ट नहीं है कि कहीं सरकारी दवा गोरखपुर के स्वास्थ्य केन्द्रों के माध्यम से तो नही बेची गई हैं, लेकिन प्रकरण उजागर होने के बाद जिले का एक फार्मेसिस्ट सुर्खियों में आ गया है. करीब डेढ़ दशक से जिला मुख्यालय पर जमे इस फार्मेसिस्ट के रसूख का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2020 में प्रमुख सचिव वी झिमोमी जिले के दौरा पर आई थीं.
परतावल सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की निरीक्षण के दौरान सीएमओ के साथ इस फार्मेसिस्ट के हाथ में फाइल देख प्रमुख सचिव सीएमओ से पूछताछ किया. प्रमुख सचिव को जब यह पता चला कि फाइल लेकर सीएमओ के साथ घूमने वाला फार्मेसिस्ट है और उसकी दूसरे जगह तैनाती हैं, इस पर वह नाराज हो गईं.
तत्काल चर्चित फार्मेसिस्ट के साथ एक और फार्मेसिस्ट को हटाने का फरमान जारी किया. आदेश के अमल में दूसरे फार्मेसिस्ट को हटा दिया गया, लेकिन चर्चित फार्मासिस्ट के विभागीय प्रभाव के चलते उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई. इतना ही नहीं उसको कई अहम जिम्मेदारी सौंप दी गई.
स्थिति यह है कि उसके रजामंदी के बाद ही विभाग से आदेश जारी होते रहते हैं. बताया जा रहा है कि इस चर्चित फार्मेसिस्ट के आय की जांच इसलिए नहीं हो पा रही है कि वह नेपाली मूल का है. नेपाल के कई बैंक में उसके खाते हैं. इस मामले में डीएम सत्येन्द्र कुमार का कहना है कि प्रकरण गंभीर है.
इसलिए इसकी जांच पुलिस महकमा के अलावा ड्रग विभाग व स्वास्थ्य विभाग कर रहा है. मजिस्ट्रीयल जांच का भी आदेश दिया गया है. जिले के सभी स्वास्थ्य केन्द्रों पर सीएमएसडी से भेजी गई दवाओं का निर्धारित फार्मेट पर डिस्पैच नंबर समेत अन्य कई सूचनाएं मांगी गई हैं. जांच रिपोर्ट के आधार पर सख्त कार्रवाई की जाएगी.
प्रकरण में किसी फार्मेसिस्ट का सुर्खियों में है, उसके बारे में भी पूरी जानकारी मांगी गई है. जांच होने के बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी. अगर प्राइवेट हॉस्पिटल में मिली दवाएं जिले के ही स्वास्थ्य विभाग की मिली तो जिम्मेदारों को बख्शा नहीं जाएगा.