समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव अपने ससुर मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में उतरी हैं. डिंपल के खिलाफ बीजेपी से पूर्व सांसद रघुराज शाक्य ताल ठोक रहे हैं. आजमगढ़ और रामपुर की तरह बीजेपी मैनपुरी में भी 'कमल' खिलाने की पुरजोर कोशिश कर रही है, जिसके चलते अखिलेश यादव ने मुलायम की विरासत को बचाए रखने के लिए मैनपुरी सीट के लिए खास प्लान बनाया है?
अखिलेश यादव अभी तक उपचुनाव से दूरी बनाए रखते थे. आजमगढ़, रामपुर लोकसभा और गोला गोकार्णनाथ विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में अखिलेश प्रचार करने नहीं गए और सपा को हार का मूंह देखना पड़ा था. अब बात जब मैनपुरी में पिता मुलायम सिंह यादव की विरासत को बचाने और पत्नी डिंपल यादव को जिताने की आई है तो उन्हें खुद उतरकर मोर्चा संभाल लिया है.
मैनपुरी उपचुनाव में अखिलेश ने अपने चाचा शिवपाल यादव से भी बड़ी आस लगा रखी है. अखिलेश यादव और डिंपल यादव सैफई में शिवपाल से मिलने पहुंचे हैं. इधर अखिलेश ने धर्मेंद्र यादव और भतीजे तेज प्रताप सिंह यादव को अहम जिम्मेदारी सौंपी है. अखिलेश ने मैनपुरी लोकसभा सीट पर बीजेपी के बुने सियासी चक्रव्यूह को तोड़ने और सपा के वर्चस्व को बनाए रखने के लिए सिर्फ समीकरण ही नहीं सेट कर रहे बल्कि खासा रणनीति भी बनाई है.
अखिलेश ने एक-एक सीट की जिम्मेदारी सौंपी
बीजेपी ने रघुराज शाक्य पर दांव लगाकर सपा के खिलाफ चक्रव्यूह रचा तो सपा मैनपुरी सीट जीतने के लिए अलग-अलग विधान सभा क्षेत्रों के हिसाब से जिम्मेदारी पार्टी के अलग-अलग नेताओं को दी गई है. धर्मेंद्र यादव को मैनपुरी सदर सीट की जिम्मेदारी सौंपी गई है. शिवपाल के बेटे आदित्य यादव को करहल और जसवंतनगर सीट का जिम्मा सौंप गया है. किसनी विधानसभा की जिम्मेदारी तेज प्रताप यादव को दी हैं जबकि भोगन विधानसभा सीट की जिम्मेदारी आलोक शाक्य को दी गई हैं.
मैनपुरी लोकसभा सीट के तहत आने वाली पांचों विधानसभा पर अखिलेश यादव ने जिन नेताओं मोर्चे पर लगाया है, उनकी क्षेत्र में मजबूत पकड़ मानी जाती है. धर्मेंद्र यादव और तेज प्रताप यादव तो खुद मैनपुरी से सांसद रह चुके हैं जबकि आदित्य यादव अपने पिता शिवपाल यादव की जसवंतनगर सीट का पूरा जिम्मा लंबे समय से संभाल रहे हैं. करहल सीट से अखिलेश यादव तो खुद विधायक हैं और जसवंतनगर से जुड़ी हुई सीट है. भोगन सीट का जिम्मा संभाल रहे आलोक शाक्य सपा के जिला अध्यक्ष हैं.
प्रस्तावकों से साधा समीकरण
मैनपुरी सीट पर सपा उम्मीदवार डिंपल यादव के नामांकन में प्रस्तावक आलोक शाक्य, राजनारायण बाथम, एएच हाशमी और तेज प्रताप सिंह यादव रहे. अखिलेश यादव ने डिंपल के प्रस्तावकों के जरिए भी परिवार से लेकर जातिगत समीकरण तक ध्यान रखा गया. प्रस्तावक में शाक्य-दलित-मुस्लिम-यादव समीकरण बनाने की कोशिश की है. इसीलिए चारो जातियों से एक-एक प्रस्तावक रखे गए हैं.
मैनपुरी सीट पर जातिगत वोट
मैनपुरी सीट पर यादव वोटर्स के बाद सबसे ज्यादा शाक्य वोटर्स हैं. सपा के इस मजबूत गढ़ में यादव वोटरों की संख्या करीब साढ़े चार लाख है जबकि इस सीट पर शाक्य वोटर्स की संख्या करीब सवा तीन लाख है. ठाकुर दो लाख और ब्राह्मण वोटर्स एक लाख है. वहीं, दलित दो लाख, इनमें से 1.20 लाख जाटव, 1 लाख लोधी, 70 हजार वैश्य और एक लाख मु्स्लिम है. सपा इस सीट पर यादव-मुस्लिम समीकरण के सहारे 1996 से लगातार जीत दर्ज कर रही है. यही वजह है कि डिंपल के लिए यह सीट सबसे ज्यादा सुरक्षित मानी जाती है, लेकिन बीजेपी ने रघुराज शाक्य को उतारकर बड़ा दांव चला है.
