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मेरठ: माता-पिता की ऑक्सीजन कमी से मौत, सरकारी पेंशन पर कट रही तीन बेटियों की जिंदगी

ताजा मामला मेरठ का है जहां पर कर्मचारी यतेंद्र और उनकी पत्नी अनुज की समय रहते ऑक्सीजन ना मिलने से मौत हो गई और उनकी तीनों बेटियां कम उम्र में अनाथ हो गईं.

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कोरोना काल में तीन बेटियां हो गईं अनाथ
कोरोना काल में तीन बेटियां हो गईं अनाथ
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कोरोना काल में तीन बेटियां हो गईं अनाथ
  • पहले पत्नी की मौत, फिर पति भी चल बसे
  • सरकारी पेंशन से चल रहा घर

इस कोरोना महामारी ने ऐसे दिन दिखा दिए हैं जहां पर पूरा परिवार ही खत्म हुआ है, कई बच्चे अनाथ हो गए हैं और कई घर के चिराग हमेशा के लिए बुझ गए हैं. कोरोना काल में हुए चुनावों ने तो इस दर्द को और ज्यादा बढ़ा दिया है और कई अपनों को हमेशा के लिए दूर कर दिया है. ताजा मामला मेरठ का है जहां पर  प्राइमरी स्कूल पाठशाला में कर्मचारी यतेंद्र और उनकी पत्नी अनुज की समय रहते ऑक्सीजन ना मिलने से मौत हो गई और उनकी तीनों बेटियां कम उम्र में अनाथ हो गईं.

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कोरोना काल में तीन बेटियां हो गईं अनाथ

जानकारी मिली है कि यतेंद्र की पंचायत चुनाव में ड्यूटी लगी थी. ड्यूटी से आने के बाद ही उनकी तबीयत खराब हुई. यतेंद्र की पत्नी की भी तभी तबीयत खराब हुई थी. बाद में यतेंद्र के छोटे भाई ने अपनी भाभी को गांव के एक डॉक्टर को दिखाया था, लेकिन इलाज नहीं मिल पाया. इसके बाद सरकारी अस्पताल में कोरोना टेस्ट हुआ और वे वापस घर आ गईं.

फिर दोबारा तबीयत खराब हुई जिसके बाद उन्हें एक निजी अस्पताल में ले जाया गया. लेकिन वहां क्योंकि इलाज नहीं मिला, फिर सरकारी अस्पताल का रुख किया गया. वहां पर भी कह दिया गया कि यतेंद्र की पत्नी को लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज में भर्ती करवा देना चाहिए. जब तक उनके कागज तैयार होते, अनुज ने दम तोड़ दिया. 

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पहले पत्नी की मौत, फिर पति भी चल बसे

इसके बाद यतेंद्र की भी तबीयत हर बीतते दिन के साथ बिगड़ती रही और उन्हें भी लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज में भर्ती करवाया गया. लेकिन वहां पर उनका ऑक्सीजन लेवल काफी कम हो गया और समय रहते ऑक्सीजन का इंतजाम नहीं हो पाया. यतेंद्र भी इस दुनिया को अलविदा कह चले गए. दोनों माता-पिता के निधन के बाद घर में अब सिर्फ तीन बेटियां और एक बूढ़ी दादी रह गई हैं. परिवार का खर्च भी सिर्फ 10 हजार की सरकारी पेंशन से चल रहा है. उस पेंशन से भी घर का किराया चुकाया जाता है, ऐसे में ना पैसे बचते हैं और ना ही खर्चे निकल पाते हैं.

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सरकारी पेंशन से चल रहा घर

यतींद्र की तीन बेटियां हैं. बड़ी बेटी पलक जिसकी उम्र (16 ) साल है, दूसरी बेटी परी जिसकी उम्र (14) साल है और तीसरी बेटी आराध्या जिसकी उम्र (6) साल है. बड़ी बेटी अब टीचर बन अपना घर चलाना चाहती है, वहीं दूसरी बेटी भी टीचर बनने के ही सपने देख रही है. सभी अब समय रहते अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हैं और अपने परिवार को सहारा देना चाहती हैं. वहीं परिजनों का कहना है कि अगर सरकार की तरफ से उन्हें एक घर दिलवा दिया जाए तो किराए के पैसे बच जाएंगे और उनका गुजर-बसर कुछ आसान हो जाएगा. 

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