उत्तर प्रदेश विधान परिषद चुनाव के नामांकन का आज (सोमवार) अंतिम दिन है. ऐसे में सभी की निगाहें प्रतापगढ़ की एमएलसी सीट पर है, जहां कुंडा के विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की अग्निपरीक्षा होनी है. प्रतापगढ़ सीट से लगातार एमएलसी बन रहे राजा भैया के करीबी अक्षय प्रताप सिंह उर्फ गोपाल को फर्जी पते पर रिवॉल्वर लाइसेंस लेने के आरोप में दोषी करार दिया जा चुका है, लेकिन चुनावी मैदान में उतरे हैं. वहीं, सपा और बीजेपी ने अपने-अपने उम्मदीवार उतार रखे हैं. ऐसे में राजा भैया के सामने प्रतापगढ़ में अपने सियासी वर्चस्व को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है?
राजा भैया प्रतापगढ़ एमएलसी सीट की किस्मत का फैसला ही नहीं बल्कि अक्षय प्रताप सिंह उर्फ गोपाल को निर्विरोध कराते रहे हैं. अक्षय प्रताप कुंडा विधायक राजा भैया के करीबी व रिश्तेदार हैं. वह प्रतापगढ़ में तीन बार से एमएलसी और एक बार सांसद रह चुके हैं. 2016 में सपा के टिकट पर एमएलसी चुने गए थे, लेकिन राजा भैया का सपा से मोहभंग हो जाने के चलते उन्होंने भी नाता तोड़ लिया था.
राजा भैया की जनसत्ता पार्टी से अक्षय प्रताप सिंह ने विधान परिषद के लिए नामांकन दाखिल कर रखा है. हालांकि, वो अदालत द्वारा गलत पते पर रिवॉल्वर लाइसेंस लेने के आरोपो में दोषी करार दिए गए हैं, जिस पर कोर्ट 22 मार्च यानि मंगलवार को सजा सुनाएगा. ऐसे में विकल्प और एहतियात के तौर पर राजा भैया की पार्टी से दो अन्य पर्चे भी खरीदे गए हैं, जिनमें एक केएन ओझा के नाम से और दूसरा अक्षय प्रताप सिंह की पत्नी मधुरिमा सिंह के नाम से है.
कुंडा विधानसभा सीट से जनसत्ता दल के मुखिया राजा भैया को जीतने से लिए इस बार काफी कड़ी मशक्कत करनी पड़ी है और अब उनके सामने जनपद से एमएलसी का चुनाव चुनौती बन गया है. 2016 में राजा भैया की गणित के सामने किसी की नहीं चली थी और सपा के टिकट पर अक्षय प्रताप सिंह सपा से निर्विरोध निर्वाचित हुए थे, लेकिन इस बार परिस्थितियां बदली नजर आ रही हैं.
प्रतापगढ़ एमएलसी सीट पर सपा से जिला पंचायत सदस्य विजय यादव और बीजेपी से पूर्व विधायक हरि प्रताप सिंह मैदान में हैं. प्रदेश में बड़ी जीत हासिल करके सत्ता में दोबारा लौटी बीजेपी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही. प्रतापगढ़ के चेयरमैन रहे पूर्व विधायक हरि प्रताप सिंह को मैदान में उतार कर अपनी सियासी मंशा जाहिर कर दी है. हालांकि, राजा भैया को जिस तरह से कुंडा सीट पर जीत के लिए कड़ी चुनौतियां को सामना करना पड़ा है, उससे सियासी चुनौती खड़ी है.
दरअसल, राजा भैया प्रतापगढ़ सीट से अक्षय प्रताप सिंह को एमएलसी बनाने में इसलिए भी सफल रहते थे, क्योंकि सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा करते थे. 2016 में सत्ता का लाभ मिला था जबकि इस बार बीजेपी और सपा दोनों ही पार्टियों ने अपने-अपने कैंडिडेट उतार रखे हैं. राजा भैया को विधान परिषद चुनाव जीतने के लिए गुणा-भाग करने से लेकर जोड़-तोड़ भी करना होगा.
जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में राजा भैया कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रमोद तिवारी के समर्थन से जीतने में सफल रहे थे. तमाम सारी घेराबंदी के बावजूद अपने प्रत्याशी को जिताया था. वहीं, विधान परिषद के चुनाव में बीजेपी को उच्च सदन में अपने बहुमत का आंकड़ा भी जुटाना है, जिसके चलते वह पूरा जोर लगा रही है तो सपा भी अपने सियासी वर्चस्व को बनाए रखने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही. ऐसे में राजा भैया के लिए इस बार प्रतापगढ़ सीट से अपनी पार्टी को जिताने की चुनौती खड़ी हो गई है.
दरअसल, अखिलेश यादव के साथ रिश्ते बिगड़ने के बाद राजा भैया ने जनसत्ता दल नाम से अपनी राजनीतिक पार्टी बना ली. 2019 लोकसभा के चुनाव में पार्टी ने दो सीटों कौशांबी और प्रतापगढ़ सीट पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन दोनों में से कोई भी जीत नहीं सका था. प्रतापगढ़ सीट से अक्षय प्रताप सिंह ही चुनाव लड़े थे, लेकिन चौथे नंबर पर रहे थे. ऐसे में उनकी सियासी चुनौती बढ़ गई है.
वहीं, हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान कुंडा सीट से खुद राजा भैया और बाबागंज सीट से उनके करीबी विनोद सरोज जनसत्ता पार्टी से जीतने में कामयाब रहे हैं. लेकिन, इस बार उन्हें दोनों सीट पर अपने सियासी वर्चस्व को बनाए रखने की कड़ी चुनौती मिली थी. अब एमएलसी चुनाव में अक्षय प्रताप सिंह की किस्मत दांव पर है, जिसके साथ राजा भैया की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. ऐसे में देखना है कि राजा भैया अपने करीबी अक्षय प्रताप को जिताने में कामयाब रहते हैं कि नहीं?
(प्रतापगढ़ से सुनील यादव के इनपुट के साथ)