महराजगंज महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में घोटाला सामने आने के बाद महराजगंज पुलिस चार एफआईआर दर्ज कर चुकी है. जांच में घोटाले के कई मामले सामने आने के बाद एसपी प्रदीप गुप्ता ने एसआईटी का गठन कर दिया है. जांच में घोटाले का कनेक्शन लखनऊ मनरेगा कार्यालय से जुड़ गया है.
वहां के कर्मचारियों की मिलीभगत से बंद पड़े निष्किय वर्क आईडी को री-ओपन कर बिना काम कराए फर्जी तरीके से भुगतान कराया जा रहा था. प्रारम्भिक जांच में चौंकाने वाली बात यह सामने आई है कि महराजगंज जनपद की तर्ज पर यूपी के कई जिलों में करोड़ों रुपए का मनरेगा घोटाला किया गया है. इस मामले में अभी तक अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी और एक कम्प्यूटर आपरेटर को जेल भेजा चुका है. शुरुआती जांच नतीजे के आधार पर एसआईटी 28 लोगों को अपने रडार पर ले ली है. मनरेगा घोटाले में उनकी संल्पितता की जांच की जा रही है.
मनरेगा घोटाले का पहला मामला 28 मई को सामने आया था. परतावल ब्लॉक के बीडीओ प्रवीण शुक्ल ने बरियरवा पोखरी का मनरेगा के तहत सुन्दरीकरण का कार्य कराए बिना ही 25 लाख 87 हजार रुपया गबन का केस दर्ज कराया था. इस मामले में अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी विनय कुमार मौर्य के अलावा दिनेश मौर्य, एक ठेकेदार के अलावा वन विभाग के तीन कर्मचारियों का नाम शामिल था. केस दर्ज होने के बाद वन विभाग ने तत्कालीन सेवानिवृत्त सहायक वन संरक्षक घनश्याम राय, कम्प्यूटर आपरेटर अरविन्द श्रीवास्तव और लेखा लिपिक बिन्द्रेश कुमार सिंह के खिलाफ मनरेगा घोटाले में नामजद केस दर्ज कराया.
तहरीर देकर बताया कि परतावल क्षेत्र में मनरेगा योजना के तहत वित्तीय अनियमितता की गई हैं. इस मामले में प्रथम दृष्टया सेवानिवृत्त सहायक वन संरक्षक घनश्याम राय, कम्प्यूटर आपरेटर अरविन्द श्रीवास्तव और लेखा लिपिक बिन्द्रेश कुमार सिंह दोषी पाए गए हैं. ऐसे में इनके खिलाफ भी केस दर्ज किया जाए. परतावल ब्लॉक में मनरेगा घोटाले की जांच चल ही रही थी, उसी दौरान घुघली ब्लॉक में भी 1.48 करोड़ रुपए का मनरेगा घोटाला सामने आ गया. उसमें भी दो एफआईआर दर्ज कराई गई हैं.
भुगतान के समय जिम्मेदार अफसरों से हो सकती है पूछताछ
जिस समय जिले में मनरेगा घोटाला हुआ उस समय डीसी मनरेगा का चार्ज एक जिला स्तरीय अधिकारी के पास था. इसके अलावा सिसवा ब्लॉक में कार्यरत अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी उस समय घुघली ब्लॉक में तैनात था. एसआईटी टीम इन दोनों से पूछताछ कर सकती है क्योंकि इन्हीं के समय में फर्जी भुगतान हुआ और जिम्मेदारों को भनक तक नहीं लगी. बिना काम कराए मनरेगा का घोटाला होता रहा.
दो बैंकों की भी भूमिका की होगी जांच
मनरेगा घोटाले में जिन फर्जी मजदूरों के खातों में लाखों रुपए का भुगतान किया गया, यह सभी खाते केवल दो बैंक के मिले हैं. बताया जा रहा है कि बैंक कर्मियों की मिलीभगत से फर्जी भुगतान का पैसा निकासी कर सीधे ठेकेदारों को कमीशन पर मुहैया कराया जा रहा था. मजदूरों को बैंक में आने की जरूरत भी नहीं पड़ती थी. निकासी पर्ची पर पहले से ही उनका हस्ताक्षर/अंगूठा का निशान लगवा लिया जा रहा था. जांच में अभी तक 600 फर्जी जॉबकार्ड सामने आए हैं. जिसे विभाग ने मनरेगा पोर्टल से डिलीट करा दिया है.
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सदर ब्लॉक में भी मनरेगा घोटाला
जैसे-जैसे मनरेगा की जांच बढ़ रही है वैसे-वैसे नए-नए घोटाला सामने आ रहे हैं. सदर ब्लॉक के बांसपार बैजौली गांव में चकमार्ग के निर्माण पर दस लाख की ईंट और दस लाख के सीमेंट का खर्च दिखाया गया है. वहीं बागापार गांव में भी ड्रेन सफाई के कार्य में मनरेगा से दस लाख की ईंट और दस लाख के सीमेंट का भुगतान किया गया है. इन दोनों गांव में मनरेगा से कराए गए कार्य का जिस फर्म को भुगतान किया गया है उन दोनों फर्म का घुघली ब्लॉक के मनरेगा घोटाले में नाम सामने आ चुका है. उनके खिलाफ केस भी दर्ज है. इस मामले में एसपी प्रदीप गुप्ता ने बताया कि मनरेगा घोटाला की जांच के लिए एसआईटी गठित कर दी गई है. जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की जाएगी. जिसका भी नाम सामने आएगा उनका जेल जाना तय है.