उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में योगी आदित्यनाथ को मात देने के लिए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अभी से भी राजनीतिक समीकरण साधने की कवायद शुरू कर दी है. सपा की नजर सूबे के अतिपिछड़ा समुदाय के वोटों पर है, जिनके सहारे मुलायम सिंह यादव प्रदेश की सत्ता सिंहासन पर विराजमान होते रहे हैं.
अखिलेश यादव भी अब अपने पिता मुलायम सिंह के सियासी फॉर्मूले को आजमाने की कोशिशों में हैं. इसी के मद्देनजर अखिलेश ने 25 जुलाई को पूर्व सांसद फूलन देवी की पुण्यतिथि पर सिर्फ श्रद्धांजलि ही अर्पित नहीं की बल्कि उनके जीवन पर आधारित एक वृत्तचित्र के प्रोमो को साझा कर अति पिछड़ा समुदाय को राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है. इतना ही नहीं सपा कार्यकर्ताओं ने प्रदेश के विभिन्न जिलों में फूलन देवी को श्रद्धांजलि अर्पित की और सामंतवादियों के खिलाफ उनके संघर्ष की सराहना किया.
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— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) July 25, 2020
सपा प्रमुख अखिलेश ने ट्विटर पर फूलन देवी को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि देते हुए एक बयान पोस्ट किया और उनके जीवन पर आधारित एक फिल्म का पोस्टर भी साझा किया. इसके बाद उसी दिन अखिलेश ने शाम को ईरानी फिल्ममेकर की फूलन देवी पर बनी डॉक्यूमेंट्री का प्रोमो ट्वीट किया था. प्रोमो में फूलन को ऐसे महिला के तौर पर दिखाया गया है जो अति पिछड़ी जाति में पैदा हुई थी और जिसे बिना किसी अपराध के मानसिक और शारीरिक पीड़ा झेलनी पड़ी. इस डॉक्यूमेंट्री में बहमई हत्याकांड को फूलन के प्रतिशोध के रूप में सही ठहराया गया है.
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बता दें कि पूर्व सांसद फूलन देवी को सियासत में मुलायम सिंह यादव ही लेकर आए थे. फूलन देवी को 1996 में मिर्जापुर से समाजवादी पार्टी के टिकट पर उन्होंने चुनाव लड़ाया और संसद भेजा था. फूलन देवी मल्लाह समुदाय से आती थी. इसीलिए मल्लाह समुदाय की उप जातियां काची, बिंद, मल्लाह और निषाद समुदाय के बीच काफी लोकप्रिय रहीं. फूलन देवी सासंद बनी और यही वह दौर था जब मल्लाह समुदाय सपा का परंपरागत वोटर बन गया था. हालांकि, 2001 में फूलनदेवी को दिल्ली के निवास के गेट पर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जिसे बहमई गांव में राजपूतों की हत्याकांड का बदला बताया गया था.
सपा ने अब एक बार फिर फूलनदेवी के सहारे काची, बिंद, मल्लाह और निषाद समुदाय के साथ अति पिछड़ा वोटर को साधने की कवायद शुरू की है, क्योंकि बीजेपी इन्हीं अति पिछड़ा वोटर के सहारे 14 साल के सत्ता के वनवास को खत्म करने में कामयाब रही है. इसीलिए अखिलेश यादव को सत्ता में वापसी की आस अतिपिछड़ा मतों के सहारे नजर आ रही है. सपा प्रमुख अक्सर बीजेपी और सीएम योगी आदित्यनाथ पर ओबीसी विरोधी होने का आरोप लगाते रहते हैं.
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2019 में 6 अक्टूबर को फूलन देवी की बहन रुक्मणी देवी निषाद ने भी लखनऊ में सपा प्रमुख अखिलेश यादव की उपस्थिति में सपा का दामन थामा था. अब अखिलेश यादव ने फूलन देवी के जरिए साफतौर पर संदेश दिया है कि आगामी चुनाव में उनकी पार्टी न सिर्फ पिछड़ी जातियों को लुभाने की कवायद करेगी बल्कि जातीय कार्ड को आक्रामक तरीके से खेलने में भी पीछे नहीं हटेगी.
सपा प्रवक्ता जूही सिंह ने इंडिया टुडे से बात करते हुए कहा, 'फूलन देवी निषाद समुदाय से थीं और हमारी पार्टी की सांसद थीं. सपा ने हमेशा सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ों का समर्थन किया है. हमने हमेशा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों की मदद की है, जिन्होंने सामाजिक अत्याचारों का सामना किया है.
उन्होंने कहा, 'फूलन देवी को भी शोषण और अन्याय का सामना करना पड़ा. हमारी पार्टी सामाजिक न्याय में विश्वास करती है और इसीलिए हम हमेशा उन लोगों का समर्थन और मदद करते हैं जो समाज में पीड़ा के शिकार रहे हैं.' हालांकि, अखिलेश के इस कदम को निषाद पार्टी द्वारा 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सपा के साथ नाता तोड़ने के बाद निषाद समुदाय को साधने के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है.
बीजेपी के प्रवक्ता मनीष शुक्ला ने कहा, 'यूपी के लोगों ने जाति आधारित राजनीति को पूरी तरह से खारिज कर दिया है. जब अखिलेश यादव यूपी के सीएम थे, तब उनकी सरकार ने केवल कुछ जिलों में एक विशेष जाति के लोगों को फायदा पहुंचता था. अब हमारी केंद्र और राज्य सरकार में दलितों और सबसे पिछड़ों को सरकारी नौकरियों, विकास योजनाओं में समान अवसर मिल रहे हैं.
वहीं, कांग्रेस नेता और विधान परिषद सदस्य दीपक सिंह कहते हैं कि पिछले 30 सालों में हमने राजनीतिक दलों को सरकार बनाने के लिए जाति आधारित राजनीति पर ध्यान केंद्रित करते हुए देखा है और लोगों की अपेक्षाओं की उपेक्षा की गई है. कांग्रेस पार्टी आगामी चुनावों में ऐसे दलों के मिथक को तोड़ देगी. कांग्रेस का एजेंडा समाज के हर वर्ग के लोगों के उत्थान पर ध्यान केंद्रित करना और विकास की इबारत लिखना है.