ऑल इंडिया इत्तेहाद-मिल्लत काउंसिल (आइएमसी) के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खां एक बार फिर सूबे की अखिलेश सरकार से खफा हैं. दूसरी ओर सपा सरकार भी अब मौलाना को ज्यादा भाव नहीं दे रही है. ऐसे में आईएमसी-सपा गठबंधन का अंजाम अब सामने दिख रहा है.
मौलाना और सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह के बीच रिश्ता ज्यादा पुराना नहीं है. पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव की गतिविधियां शुरू होने पर दोनों साथ आए थे. तय यह हुआ था मौलाना चुनाव में अपने उम्मीदवार नहीं उतारकर सपा को जिताने का काम करेंगे. इस एवज में सपा ने मौलाना तौकीर रजा को हथकरघा एवं वस्त्रोद्योग के सलाहकार पद से नवाजा था.
जब मौलाना की ताजपोशी हो रही थी तो पद छोटा होने पर रार हो गई. आईएमसी कार्यकर्ता कैबिनेट का दर्जा मिलने की उम्मीद में थे. जैसे-तैसे यह किस्सा खत्म हुआ तो सपा के बरेली उम्मीदवार पर ठन गई. मौलाना की मर्जी के खिलाफ सपा ने उनकी पार्टी के इकलौते भोजीपुरा के बागी विधायक शहजिल इस्लाम की पत्नी आयशा इस्लाम को टिकट थमा दिया.
इसके अलावा जिस उम्मीद में मौलाना ने लालबत्ती कुबूल की थी, वह भी पूरी नहीं हुई. न तो दंगों की जांच को आयोग गठित हुआ और न बेगुनाह युवकों के नाम दंगे की एफआइआर से निकाले गए. पीसीएस (जे) में उर्दू का पेपर भी शुरू नहीं कराया. इन मांगों पर दबाव बनाने के लिए मौलाना दो मर्तबा इस्तीफा दे चुके हैं.
इस बार तो नाराजगी में सरकार के लिए यहां तक कह दिया मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों के शिविर उजाड़े जा रहे हैं और सैफई में जश्न मन रहा है. सरकार को उनकी यह बात चुभ गई. लिहाजा इसका जवाब में बरेली से लोकसभा प्रत्याशी आयशा इस्लाम के ससुर इस्लाम साबिर ने तीखा हमला बोल दिया.
उन्होंने कह दिया कि मौलाना भाजपा के संपर्क में हैं. तीन मर्तबा नरेंद्र मोदी से मिल चुके हैं. सपा की तरफ से मौलाना के लिए संकेत साफ है, शायद उन्होंने महसूस भी कर लिया है. फैसला लेने के लिए आईएमसी की बैठक बुलाई थी. चार जनवरी को होने वाली बैठक की तारीख मौलाना की बीमारी के सबब आगे बढ़ा दी गई है. आईएमसी प्रवक्ता डॉ. नफीस खां ने बताया कि अब बैठक 11 जनवरी को हो सकती है.