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मुस्लिमों का एक बड़ा तबका, मदरसों को अब जरूरी नहीं समझताः मदनी

उन्होंने कहा कि खुद मुसलमानों के बीच ऐसा तबका पैदा हो गया है जो यह समझता है कि अब ऐसे मदरसों की जरुरत नहीं है. एक मदरसे से निकाला गया मौलवी तुरंत उसी के सामने अपना मदरसा खोल कर चन्दा ले आता है. हमें अपने अंदर खुद विचार करना होगा.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

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मुस्लिम राजनीति, समाज और मुसलमानों के बीच खासा पैठ रखने वाले जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद के मौलाना असद मदनी ने एक सेमिनार में मदरसों के मौलानाओं को खूब खरी-खरी सुनाई. मदनी ने कहा कि मदरसों को हमने क्या बना रखा है. आज की स्थिति में मुस्लिम समाज में ऐसा तबका पैदा हो गया है जो मानता है कि इन मदरसों की अब जरूरत नहीं है.

रविवार को कानपुर में जमीयत उलेमा के मशहूर मौलाना असद मदनी ने कहा कि आप मदरसों पर कोई बात उठाने पर हमेशा सर कटाने की बात करते हो. वही पुराने जमाने को लेकर चल रहे हो, जबकि खुद हमारे मदरसों में हो या जमीयत में कितनी गलतियां हो रही है. खुद हमारे मुस्लिम समाज में हमारी व्यवस्था को लेकर विरोध पैदा हो गया है.

उन्होंने कहा कि खुद मुसलमानों के बीच ऐसा तबका पैदा हो गया है जो यह समझता है कि अब ऐसे मदरसों की जरुरत नहीं है. एक मदरसे से निकाला गया मौलवी तुरंत उसी के सामने अपना मदरसा खोल कर चन्दा ले आता है. हमें अपने अंदर खुद विचार करना होगा.

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मदनी ने कहा कि सरकार से तो हम लड़ लेंगे, उसको समझा लेंगे, लेकिन जो हमारी कमियां हैं उनको दूर करना हैं. सरकार आती जाती रहती है, मदरसे हैं और रहेंगे. लड़ाई सरकार से बड़ी नहीं है, बड़ी लड़ाई हमारी आपस की है.

मौलाना असद मदनी को सुनने उत्तर प्रदेश के कई जिलों से मदरसों के मौलाना और मुस्लिम बुद्धिजीवी पहुंचे थे, जहां मदनी उन्हें मुस्लिम समाज के भीतर हो रहे बदलाव को लेकर चर्चा कर रहे थे, लेकिन लगे हाथ मदनी ने मदरसों के मौलवियों पर सवालिया निशान खड़ा किया और मदरसों के खिलाफ कौम के भीतर उठ रहे सवालों से रूबरू कराया.

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