माना जा रहा है कि यही वजह है कि सपा ने पहले आलोक शाक्य को मैनपुरी का जिला अध्यक्ष नियुक्त किया तो अब डिंपल यादव का उन्हें प्रस्तावक भी बनाया गया है. दलित वोटों के भी साधने की लिए राजनारायण बाथम और मुसलमानों के लिए एएच हाशमी को प्रस्तावक बनाकर सियासी संदेश देने की कोशिश की है. इसके अलावा यादव वोटों के साधे रखने के लिए मुलायम कुनबे के तीन युवा नेताओं को जिम्मा दिया है.
मैनपुरी सीट पर 1996 से सपा का कब्जा है और मुलायम परिवार के लिए लांचिग पैड रही है. मुलायम सिंह यादव खुद तो चार बार सांसद रहे ही हैं और उनके अलावा भतीजे धर्मेंद्र यादव और पोते तेज प्रताप यादव ने मैनपुरी उपचुनाव सीट से जीतकर सियासत में कदम रखा और अब मुलायम सिंह के निधन पर हो रहे उपचुनाव में डिंपल यादव चुनावी मैदान में उतरी हैं.
मुलायम सिंह यादव के रहते हुए बीजेपी के किसी भी बड़े नेता ने मैनपुरी सीट पर प्रचार नहीं किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मैनपुरी सीट पर सपा के खिलाफ प्रचार नहीं किया. लेकिन, 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने क्लीन स्वीप का लक्ष्य लेकर चल रही है, जिसके तहत 80 की सभी 80 सीटें जीतने की रणनीति पर काम कर रही है. इसी के तहत बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व मैनपुरी में कमल खिलाने की जुगत में है, जिसके लिए शिवपाल के करीबी रघुराज शाक्य को मैदान में उतारा है. यही वजह है कि सपा किसी तरह की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहती है, क्योंकि मैनपुरी में सपा और बीजेपी के बीच महज एक लाख वोटों का अंतर है.
शिवपाल से भी सपा को आस
मैनपुरी सीट पर सपा यादव, शाक्य और मुस्लिम मतों के समीकरण पर चुनाव जीतती आई है. बीजेपी इस सीट पर सेंधमारी के लिए हरसंभव कोशिश करती रही, लेकिन मुलायम सिंह के चलते सफल नहीं हो सकी. अब मुलायम की सीट पर डिंपल यादव को उतारा है ताकि मुलायम की विरासत उनके पास ही रहे, लेकिन बीजेपी ने शिवपाल के राइट हैंट को उतारकर नया दांव चला है. ऐसे में अखिलेश ने शिवपाल यादव को उपचुनाव के लिए स्टार प्रचारक के फेहरिश्त में शामिल किया है ताकि बीजेपी के चक्रव्यूह को तोड़ा जा सके. शिवपाल यादव का मैनपुरी सीट पर अच्छा खासा प्रभाव है. जसवंतनगर से शिवपाल खुद विधायक हैं और उनका अपना सियासी ग्राफ भी है.
डिपंल यादव के नामांकन के दौरान शिवपाल यादव नदारद थे, लेकिन जब बीजेपी ने पूर्व सांसद रघुराज शाक्य को टिकट दिया तो शाक्य ने खुद को शिवपाल का शिष्य बताया. ऐसे में भतीजे अखिलेश और बहू डिंपल यादव को चाचा शिवपाल की याद आई. डिंपल ने शिवपाल को फोन किया और मैनपुरी सीट पर समर्थन मांगा. ऐसे में चाचा-भतीजे के रिश्ते में जमी बर्फ भी पिघलने लगी और मैनपुरी के चुनावी दंगल में शिवपाल सिंह यादव की एंट्री हो गई.
शिवपाल यादव ने बुधवार को अपनी पार्टी के नेताओं के साथ अहम बैठक की, जिसमें उन्होंने डिंपल के लिए प्रचार करने की हामी भर दी. इस बात को शिवपाल की पार्टी के नेता ने खुद ही मीडिया से कहा. वहीं शिवपाल अब अखिलेश यादव से वन टू वन बैठक कर रहे हैं. चाचा-भतीजे के बीच यह बैठक सैफई में शिवपाल यादव के आवास पर हो रही है, जहां पर डिंपल यादव भी मौजूद है. मुलायम कुनबे की एकता के लिए यह बैठक काफी अहम मानी जा रही है, जहां शिवपाल यादव अपने सियासी भविष्य को लेकर अखिलेश के साथ बातचीत और समझौते पर मुहर लगेगी. इसके बाद भी शिवपाल डिंपल को जिताने के लिए दम लगाएंगे?